Russia-Ukraine War: रूस-यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने के लिए कई वैश्विक प्रयास किए जा रहे हैं. इस दिशा में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का वादा भी महत्वपूर्ण है. ट्रम्प ने कहा था कि वह राष्ट्रपति बनने के बाद इस युद्ध को खत्म करने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे. अब खबर है कि इस दिशा में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और ट्रम्प के बीच एक मुलाकात हो सकती है, जो रूस-यूक्रेन संघर्ष को समाप्त करने के प्रयासों में मददगार हो सकती है.
रूस और अमेरिका के बीच संभावित बैठक के लिए भारत का नाम सामने आ रहा है. क्रेमलिन उन देशों की सूची तैयार कर रहा है, जहां यह ऐतिहासिक मुलाकात हो सकती है. इस मामले में भारत को सबसे उपयुक्त स्थल माना जा रहा है. रूस और अमेरिका दोनों के लिए भारत का रुख सकारात्मक और निष्पक्ष रहा है, जो युद्ध की समाप्ति में एक अहम भूमिका निभा सकता है. साथ ही, पुतिन का 2025 में भारत दौरा भी प्रस्तावित है, जिससे मुलाकात की संभावना और भी मजबूत हो जाती है.
भारत की कूटनीतिक भूमिका
भारत ने हमेशा से ही रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान निष्पक्ष रुख अपनाया है, जिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया है. इसके अलावा, 2025 में भारत QUAD सम्मेलन की मेजबानी करेगा, जिसमें अमेरिकी राष्ट्रपति भी शामिल होंगे. इस संदर्भ में भारत की कूटनीतिक भूमिका और अंतरराष्ट्रीय स्थिति इसे एक आदर्श स्थल बनाती है जहां शांति के प्रयास किए जा सकते हैं.
स्लोवाकिया का प्रस्ताव और रूस की पसंद
हालांकि, स्लोवाकिया ने भी पुतिन से मुलाकात के लिए अपने देश का निमंत्रण भेजा था, लेकिन क्रेमलिन के सूत्रों के अनुसार, रूस ऐसे देश की तलाश में है, जो मित्रवत और सहज माहौल प्रदान कर सके. पुतिन ने युद्ध के बाद केवल उन देशों का दौरा किया है, जो रूस के मित्र माने जाते हैं, जैसे चीन, मंगोलिया, और उत्तर कोरिया. इस वजह से भारत एक आदर्श विकल्प प्रतीत होता है.
यूरोप में क्यों नहीं?
अमेरिका और रूस के राष्ट्रपतियों की मुलाकातें आमतौर पर यूरोप में होती रही हैं, जैसे 2021 में स्विट्जरलैंड के जिनेवा में बाइडन और पुतिन की मुलाकात हुई थी. हालांकि, वर्तमान में डोनाल्ड ट्रम्प यूरोप के कुछ देशों में जाने से बच रहे हैं, जिससे भारत में मुलाकात होने की संभावना और भी मजबूत होती है.
भारत की भूमिका और कूटनीतिक सफलता
अगर यह मुलाकात भारत में होती है, तो यह न केवल रूस-यूक्रेन युद्ध के समाधान के लिए एक महत्वपूर्ण कदम होगा, बल्कि भारत की कूटनीतिक साख को भी वैश्विक स्तर पर मजबूत करेगा. अब सभी की नजरें क्रेमलिन की आधिकारिक पुष्टि पर टिकी हैं, जो जल्द ही सामने आ सकती है.