भारत और मालदीव लंबे समय एक-दूसरे के बेहतरीन साझेदार रहे हैं. पिछले कुछ समय से ये संबंध खट्टे-मीठे होते रहे हैं. हाल ही में 'इंडिया आउट' के नारे के साथ सत्ता में आए राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू ने जब से वहां सत्ता संभाली है, तब से वह चीन के इशारे पर खेलने लगे हैं. जिस तरह से उनके मंत्रियों ने पीएम मोदी को लेकर बयान दिए हैं. उससे यह साफतौर पर स्पष्ट है कि यह एक सोची समझी राजनीति का हिस्सा था जो कि चीन की तरफ से प्रायोजित था.
शायद यही वह कारण था कि वहां की सरकार ने इन तीन मंत्रियों को सस्पेंड तो कर दिया लेकिन इनके उपर कोई बड़ी कार्रवाई नहीं की गई. भारत के साथ मालदीव अपने सैन्य संबंधों को भी तोड़ चुका है, यानी वहां पर जो इंडियन नेवी और खासतौर पर इंडियन एयरफोर्स का डिप्लॉयमेंट था. मालदीव ने इस समझौते को जारी नहीं रखा, जिसके कारण भारतीय सेना को वहां से वापस आना पड़ा. यह घटना सामरिक लिहाज से बेहद खतरनाक साबित हो सकती है.
किसी दूसरे देश में भारत की सेना रहने के बारे में कई बार लोगों के मन में भी सवाल आता है कि आखिर भारत की सेना वहां क्या कर रही थी? इसके पीछे ऐतिहासिक घटनाक्रम है जो बताता है कि भारत की सेना मालदीव में क्यों, कब और कैसे पहुंची. आइए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं.
ऑपरेशन कैक्टस ने बचाई थी मालदीव की सत्ता
दोनों देशों के बीच साल 1980 के दशक में संबंध सबसे ज्यादा मधुर थे. 1988 में मालदीव में सत्ता परिवर्तन की कोशिश को भारत के सैन्य बल ने नाकाम कर दिया था. भारत ने उस दौरान मालदीव की मदद के लिए 'ऑपरेशन कैक्टस' चलाया था. इस ऑपरेशन की मदद से वहां की सरकार को गिराने के प्रयास असफल हो गए. उस समय मालदीव के तत्कालीन राष्ट्रपति मौमून अब्दुल गयूम 3 नवंबर 1988 को भारत की यात्रा पर आने वाले थे. उन्हें लाने के लिए भारतीय विमान भेजा गया था, जो कि आधे रास्ते ही पहुंचा था कि तभी भारतीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी को चुनाव के कारण बाहर जाना पड़ गया. राजीव गांधी ने गयूम को फोन करके आग्रह किया कि आप फिर कभी भारत आएं क्योंकि उन्हें किसी जरूरी काम की वजह से दिल्ली से बाहर जाना पड़ रहा है.
राष्ट्रपति गयूम के खिलाफ विद्रोह की योजना बनाने वाले मालदीव के व्यापारी अब्दुल्ला लुथूफी और उनके साथी सिक्का अहमद इस्माइल मानिक थे. इन लोगों ने श्रीलंका के चरमपंथी संगठन PLOT (पीपुल्स लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन ऑफ तमिल ईलम) के भाड़े के लड़ाकुओं के साथ बगावत शुरू की थी. उसी समय मालदीव में भारत के उच्चायुक्त ए.के बैनर्जी भारत आए हुए थे. उन्होंने यह बात देश के तत्तकालीन डिप्टी होम मिनिस्टर पी चिदंबरम को दी. उन्होंने चिदंबरम को बताया, 'माले में मेरे सचिव ने बताया है कि मालदीव में विद्रोह शुरू हो गया है, लोग सड़कों पर गोलियां चलाते हुए इधर-उधर घूम रहे हैं. राष्ट्रपति गयूम एक सेफ हाउस में छिपे हुए हैं और उन्होंने भारत से अपील की है कि उनको बचाने के लिए तुरंत अपने सैनिक भेजे.'
मदद की गुहार पर तुरंत तैयार हुआ भारत
इस घटना की जानकारी के बाद साउथ ब्लॉक के ऑर्मी ऑपरेशन रूम में हाई लेवल मीटिंग बुलाई गई. इस बैठक को कलकत्ता से लौटे पीएम राजीव गांधी लीड करने वाले थे. इस बैठक में पीएम के अलावा पीएमओ के संयुक्त सचिव रोनेन सेन और विदेश मंत्रालय में संयुक्त सचिव कुलदीप सहदेव के साथ हवाई संचालक के प्रमुख, रॉ के तत्कालीन प्रमुख और उप सेनाध्यक्ष शामिल हुए थे.
बैठक के बाद भारतीय सेना के उप सेनाध्यक्ष लेफ़्टिनेंट जनरल रोडरिग्स ने ब्रिगेडियर फ़ारूक बुल बलसारा को फ़ोन मिलाकर पैराट्रूप्स को तैयार रहने के लिए कहा. बलसारा ने इससे पहले मालदीव का नाम भी नहीं सुना था. जानकारी के लिए इंटेलिजेंस ऑफ़िसर लाइब्रेरी से एक एटलस उठा लाया. जिससे उन्हें पता चला कि मालदीव 1200 द्वीपों का एक समूह है जो भारत के सुदूर दक्षिणी किनारे से 700 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में है. सैनिकों से भरे विमान ने आगरा के खेरिया हवाई ठिकाने के रनवे से उड़ान भरा, जैसे ही एयरवेज भारतीय सीमा को पार करके विदेशी सीमा में प्रवेश किया, तभी ब्रिटिश एयरवेज की नजर इंडियन एयरवेज पर पड़ी. जिसमें पूछताछ के दौरान भारतीय एयरवेज को अपने गंतव्य के बारे में बताना पड़ा. शायद यही वो वजह थी, बीबीसी ने उसी रात अपने बुलेटिन में इस बात का जिक्र कर दिया था.
भारतीय सेना ने बोल दिया धावा
भारतीय विमान की लैंडिंग के वक्त मालदीव के हवाई अड्डे पर घुप्प अंधेरा था. जैसे ही IL76 विमान रुका, मिनटों में 150 भारतीय सैनिक और कई जीपें बाहर आ गईं. वहीं थोड़ी ही देर में दूसरा विमान उतरा और उसने आनन-फानन मे मालदीव के एटीसी (Air Traffic Control), जेटी और हवाई पट्टी के उत्तरी और दक्षिणी किनारे पर नियंत्रण कर लिया. उसी वक्त एटीसी से ही ब्रिगेडियर बुलसारा ने राष्ट्रपति गयूम से उनके गुप्त ठिकाने पर रेडियो से संपर्क स्थापित करके उनकी सुरक्षा का विश्वास दिलाया. उसके बाद करीब 7 से 8 घंटे के आपरेशन के दौरान सैकड़ों विद्रोहियों की जान जाने के बाद, वहां के राष्ट्रपति को सेफ हाउस से सुरक्षित बाहर निकालने में सफल हुए.
गयूम उस घटना को लेकर काफी घबराए हुए थे लेकिन उन्होंने अपना नियंत्रण न खोते हुए, भारतीय सेना को उनकी जान बचाने और विद्रोह को नष्ट करने की खुशी जताई और भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को सैटेलाइट के माध्यम से फोन करके आभार जताया. उस वक्त मालदीव के राष्ट्रपति की जान बचाने पहुंची भारतीय सेना लगभग 4 दशक से वहीं मौजूद थी लेकिन अब वह लौट आई है.