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क्या है द्विपक्षीय प्रत्यर्पण संधि जिसके तहत बांग्लादेश ने भारत से की शेख हसीना को सौंपने की मांग

बांग्लादेश ने भारत से अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना और पूर्व गृह मंत्री असदुज्जामान खान को प्रत्यर्पित करने की मांग की है. दोनों को इंटरनेशनल क्राइम्स ट्रिब्यूनल ने छात्र आंदोलन पर कार्रवाई के मामले में मौत की सजा सुनाई है.

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Edited By: Kuldeep Sharma
Sheikh Hasina india daily
Courtesy: social media

नई दिल्ली: बांग्लादेश की राजनीति एक बार फिर उथल-पुथल में है. इंटरनेशनल क्राइम्स ट्रिब्यूनल द्वारा अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना और पूर्व गृह मंत्री असदुज्जामान खान को मौत की सजा सुनाए जाने के बाद अब ढाका ने भारत से औपचारिक रूप से उनका प्रत्यर्पण मांगा है. 

हसीना पिछले साल हुए छात्र आंदोलन के बाद देश छोड़कर भारत आ गई थीं और तब से यहीं रह रही हैं. ढाका का कहना है कि द्विपक्षीय प्रत्यर्पण संधि के तहत भारत पर उन्हें वापस सौंपने की जिम्मेदारी बनती है, जबकि हसीना इसे राजनीतिक साजिश बता रही हैं.

बांग्लादेश ने भारत से की तत्काल प्रत्यर्पण की मांग

बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने सोमवार को आधिकारिक बयान जारी कर भारत से अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना और पूर्व गृह मंत्री असदुज्जामान खान को तुरंत सौंपने की अपील की है. मंत्रालय ने कहा कि इंटरनेशनल क्राइम्स ट्रिब्यूनल ने दोनों को जुलाई 2025 में हुए छात्र आंदोलन पर हुई कार्रवाई के लिए दोषी करार दिया है. ढाका ने चेतावनी दी कि किसी भी देश द्वारा उन्हें शरण देना 'अमैत्रीपूर्ण व्यवहार' और न्याय का मजाक होगा. मंत्रालय ने भारत पर यह दायित्व भी दोहराया कि दोनों देशों के बीच प्रत्यर्पण संधि लागू है.

हसीना और खान ‘जुलाई नरसंहार’ में हैं दोषी

ढाका स्थित इंटरनेशनल क्राइम्स ट्रिब्यूनल ने अपने फैसले में कहा कि आंदोलन के दौरान सरकारी बलों द्वारा की गई कार्रवाई में सैकड़ों छात्रों की मौत हुई. अदालत ने इसे 'क्राइम्स अगेंस्ट ह्यूमैनिटी' करार देते हुए हसीना और खान को फांसी की सजा सुनाई है. असदुज्जामान खान को प्रदर्शनकारियों पर 'घातक बल' के इस्तेमाल का प्रत्यक्ष दोषी बताया गया. हसीना बीते साल हिंसक प्रदर्शनों के दौरान देश से निकलकर भारत आ गई थीं और तब से यहीं रह रही हैं.

क्या है भारत-बांग्लादेश के बीच द्विपक्षीय प्रत्यर्पण संधि

भारत और बांग्लादेश के बीच 2013 में द्विपक्षीय प्रत्यर्पण संधि लागू हुई थी, जिसके तहत दोनों देश एक-दूसरे से वांछित व्यक्तियों को अपराध के आधार पर सौंप सकते हैं. इस संधि के मुताबिक, अगर किसी अपराध में कम से कम एक साल की जेल का प्रावधान हो तो उसे प्रत्यर्पित किया जा सकता है. हालांकि, संधि राजनीतिक अपराधों के प्रत्यर्पण से इनकार करने की अनुमति भी देती है. लेकिन हत्या, जनसंहार और अपहरण जैसे गंभीर अपराध राजनीतिक श्रेणी से बाहर रखे गए हैं, जो शेख हसीना के मामले में प्रत्यर्पण प्रक्रिया को जटिल बना सकते हैं.

हसीना ने मामले पर क्या कहा?

पीटीआई से बातचीत में हसीना ने कहा कि वह 'अपने आरोपियों का सामना करने से नहीं डरतीं' और वह एक निष्पक्ष अंतरराष्ट्रीय अदालत में अपना पक्ष रखने को तैयार हैं. उन्होंने अंतरिम सरकार को चुनौती दी कि अगर उसके पास ठोस सबूत हैं तो वह मामला हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) में ले जाए. उन्होंने कहा कि ढाका की मौजूदा व्यवस्था 'अराजक और हिंसक' है तथा यह फैसला जनता को उनके लोकतांत्रिक अधिकारों से वंचित करने की कोशिश है.

चुनाव से पहले आया फैसला

यह फैसला ऐसे समय आया है जब बांग्लादेश में फरवरी में चुनाव होने हैं और हसीना की अवामी लीग को पहले ही चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित कर दिया गया है. हसीना ने आरोप लगाया कि मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार राजनीतिक प्रतिशोध चला रही है. उन्होंने ICT को 'कंगारू कोर्ट' बताते हुए कहा कि जुलाई-अगस्त की घटनाओं की जांच कभी निष्पक्ष नहीं रही और यह अदालत उनके विरोधियों द्वारा चलाई जा रही है.

1971 के सहयोगियों के लिए बना था ट्रिब्यूनल

इंटरनेशनल क्राइम्स ट्रिब्यूनल मूल रूप से 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान पाकिस्तानी सेना के सहयोगियों पर कार्रवाई के लिए बनाया गया था. हसीना ने आरोप लगाया कि मौजूदा सरकार ने इसके दायरे में फेरबदल करके पूर्व शासन के नेताओं को भी निशाने पर ले लिया है. विपक्षी दल और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन भी लंबे समय से इस अदालत की पारदर्शिता पर सवाल उठाते रहे हैं.