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India Daily

बांग्लादेश और श्रीलंका के बाद अब नेपाल में भी बड़ा राजनीतिक भूचाल, भारत के पड़ोस में Gen-Z के आंदोलनों की इनसाइड स्टोरी

नेपाल में सोशल मीडिया बैन के खिलाफ शुरू हुआ युवाओं का आंदोलन व्यापक विरोध में बदल गया. यह प्रदर्शन महज इंस्टाग्राम या यूट्यूब तक सीमित नहीं रहा, बल्कि भ्रष्टाचार और सत्ताधारी वर्ग के खिलाफ गुस्से का विस्फोट बन गया. नतीजा यह हुआ कि प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को इस्तीफा देना पड़ा. दक्षिण एशिया में बांग्लादेश और श्रीलंका की तरह नेपाल में भी 'Gen Z' ने सत्ता को हिला दिया है.

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Edited By: Kuldeep Sharma
nepal protest
Courtesy: web

काठमांडू की सड़कों पर सोशल मीडिया बैन के खिलाफ उठी आवाज ने नेपाल की राजनीति की नींव हिला दी. शुरुआत में इसे महज युवाओं की नाराजगी समझा गया कि वे इंस्टाग्राम या व्हाट्सएप इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं, लेकिन आंदोलन अचानक उग्र हो गया और प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को पद छोड़ना पड़ा.

दक्षिण एशिया में पिछले कुछ वर्षों में बांग्लादेश और श्रीलंका में भी युवाओं ने सत्ता परिवर्तन में अहम भूमिका निभाई थी. नेपाल अब इस श्रृंखला का नया उदाहरण बन गया है.

सोशल मीडिया बैन से उठा तूफान

नेपाल सरकार ने हाल ही में इंस्टाग्राम, यूट्यूब, व्हाट्सएप और एक्स जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर बैन लगाया था. सरकार का तर्क था कि ये कंपनियां विदेशी हैं और देश की अर्थव्यवस्था से पर्याप्त राजस्व नहीं दे रहीं. इसे राष्ट्रीय हित में बताया गया. लेकिन युवाओं ने इसे सीधे अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमला माना. खासकर 'Gen Z' यानी नए दौर के युवाओं ने इस फैसले का जमकर विरोध किया. देखते ही देखते आंदोलन सड़कों पर आ गया और संसद तक पहुंच गया.

भ्रष्टाचार और ‘नेपो किड्स’ पर गुस्सा

शुरुआत भले ही सोशल मीडिया बैन से हुई, लेकिन आंदोलन का असली चेहरा भ्रष्टाचार और नेताओं के परिवारवाद विरोध के रूप में सामने आया. टिकटॉक पर वायरल हुए वीडियो ने युवाओं के गुस्से को और हवा दी. इसमें दिखाया गया कि सामान्य नेपाली युवा बेरोजगारी और आर्थिक तंगी से जूझ रहा है, जबकि राजनेताओं के बच्चे आलीशान जिंदगी जी रहे हैं. हैशटैग #NepoKid और #PoliticiansNepoBabyNepal ट्रेंड करने लगे. साथ ही राष्ट्रीय एयरलाइंस से जुड़े विमान खरीद घोटाले की जांच रिपोर्ट भी युवाओं के गुस्से का केंद्र बनी.

बांग्लादेश और श्रीलंका से मिली प्रेरणा

नेपाल के युवा इस आंदोलन में अकेले नहीं हैं. उन्होंने पड़ोसी देशों की उठी लहरों से प्रेरणा ली. बांग्लादेश में 2024 में छात्रों ने नौकरी में कोटा प्रणाली के खिलाफ आंदोलन किया था, जिसे वहां की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने सत्ता बनाए रखने का हथियार बना रखा था. इस विरोध ने हसीना को देश छोड़कर भारत भागने पर मजबूर कर दिया. इसी तरह 2022 में श्रीलंका में महंगाई और भ्रष्टाचार के खिलाफ युवा सड़कों पर उतरे और राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे को इस्तीफा देना पड़ा. नेपाल के युवा इन उदाहरणों से ऊर्जा लेते दिखे.

विपक्ष भी नहीं बचा गुस्से से

नेपाल में यह विरोध केवल सत्ताधारी ओली सरकार तक सीमित नहीं रहा. प्रदर्शनकारियों ने विपक्षी नेताओं के घरों को भी निशाना बनाया. यहां तक कि कभी उग्र माओवादी नेता रहे पुष्पकमल दहल 'प्रचंड' का घर भी गुस्से से बच नहीं सका. यह साफ संकेत है कि युवाओं का आक्रोश किसी दल विशेष के खिलाफ नहीं बल्कि पूरे राजनीतिक तंत्र के खिलाफ है. विशेषज्ञों का कहना है कि यह आंदोलन युवाओं की उस हताशा को दर्शाता है, जिसमें वे खुद को नीति-निर्माण से अलग-थलग महसूस करते हैं.

भारत की चिंता और सीमा पर सतर्कता

नेपाल में हिंसक घटनाओं और 19 से ज्यादा मौतों के बाद भारत ने स्थिति पर चिंता जताई है. नई दिल्ली ने हिंसा की निंदा की है और कहा है कि नेपाल की जनता को शांति और लोकतंत्र के रास्ते पर आगे बढ़ना चाहिए. भारत ने अपनी नेपाल सीमा पर निगरानी कड़ी कर दी है ताकि अशांति का असर उसके इलाके तक न पहुंचे. हालांकि भारतीय अधिकारियों का मानना है कि इस आंदोलन का असर भारत में फैलने की संभावना नहीं है.

नेपाल का आगे का रास्ता

प्रधानमंत्री ओली के इस्तीफे के बाद नेपाल के सामने अब सबसे बड़ी चुनौती है कि वह युवाओं के गुस्से को कैसे शांत करें और राजनीतिक स्थिरता बहाल कैसे करें. जैसे बांग्लादेश और श्रीलंका में युवाओं ने सत्ता परिवर्तन कराया, वैसे ही नेपाल में भी 'Gen Z' अब बदलाव की राह तय कर सकता है. सवाल यह है कि क्या ये युवा आंदोलन किसी स्थायी राजनीतिक विकल्प में बदल पाएगा या फिर यह सिर्फ एक और अस्थायी विस्फोट साबित होगा. फिलहाल इतना तय है कि नेपाल की राजनीति में एक नया दौर शुरू हो चुका है.