Trump Gaza Proposal: गाजा युद्ध को समाप्त करने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ओर से रखी गई शांति योजना को हमास ने आंशिक रूप से स्वीकार किया है. हालांकि, संगठन के राजनीतिक और सैन्य विंग के बीच गहरे मतभेद इस प्रस्ताव को अंतिम रूप तक पहुंचने में बाधा बन रहे हैं. वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट के अनुसार हमास ने बंधकों की रिहाई और गाजा प्रशासन सौंपने की बात मानी है, लेकिन हथियार डालने जैसे अहम मुद्दों पर अब भी असहमति बनी हुई है.
मध्यस्थों का कहना है कि हमास के शीर्ष राजनीतिक वार्ताकार खलील अल-हैय्या और कई वरिष्ठ नेता योजना को अपनाने के पक्ष में हैं लेकिन गाजा में मौजूद सैन्य नेतृत्व पर उनका प्रभाव सीमित है. हमास के सशस्त्र विंग का नेतृत्व कर रहे इज्जेद्दीन अल-हद्दाद ने हथियारों का एक हिस्सा मिस्र या संयुक्त राष्ट्र को सौंपने की इच्छा जताई है, लेकिन संगठन छोटे हथियार अपने पास रखना चाहता है.
युवा लड़ाकों को निहत्था करना सबसे बड़ी चुनौती माना जा रहा है. ये वे लोग हैं जिन्होंने युद्ध में अपने घर या परिवार खोए हैं और अब हथियार छोड़ना आत्मसमर्पण जैसा मानते हैं. यही कारण है कि संगठन के अंदर विभाजन और बढ़ गया है. हमास ने अपने बयान में कहा कि वह योजना पर आगे बातचीत करना चाहता है लेकिन सैन्य विंग के नेताओं ने साफ किया है कि किसी भी बंधक रिहाई को इजरायल की वापसी की ठोस समयसीमा से जोड़ा जाना चाहिए. यही कारण है कि उनके बयान को एक '72 घंटे का युद्धविराम' बताकर आलोचना की जा रही है.
ट्रंप ने इस आंशिक सहमति को 'बड़ा कदम' बताया और इजरायल से बमबारी रोकने की अपील की. वहीं, इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने सतर्क प्रतिक्रिया दी और कहा कि वे अमेरिका के साथ मिलकर आगे की प्रक्रिया तय करेंगे. अमेरिकी सीनेटर लिंडसे ग्राहम ने हमास की स्थिति को 'पूर्वानुमानित अस्वीकार' बताया. उनका कहना है कि बिना पूर्ण निरस्त्रीकरण और बंधक रिहाई के यह योजना अधूरी है.
मध्यस्थ देशों कतर, मिस्र और तुर्की का दबाव भी हमास पर बढ़ रहा है. उनका कहना है कि यह अंतिम मौका हो सकता है, अन्यथा हमास राजनीतिक और कूटनीतिक समर्थन खो सकता है लेकिन खतरा यह भी है कि यदि हमास मान भी जाए तो उसके कई लड़ाके अलग होकर अन्य कट्टरपंथी समूहों में शामिल हो सकते हैं. इजरायली सेना का कहना है कि गाजा में हमास की संरचना अब टूट चुकी है और संगठन छोटे-छोटे गुटों में बंट चुका है. ज्यादातर वरिष्ठ नेता मारे जा चुके हैं और अब युवा लड़ाके छापामार हमलों पर निर्भर हैं.