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India Daily

समलैंगिकों को मिलेगी पैटरनिटी लीव, यूरोप के इस देश में LGBTQ+ समुदाय के लिए ऐतिहासिक पल

इटली की संवैधानिक अदालत ने एक ऐतिहासिक फैसले में समलैंगिक महिला जोड़ों के लिए पितृत्व अवकाश (Paternity Leave) को मंजूरी दी है. इस फैसले के तहत अब वह महिला, जो जैविक मां नहीं है लेकिन सिविल यूनियन के तहत बच्चे की देखभाल कर रही है, उसे भी 10 दिनों का पितृत्व अवकाश मिलेगा. यह फैसला न सिर्फ LGBTQ+ समुदाय के अधिकारों की दिशा में एक बड़ा कदम है, बल्कि पारिवारिक और सामाजिक मान्यताओं को लेकर भी बड़ी बहस को जन्म देता है.

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Edited By: Kuldeep Sharma
LGBTQ+
Courtesy: WEB

इटली की सर्वोच्च संवैधानिक अदालत ने फैसला सुनाया है कि समलैंगिक महिला जोड़ों में गैर-जैविक मां को भी पितृत्व अवकाश मिलेगा. कोर्ट ने इसे बच्चे के सर्वोत्तम हित और समान पालन-पोषण का अधिकार बताते हुए फैसला सुनाया. इस ऐतिहासिक फैसले से LGBTQ+ समुदाय को कानूनी मान्यता और समान अधिकार की दिशा में बड़ी राहत मिली है.

अदालत ने कहा कि माता-पिता की जिम्मेदारियां यौन रुझान पर आधारित नहीं हो सकतीं. पितृत्व अवकाश का मकसद नवजात बच्चे के साथ जुड़ाव और देखभाल है, जो किसी एक मां या पिता तक सीमित नहीं होना चाहिए. 2001 का जो कानून अब तक सिर्फ जैविक पिता को यह अधिकार देता था, उसे कोर्ट ने असंवैधानिक करार दिया. अदालत ने कहा कि जो गैर-जैविक मां बच्चे की परवरिश में बराबरी से भूमिका निभा रही है, वह भी यही अधिकार पाने की हकदार है.

सरकार की पारंपरिक नीतियों को झटका

यह फैसला ऐसे वक्त में आया है जब इटली की दक्षिणपंथी सरकार पारंपरिक परिवार मॉडल को बढ़ावा देने और सरोगेसी जैसे विकल्पों पर पाबंदी लगाने में जुटी है. प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी की सरकार ने 2023 में ऐसा कानून पास किया था जो विदेश में सरोगेसी कराने पर भी सज़ा का प्रावधान करता है. अदालत ने स्पष्ट किया कि जोड़े चाहे IVF के लिए विदेश क्यों न गए हों, बच्चों को समान अधिकार देने से इनकार नहीं किया जा सकता.

समर्थन और विरोध की प्रतिक्रिया

यह फैसला LGBTQ+ समुदाय के लिए तो बड़ी जीत है, लेकिन देश में इसे लेकर मतभेद भी देखने को मिल रहे हैं. सांसद और LGBTQ+ एक्टिविस्ट एलेसेंड्रो ज़ान ने इसे "अन्याय और भेदभाव के अंत की दिशा में ऐतिहासिक कदम" बताया. उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा, “प्यार ही परिवार है, और हर बच्चे को दोनों माता-पिता से देखभाल और सुरक्षा पाने का अधिकार है.”

हालांकि, 'प्रो-लाइफ एंड फैमिली' जैसे रूढ़िवादी संगठनों ने इसे “न्याय व्यवस्था पर लैंगिक पागलपन का प्रभाव” करार दिया और फैसले का मज़ाक उड़ाया.