महिला ने नहीं मांगी एलिमनी, गिफ्ट में मिले कंगन भी लौटाए, सुप्रीम कोर्ट ने तलाक के इस अनोखे केस को बताया दुर्लभ और सराहनीय

सुप्रीम कोर्ट ने आपसी सहमति से तलाक के मामले में महिला के व्यवहार की जमकर सराहना की. मामला इसलिए विशेष है, क्योंकि महिला ने तलाक लेते समय गुजारा भत्ता या किसी भी प्रकार की आर्थिक मदद की मांग नहीं की.

Anuj

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक आपसी सहमति से तलाक (mutual consent divorce) के मामले में महिला के व्यवहार की जमकर सराहना की. मामला इसलिए विशेष है, क्योंकि महिला ने तलाक लेते समय गुजारा भत्ता (alimony) या किसी भी प्रकार की आर्थिक मदद की मांग नहीं की. इतना ही नहीं, विवाह के समय पति की मां द्वारा उपहार में दिए गए सोने के कंगन भी महिला ने वापस कर दिए. अदालत ने इसे अत्यंत दुर्लभ समझौता बताया और अपने संवैधानिक अधिकारों के तहत विवाह को भंग कर दिया.

भरण-पोषण की मांग नहीं की

रिपोर्ट के अनुसार, तलाक से जुड़ा यह मामला न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की खंडपीठ के समक्ष सुनवाई के लिए सूचीबद्ध था. सुनवाई की शुरुआत में महिला की ओर से पेश हुए अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि उनकी क्लाइंट किसी प्रकार का भरण-पोषण या अन्य आर्थिक प्रतिपूर्ति की मांग नहीं कर रही हैं. अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि सोने के कंगन लौटाने की प्रक्रिया शेष है.

'दुर्लभ और सराहनीय समझौता'

शुरुआत में पीठ ने गलती से यह समझा कि महिला अपना स्त्री-धन (stridhan) वापस मांग रही हैं, लेकिन जैसे ही अधिवक्ता ने स्पष्ट किया कि महिला खुद यह कंगन लौट रही हैं, जो शादी के समय पति की मां ने उन्हें दिए थे, न्यायमूर्ति पारदीवाला मुस्कुराए और कहा कि यह बहुत ही दुर्लभ और सराहनीय समझौता है. उन्होंने उल्लेख किया कि आजकल ऐसे मामले बहुत कम देखने को मिलते हैं.

'अब खुशहाल जीवन बिताएं'

आदेश में कोर्ट ने लिखा कि यह उन विरले मामलों में से एक है, जहां पत्नी ने किसी भी प्रकार की मांग नहीं की और उलटे विवाह के समय मिले उपहार लौटा दिए. कोर्ट ने कहा कि यह कदम बहुत असाधारण और प्रशंसनीय है. सुनवाई के दौरान महिला वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से जुड़ी, तब न्यायमूर्ति पारदीवाला ने उन्हें कहा कि यह दुर्लभ उदाहरण है और हम आपकी इस पहल की सराहना करते हैं. उन्होंने महिला से कहा कि अतीत को भूलकर अब खुशहाल जीवन बिताएं.

अनुच्छेद 142 के तहत फैसला

अंतिम आदेश में कोर्ट ने कहा कि उपरोक्त परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, अनुच्छेद 142 के तहत दोनों पक्षों के बीच विवाह संबंध को समाप्त किया जाता है. यदि दोनों पक्षों के बीच कोई अन्य कानूनी कार्यवाही लंबित है, तो वह भी यहीं समाप्त कर दी जाती है.

कोर्ट ने सराहनीय कदम माना

यह फैसला ऐसे समय आया है, जब तलाक के मामलों में अक्सर संपत्ति, भरण-पोषण और अन्य दावों के कारण लंबी कानूनी प्रक्रिया देखने को मिलती है. इस मामले में महिला का किसी भी दावे से परहेज करना और उपहार लौटाना अदालत के अनुसार अत्यंत दुर्लभ और सराहनीय कदम माना गया. यह फैसला न केवल कानून में नई मिसाल पेश करता है, बल्कि विवाह और तलाक में नैतिकता और समझौते की महत्वपूर्ण भूमिका को भी उजागर करता है.