Pakistan Gen Z Protest: पाकिस्तान में सोशल मीडिया पर चल रहे एक अभियान 'मिशन नूर' ने राजनीतिक हलकों और सुरक्षा प्रतिष्ठानों में हलचल मचा दी है. इस मुहिम का सोशल मीडिया पर आह्वान 20 सितंबर की रात 9 बजे एकजुट होकर छतों पर जाकर अजान देने और वीडियो साझा करने का है. आयोजकों का दावा है कि यह जनएकता दिखाने और सत्ता के खिलाफ शांतिपूर्ण दबाव बनाने की मुहिम है.
मिशन नूर के समर्थक सोशल पोस्ट्स में कह रहे हैं कि इस मुहिम में पाकिस्तान के आठ करोड़ से अधिक युवा यानी Gen-Z जुड़ गए हैं और इसे जनआंदोलन में बदला जा सकता है. कई वीडियो और Xमैसेज में पाकिस्तान के मार्शल आसिम मुनीर और प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ को छः दिन का अल्टीमेटम देने जैसी बातें चल रही हैं. इन दावों का स्रोत ज्यादातर सोशल मीडिया पोस्ट हैं.
ستمبر مشن نور
پورا پاکستان اللّٰہ کے حضور ایک ساتھ عرضی پیش کرے گا تیار رہیں۔۔۔!!! pic.twitter.com/NjYCevC0Oy— nomi khan (@nomi786230) September 12, 2025Also Read
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राजनीतिक संदर्भ में यह अभियान नेपाल में हालिया Gen-Z प्रदर्शन की घटनाओं से प्रेरित नजर आता है, जहां युवा और सोशल मीडिया ने तेजी से विरोध की लहर खड़ी की और सरकार पर दबाव बनाया. नेपाल की हालिया घटनाओं पर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया की रिपोर्टिंग ने इस तरह की प्रेरणा के सम्भावित प्रभाव को उजागर किया है.
ہم ان شاء اللہ پاکستانی وقت رات 9 بجے 20 ستمبر کو اس مشن نور کا حصہ ہوں گے۔💯✨#مشن_نُور #VideoViral #ReleaseImranKhan @ImranKhanPTI @Abubakrnazir804 @ahmad__bobak pic.twitter.com/SS7QcXElZj
— Mirza Usama official (@UsamaMirza60687) September 12, 2025
पाकिस्तान के शासकीय और सैन्य नेताओं का नाम सीधे तौर पर इस अभियान के लक्ष्यों में आने का संदेश सोशल मीडिया पर मिल रहा है. इसी कारण सुरक्षा विशेषज्ञ और सरकारी चैनल सतर्कता बरत रहे हैं. सैन्य नेतृत्व में हाल में हुए बदलाव और फील्ड मार्शल आसिम मुनीर की स्थिति को भी लेकर बहस चल रही है.
नेपाल और फ्रांस में हुए प्रदर्शनों के बाद सोशल-मीडिया प्रेरित अपील है. जो पाकिस्तान ने मुनीर एंड मंडली को उखाड़ फेंकने के लिए ऐलान-ए-जंग छेड़ दिया है. जिसे 'मिशन नूर' नाम दिया गया है. जिसका असर अगले कुछ दिनों में ही स्पष्ट होगा. खासकर 20 सितंबर रात के बाद. अगर यह सक्सेसफुल हुआ तो पाकिस्तान सरकार के खिलाफ दूसरा मिशन बहुत जल्द लॉन्च होगा.
विशेषज्ञों का मानना है कि सोशल मीडिया-आधारित अभियानों की क्षमता बड़ी है, पर उनकी वास्तविक ताकत स्थानीय संगठन, नेताओं की भागीदारी और व्यापक जनसमर्थन पर निर्भर करती है. मौजूदा परिस्थितियों में किसी भी बड़े सार्वजनिक कार्यक्रम या आह्वान को लेकर सरकारी और सुरक्षा तंत्र दोनों सतर्कता दिखा रहे हैं. साथ ही, सोशल पोस्ट्स में फैल रही हिंसक या अवैध कार्रवाई की बातों के संकेत को लेकर भी सावधानी बरतने की सलाह दी जा रही है.