नई दिल्ली: पाकिस्तान, जो दशकों से यहूदी समुदाय और इजरायल के खिलाफ कड़ा रुख अपनाता रहा है, अब धीरे-धीरे उसी इजरायल के साथ अपने रिश्ते सामान्य करने की कोशिश करता दिख रहा है. बदलते अंतरराष्ट्रीय हालातों को देखकर यह अनुमान लगाया जा रहा है कि आने वाले समय में पाकिस्तान अब्राहम अकॉर्ड पर हस्ताक्षर कर सकता है और इजरायल को मान्यता देने वाले देशों की सूची में शामिल हो सकता है. ऐसे में सवाल उठते हैं कि गाजा को लेकर जो पाकिस्तान वर्षों से भावुक बयान देता रहा है, क्या वो सब अब अमेरिकी दबाव और मदद के सामने फीका पड़ने लगा है?
हाल ही में पाकिस्तान और इजरायल के बीच कई मंचों पर सार्वजनिक संपर्क बढ़ा है. इसका ताजा उदाहरण लंदन में हुए ‘वर्ल्ड ट्रैवल मार्केट’ मेले में दिखा, जहां पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के पर्यटन सलाहकार सरदार यासिर इलियास खान और इजरायल के पर्यटन महानिदेशक माइकल इजाकोव की मुलाकात हुई. पाकिस्तान के अधिकारी पहले इजरायली प्रतिनिधियों से खुले तौर पर मिलने से बचते रहे हैं, लेकिन यह पहली बार था जब दोनों देशों के अधिकारी सार्वजनिक रूप से मिले. इससे पहले मिस्र में पाकिस्तान के आर्मी चीफ जनरल असीम मुनीर ने मोसाद और सीआईए अधिकारियों के साथ गुप्त मुलाकात की थी.
सितंबर में शहबाज शरीफ ने न्यूयॉर्क दौरे के दौरान अमेरिकन ज्यूइश कांग्रेस के अध्यक्ष से भी मुलाकात की थी. माना जा रहा है कि डोनाल्ड ट्रंप का प्रशासन पाकिस्तान पर इजरायल को मान्यता देने का दबाव बढ़ा रहा है. साथ ही, गाजा के पुनर्निर्माण की योजना में ट्रंप हमास को पूरी तरह खत्म करने का प्रस्ताव भी रख रहे हैं, जिसका पाकिस्तान समर्थन कर सकता है. यही वजह है कि इस्लामाबाद पर आरोप लग रहे हैं कि वह अब्राहम अकॉर्ड 2.0 में शामिल होने के लिए इजरायल के साथ गुप्त बातचीत कर रहा है.
इन घटनाओं पर भारत की नजर बनी हुई है. पाकिस्तान ने यह भी कहा है कि वह गाजा में हमास को हथियारों से मुक्त कराने के लिए अपनी सेना भेजने पर विचार कर रहा है. अमेरिकी योजना के तहत पाकिस्तान दक्षिण-मध्य एशिया की रणनीति में एक अहम हिस्सा बन सकता है, जिससे ईरान पर दबाव बढ़ाया जा सके. पाकिस्तान ने अमेरिका को पसनी बंदरगाह का इस्तेमाल करने का प्रस्ताव भी दिया है, जो ग्वादर के पास स्थित है. इससे ईरान की सुरक्षा चिंताएं बढ़ गई हैं.
साथ ही खबरें हैं कि अमेरिका बलूचिस्तान में दुर्लभ खनिजों की सुरक्षा के नाम पर सैनिक तैनात कर सकता है. अमेरिका पहले ही बलूच लिबरेशन आर्मी को आतंकवादी संगठन घोषित कर चुका है. विशेषज्ञों का मानना है कि अगर अमेरिका यहां सैनिक भेजता है, तो बलूचिस्तान एक नए संघर्ष का मैदान बन सकता है, जिससे स्थिति और बिगड़ सकती है.