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India Daily

ऑपरेशन सिंदूर के बाद आतंकी ठिकाने बनाने की साजिश में जुटा जैश-ए-मोहम्मद, 300 से ज्यादा मरकज बनाने के लिए कर रहा 'डिजिटल हवाला'

इस्लाम में मरकज बनाना एक पवित्र धार्मिक कार्य माना जाता है, लेकिन जैश-ए-मोहम्मद इसका इस्तेमाल आतंकवादियों के प्रशिक्षण और ठहरने के लिए करता है. 7 मई को भारत द्वारा निशाना बनाया गया मरकज सुभानअल्लाह न केवल जैश-ए-मोहम्मद का मुख्यालय था, बल्कि हथियारों की ट्रेनिंग का अड्डा और एक आवासीय केंद्र भी था.

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Edited By: Gyanendra Sharma
JeM
Courtesy: Social Media

Pakistan Terror Network Dodged FATF Scrutiny: फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) से बचने के लिए आतंकवादी डिजिटल हो गए हैं. जैश-ए-मोहम्मद (JeM) ने डिजिटल वॉलेट के ज़रिए 3.91 अरब पाकिस्तानी रुपये जुटाने का अभियान शुरू किया है. 2019 में FATF की ग्रे लिस्ट से पाकिस्तान को बाहर निकालने के लिए, देश ने राष्ट्रीय कार्य योजना लागू की. पाकिस्तान ने FATF के सामने दावा किया कि उसने जैश-ए-मोहम्मद पर लगाम कसने के लिए उसके मरकज़ को सरकारी नियंत्रण में ले लिया है और जैश-ए-मोहम्मद के मुखिया मसूद अजहर, उसके भाई रऊफ असगर और सबसे छोटे भाई तल्हा अल-सैफ़ के बैंक खातों पर आधिकारिक निगरानी रखी है. उसने नकद लेन-देन, जानवरों की खाल के दान और धन उगाही के अन्य तरीकों पर भी प्रतिबंध लगा दिया है.

इसके बाद जैश-ए-मोहम्मद ने पाकिस्तानी डिजिटल वॉलेट ईज़ीपैसा और सदापे के ज़रिए धन जुटाना और लेन-देन करना शुरू कर दिया. बैंक खातों के बजाय, पैसा मसूद अज़हर के परिवार के सदस्यों के डिजिटल वॉलेट में भेजा गया. इससे पाकिस्तान को एफएटीएफ के सामने सिर्फ़ बैंक खातों का विवरण दिखाकर झूठा दावा करने का मौका मिल गया कि जैश-ए-मोहम्मद की फंडिंग बंद कर दी गई है.

ऑपरेशन सिंदूर के बाद शुरू हुआ खेल

7 मई को भारत के ऑपरेशन सिंदूर के दौरान, जैश-ए-मोहम्मद के मुख्यालय मरकज़ सुभानअल्लाह को चार अन्य प्रशिक्षण शिविरों मरकज़ बिलाल, मरकज़ अब्बास, महमोना जोया और सरगल प्रशिक्षण शिविर के साथ नष्ट कर दिया गया. जहां पाकिस्तान सरकार ने इन प्रशिक्षण शिविरों के पुनर्निर्माण के लिए धन की घोषणा की, वहीं जैश-ए-मोहम्मद ने पूरे पाकिस्तान में 313 नए मरकज़ बनाने के लिए ₹3.91 अरब जुटाने के लिए ईज़ीपैसा के माध्यम से एक ऑनलाइन अभियान भी शुरू किया.

फेसबुक और व्हाट्सएप जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल

फेसबुक और व्हाट्सएप जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर पोस्टर, वीडियो और मसूद अज़हर का एक पत्र प्रसारित किया जा रहा है जिसमें समर्थकों से प्रत्येक मरकज़ के लिए 12.5 मिलियन पाकिस्तानी रुपये (1 करोड़ 25 लाख पाकिस्तानी रुपये) का दान देने का आग्रह किया गया है. पाकिस्तान और विदेशों में मौजूद समर्थकों से कुल 3.91 बिलियन पाकिस्तानी रुपये (391 करोड़ पाकिस्तानी रुपये) दान करने का आग्रह किया जा रहा है. जांच में पाया गया कि 3.94 अरब पाकिस्तानी रुपये तीन पाकिस्तानी डिजिटल वॉलेट के ज़रिए इकट्ठा किए जा रहे हैं. ऐसा ही एक सदापे अकाउंट मसूद अज़हर के भाई तल्हा अल सैफ (तल्हा गुलज़ार) के नाम पर है, जो पाकिस्तानी मोबाइल नंबर से जुड़ा है. यह नंबर जैश-ए-मोहम्मद के हरिपुर ज़िले के कमांडर आफ़ताब अहमद के नाम पर रजिस्टर्ड है, जिसका सीएनआईसी नंबर 133020376995, हरिपुर के खाला बट्ट टाउनशिप में स्थित जैश-ए-मोहम्मद के कैंप का पता बताता है.

इस्लाम में मरकज बनाना एक पवित्र धार्मिक कार्य माना जाता है, लेकिन जैश-ए-मोहम्मद इसका इस्तेमाल आतंकवादियों के प्रशिक्षण और ठहरने के लिए करता है. 7 मई को भारत द्वारा निशाना बनाया गया मरकज सुभानअल्लाह न केवल जैश-ए-मोहम्मद का मुख्यालय था, बल्कि हथियारों की ट्रेनिंग का अड्डा और एक आवासीय केंद्र भी था. इस हमले में मसूद अज़हर के बहनोई जमील अहमद, उसके भतीजे हमज़ा जमील, अब्दुल रऊफ़ के बेटे हुज़ैफ़ा असगर (जैश-ए-मोहम्मद का खैबर पख्तूनख्वा भर्ती प्रमुख) और अन्य आतंकवादियों समेत 14 लोग मारे गए थे.

मरकज सुभानअल्लाह से सिर्फ 6 किलोमीटर दूर मरकज़ उस्मान-ओ-अली है, जहां मसूद अजहर का परिवार हमले के बाद से रह रहा है. 10 मई को बहावलपुर के एक सांसद ने वहां घायल परिवार के सदस्यों से मुलाकात की. 21 मई को लश्कर-ए-तैयबा के गुर्गों ने उसी मरकज का दौरा किया. इसी तरह, मुज़फ़्फ़राबाद में मरकज बिलाल और कोटली में मरकज़ अब्बास भी आतंकवादियों के रहने और प्रशिक्षण के लिए बनाए गए थे. भारतीय हमलों में वहां आतंकवादी हसन और वकास मारे गए.

2,000 से ज़्यादा पाकिस्तानी डिजिटल वॉलेट चला रहा

कराची में जैश-ए-मोहम्मद डेढ़ एकड़ में फैले मरकज इफ़्ता का संचालन करता है, जहां मौलवी छोटे बच्चों का ब्रेनवॉश करते हैं. यह जैश-ए-मोहम्मद का  प्रचार केंद्र भी है, जहा मसूद अजहर और उसके भाइयों के पत्र और भाषण प्रतिदिन प्रॉक्सी सोशल मीडिया अकाउंट्स के जरिए जारी किए जाते हैं. जैश-ए-मोहम्मद का आधिकारिक सोशल मीडिया पेज +92 316xxxxx66 नंबर से जुड़ा है जो रोज़िना (CNIC 4220176122374) नाम की एक महिला के नाम पर पंजीकृत है, जिसका पता मरकज़ इफ़्ता के पास है. खुफिया सूत्रों के अनुसार, जैश-ए-मोहम्मद वर्तमान में ईज़ीपैसा और सदापे पर 2,000 से ज़्यादा पाकिस्तानी डिजिटल वॉलेट चला रहा है, जो न सिर्फ़ मरकज़ से चंदा इकट्ठा कर रहा है, बल्कि गाजा की मदद के नाम पर भी धन जुटा रहा है. गाजा से जुड़ा ऐसा ही एक वॉलेट नंबर से जुड़ा है, जो खालिद अहमद के नाम पर रजिस्टर है, लेकिन इसका संचालन मसूद अज़हर का बेटा हम्माद अजहर करता है.

वॉलेट-टू-वॉलेट और वॉलेट-टू-कैश ट्रांसफर

साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ अमित दुबे ने जैश-ए-मोहम्मद के चयन के बारे में बताते हुए कहा कि ईजीपैसा और सदापे बैंकिंग नेटवर्क के बाहर काम करते हैं और एजेंटों के माध्यम से वॉलेट-टू-वॉलेट और वॉलेट-टू-कैश ट्रांसफर की अनुमति देते हैं, जिससे एफएटीएफ की निगरानी लगभग असंभव हो जाती है, और एफएटीएफ केवल स्विफ्ट या बैंक नेटवर्क के माध्यम से लेनदेन को ट्रैक कर सकता है.

खुफिया सूत्रों से पता चला है कि मसूद अजहर का परिवार एक समय में 7-8 मोबाइल वॉलेट इस्तेमाल करता है, हर 3-4 महीने में उन्हें बदलकर, नए खातों में एकमुश्त रकम ट्रांसफर करता है. बड़ी रकम मुख्य वॉलेट में जमा होती है, फिर उसे नकद निकासी या ऑनलाइन वॉलेट-आधारित ट्रांसफर के लिए 10-15 वॉलेट में छोटी-छोटी रकमों में बांट दिया जाता है. जैश-ए-मोहम्मद हर महीने कम से कम 30 नए वॉलेट एक्टिवेट करता है ताकि सोर्स ट्रेसिंग को रोका जा सके.

भारतीय खुफिया एजेंसियों की नजर

भारतीय खुफिया एजेंसियां ​​इस ऑनलाइन नेटवर्क पर नजर रख रही हैं. वर्तमान में, जैश-ए-मोहम्मद की 80% फंडिंग इन डिजिटल वॉलेट्स के ज़रिए होती है, और सालाना 80-90 करोड़ पाकिस्तानी रुपये (80-90 करोड़ पाकिस्तानी रुपये) का लेन-देन होता है. इस पैसे का इस्तेमाल हथियारों की खरीद, कैंप संचालन, दुष्प्रचार, लग्ज़री गाड़ियों और मसूद अज़हर के परिवार के लिए सामान खरीदने में किया जाता है. इसका एक बड़ा हिस्सा खाड़ी देशों से आता है. ईज़ीपैसा जैश-ए-मोहम्मद के लिए एक "डिजिटल हवाला" के रूप में काम करता है.

सूत्रों का कहना है कि जैश-ए-मोहम्मद डिजिटल वॉलेट, बैंक ट्रांसफर और नकदी के ज़रिए सालाना 100 करोड़ पाकिस्तानी रुपये से ज़्यादा जुटाता है. इसका लगभग 50% हथियारों पर खर्च होता है. जैश-ए-मोहम्मद का दावा है कि हर मरकज़ की लागत 1.25 करोड़ पाकिस्तानी रुपये होगी, लेकिन अनुमान है कि बिलाल के आकार के एक मरकज़ की लागत सिर्फ़ 4-5 करोड़ पाकिस्तानी रुपये होगी. सुभानअल्लाह या उस्मान-ओ-अली जैसे बड़े मरकज़ की लागत लगभग 10 करोड़ पाकिस्तानी रुपये हो सकती है, लेकिन यह नामुमकिन है कि सभी 313 मरकज़ इतने बड़े हों. अगर 3 बड़े और 310 छोटे मरकज़ बनाए जाएं, तो कुल निर्माण लागत लगभग 1.23 अरब पाकिस्तानी रुपये (123 करोड़ पाकिस्तानी रुपये) होगी, जिससे हथियारों की खरीद के लिए एक बड़ा रकम बच जाएगा.

313 मरकज बनाने के पीछे JeM का क्या है मकसद

सूत्रों का कहना है कि 313 मरकज बनाने के पीछे JeM के दो प्रमुख मकसद हो सकते हैं. पहला, लश्कर-ए-तैयबा के विशाल मरकज नेटवर्क की नकल करना और इसके प्रशिक्षण शिविरों का विकेंद्रीकरण करना ताकि भविष्य में भारत के हमले, जैसे ऑपरेशन सिंदूर , का पाकिस्तान में इसके आतंकी बुनियादी ढांचे पर कम से कम असर पड़े. दूसरा, मसूद अजहर और उसके परिवार के लिए सुरक्षित और आलीशान पनाहगाहें बनाना. इस योजना के तहत, 3-4 बड़े मरकज पनाहगाहों के रूप में काम करेंगे, मध्यम आकार के मरकज प्रशिक्षण शिविरों के रूप में काम करेंगे और बाकी रसद का काम संभालेंगे, जिससे JeM को देशभर में गतिविधियां चलाने की अनुमति मिल जाएगी जबकि पाकिस्तान सरकार अजहर की मौजूदगी से इनकार करती रहेगी.