गाजा युद्ध के 23 महीने बाद पहली बार ऐसा संकेत मिला है कि इजरायल और हमास के बीच युद्धविराम की दिशा में ठोस कदम उठ सकते हैं. सोमवार को इजरायल के विदेश मंत्री गिडोन सार ने हंगरी में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर घोषणा की कि उनका देश अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रस्ताव को मानने के लिए तैयार है.
हालांकि इजरायल ने साफ कर दिया है कि बंधकों की रिहाई और हथियार डालने के बिना यह समझौता संभव नहीं होगा. वहीं, हमास ने भी कहा है कि वह बातचीत को तैयार है, लेकिन उसके अपने कई कड़े शर्तें हैं.
इजरायल के विदेश मंत्री गिडोन सार ने कहा कि उनका देश युद्ध खत्म करने के लिए 'फुल डील' के पक्ष में है. उन्होंने शर्त रखी कि जब तक सभी बंधक रिहा नहीं होते और हमास हथियार नहीं डालता, तब तक कोई समझौता संभव नहीं होगा. इस ऐलान से कुछ घंटे पहले ही इजरायल ने हमास को चेतावनी दी थी कि अगर बंधक नहीं छोड़े गए और हथियार नहीं सौंपे गए, तो गाजा पर 'भयंकर तूफान' जैसी कार्रवाई की जाएगी. रक्षा मंत्री इसराइल कैट्ज ने कहा था कि सेना बड़े पैमाने पर हमले करने के लिए तैयार है.
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया था कि इजरायल पहले ही उनके प्रस्ताव को स्वीकार कर चुका है. उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल पर लिखा कि 'हर कोई चाहता है कि बंधक घर लौटें और युद्ध खत्म हो. इजरायल ने मेरी शर्तें मान ली हैं. अब वक्त है कि हमास भी मान ले. यह मेरी आखिरी चेतावनी है, इसके बाद कोई दूसरा मौका नहीं मिलेगा.' ट्रंप के इस बयान ने स्थिति को और गंभीर बना दिया है.
हमास ने भी संकेत दिया है कि वह बातचीत के लिए तैयार है. संगठन ने कहा कि वह अमेरिकी पक्ष से मिले कुछ विचारों पर चर्चा करने को राजी है और लगातार मध्यस्थों के संपर्क में है. हालांकि उसने साफ किया कि बंधकों की रिहाई तभी संभव होगी जब युद्ध खत्म करने की स्पष्ट घोषणा हो, गाजा से इजरायली सेना पूरी तरह हटे और गाजा के प्रशासन के लिए स्वतंत्र फिलिस्तीनी समिति का गठन किया जाए. हमास ने कहा 'हम हर उस पहल का स्वागत करते हैं जो हमारे लोगों पर हो रहे हमलों को रोकने की दिशा में मददगार हो.'
इजरायल और हमास दोनों ने पहली बार बातचीत की इच्छा जताई है, लेकिन दोनों की शर्तें एक-दूसरे से काफी अलग हैं. जहां इजरायल केवल बंधक रिहाई और हथियार डालने को शर्त मान रहा है, वहीं हमास युद्ध खत्म करने और राजनीतिक नियंत्रण अपने हाथ में लेने पर अड़ा है. अब देखने वाली बात होगी कि क्या अमेरिकी मध्यस्थता दोनों पक्षों को किसी साझा बिंदु पर ला पाएगी. विशेषज्ञों का मानना है कि यह ट्रंप की पहल का सबसे अहम इम्तहान है.