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दिल्ली को डुबाने का दोषी कौन? बसावट, जनसंख्या या सरकार, सब समझ लीजिए

Delhi Waterlogging: दिल्ली की बारिश हर साल अपने साथ कुछ समस्याएं जरूर ले आती है. इस बार पहली ही बारिश ने दुनिया के सामने दिल्ली का शर्मनाक चेहरा पेश किया है. एक दिन की बारिश में दिल्ली की दर्जनों सड़कों पर पानी भर गए और लगभग 11 लोगों की मौत इसी बरसाती पानी में डूब जाने की वजह से हो गई. इस तरह के हादसे दिल्ली के लिए अब आम हो चले हैं.

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Nilesh Mishra
Mintro Bridge Delhi
Courtesy: Social Media

दिल्ली देश की राजधानी है. अत्याधुनिक सुविधाएं हैं, वर्ल्ड क्लास सड़कों का दावा है और उन पर भरा पानी है. 28-29 जून 2024 की तस्वीरें बताती हैं कि देश की राजनीति का केंद्र होने के बावजूद दिल्ली ‘काजनीति’ का केंद्र नहीं बन पाई है. दिल्ली की सड़कों पर पानी भी पहली बार नहीं भरा है और न ही पहली बार ऐसा हुआ है कि लोग इसी पानी में डूब मरें हों. कई दशक बीत चुके हैं, वही सड़कें हैं, वही नालियां हैं, वही व्यवस्था है और हाल भी वैसा ही बना हुआ है. दर्जनों एजेंसियां, 250 पार्षद, 70 विधायक, 7 सांसद और तमाम योजनाएं मिलकर भी आज तक यह सुनिश्चित नहीं कर पाई हैं कि बारिश हो तो पानी अपने-आप निकल आए.

बीते सालों में देखा गया है कि बारिश होती है, सड़कों पर पानी भर जाता है तो नगर निगम, पीडबल्यूडी और अन्य एजेंसियों के अधिकारी और कर्मचारी कहीं चोक हुए नाले को साफ करते दिखते हैं तो कहीं पंप लगाकर पानी निकाल रहे होते हैं. कई बार योजनाएं बनी हैं लेकिन इन योजनाओं को जमीन पर आज तक नहीं उतारा जा सका है. आम जनता हर बार यही नहीं समझ पाती कि कसूर उसका है या उसके टैक्स के पैसों से व्यवस्था बनाने की जिम्मेदारी लिए बैठे नेताओं का.

आइए एक बार समझने की कोशिश करते हैं कि दिल्ली इस तरह के जलभराव के प्रति इतनी संवेदनशील क्यों है और बार-बार के प्रयासों के बावजूद इसे जलभराव मुक्त क्यों नहीं बनाया जा सका है.

1989 में दिल्ली के आसपास की बसावट का घनत्व
1989 में दिल्ली के आसपास की बसावट का घनत्व NASA

पहले दिल्ली को जानिए

समुद्र तल से ऊंचाई 216 मीटर. अधिकतम लंबाई लगभग 52 किलोमीटर और अधिकतम चौड़ाई लगभग 49 किलोमीटर. इस तरह बनता है दिल्ली का कुल 1483 वर्ग किलोमीटर. 2011 में दिल्ली की जनसंख्या लगभग 1.68 करोड़ थी यानी एक किलोमीटर क्षेत्र में लगभग 11320 लोग रहा करते थे. तब से 13 साल बीत चुके हैं. जनगणना तो नहीं हुई है लेकिन अनुमान लगाया जाता है कि अब यह जनसंख्या 3 करोड़ के पार निकल चुकी है.

इतने लोग घनी बस्तियों, फ्लैट, सोसायटी, रिहायशी कॉलोनियों, वीआईपी लुटियन्स जोन जैसे इलाकों में बसे हुए हैं. इतने सालों में लोगों की सुविधा के लिए सड़कें बनी हैं, मेट्रो बनी है, घर बने हैं और कई नए इलाके और मोहल्ले बस गए हैं. यह सब तक तक ठीक होता, जब तक इतने लोगों के रहने के लिए व्यवस्था बेहतर होती. यहां व्यवस्था से मतलब है कि जो काम होने हैं, वे समय पर हों. लोगों की सही रिहाइश के लिए समुचित प्रयास किए जाएं और पर्याप्त संसाधन जुटाकर उनका सही से इस्तेमाल किया जाए.

2018 में दिल्ली के आसपास की बसावट का घनत्व
2018 में दिल्ली के आसपास की बसावट का घनत्व NASA

बढ़ती दिल्ली, सिमटती धरती

दिल्ली में दूसरे राज्यों के लोगों के आ बसने के चलते जनसंख्या लगातार बढ़ी है. NASA की एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 1991 से 2011 के बीच दिल्ली का भौगोलिक क्षेत्र लगभग दोगुना हो गया है. यानी दिल्ली अब दोगुना ज्यादा क्षेत्रफल में फैल चुकी है. संयुक्त राष्ट्र की ‘वर्ल्ड्स सिटीज इन 2018’ डेटा बुकलेट के मुताबिक, साल 2040 तक दिल्ली जनसंख्या के मामले में टोक्यो को पीछे छोड़ देगी और सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला शहर बन जाएगी.

जलभराव से समझें समस्या की जड़

दिल्ली के कुछ इलाके ऐसे हैं जहां जलभराव सबसे ज्यादा होते हैं. कराला कंझावला, जहांगीरपुरी, लोनी रोड गोलचक्कर, जखीरा फ्लाईओवर, आईटीओ, रिंग रोड पर स्थित WHO बिल्डिंग के पास, पुल प्रहलादपुर, मिंटो ब्रिज, आईटीओ. इनमें से ज्यादातर निचले इलाके हैं. वहीं, ऐतिहासिक रूप से दिल्ली को देखें तो तुगलकाबाद, शाहजहानाबाद, महरौली, सिविल लाइन्स, नई दिल्ली और दिल्ली कैंट को ऊंची जगहों पर बसाया गया था.

गंदगी से पटा दिल्ली का एक नाला
गंदगी से पटा दिल्ली का एक नाला Social Media

समय के साथ-साथ इन ऊंचे इलाकों के बगल में बसे निचले इलाकों में बस्तियां बनने लगीं. जनसंख्या बढ़ने का असर यह हुआ कि लोगों ने यमुना के डूब क्षेत्र तक में झुग्गियां और घर बना लिए. बीते कुछ सालों में दिल्ली विकास प्राधिकरण ने डूब क्षेत्र को मुक्त भी कराया है. 

नई बस्तियां बसाने वाले प्रॉपर्टी डीलर्स ने या इन कॉलोनियों को रेगुलराइज करने वाली सरकारों ने इन इलाकों में जल निकासी की समस्या को नजरअंदाज किया है. बीते 4 दशकों में दिल्ली में बसी कई ऐसी बस्तियां हैं जहां सीवर लाइन और नालियों का जाल बिछे होने के बावजूद ज्यादा बारिश की स्थिति में वहां जलभराव होना तय होता है.

कैसे बहता है दिल्ली का पानी? 

तय व्यवस्था के मुताबिक, दिल्ली में छोटी-बड़ी नालियों, हमेशा बहने वाले नालों और बरसाली नालों का एक बड़ा नेटवर्क है. दिल्ली नगर निगम, पीडब्ल्यूडी, सिंचाई विभाग, एनडीएमसी, डीडीए जैसी लगभग 11 संस्थाएं इन नालियों और नालों की देखरेख करती हैं. इनकी टूट-फूट की मरम्मत करने, नई नालियां बनाने, इनकी सफाई करने और इनका बहाव सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी भी इन्हीं संस्थाओं की है.

दिल्ली में जल बहाव के हिसाब से कुल तीन बेसिन हैं. पहला- नजफगढ़ बेसिन, जो कि नजफगढ़ नाले यानी साहिबी नदी का क्षेत्र. दूसरा बारापूला बेसिन यानी बारापूला नाले का क्षेत्र और तीसरा यमुनापार यानी यमुना नदी के दूसरी ओर बसा पूर्वी दिल्ली का क्षेत्र.

इसी साल दिल्ली हाई कोर्ट में दी गई जानकारी के मुताबिक, प्राकृतिक नालों का नेटवर्क कुल 426.55 किलोमीटर है. संस्थाओं द्वारा बनाए गए नालों का नेटवर्क 3311.54 किमी का है. बरसाती नालों का नेटवर्क 3740.31 किलोमीटर का है.

कौन संभालता है दिल्ली के नाले?

दिल्ली में नालों और नालियों का सबसे बड़ा जिम्मा PWD के पास है. उसके नियंत्रण में 2064.08 किलोमीटर के नाले और नालियां हैं. दूसरे नंबर पर MCD है जिसके जिम्मे 521.87 किलोमीटर नाले हैं. सिंचाई विभाग के पास 426.55 किलोमीटर, एनडीएमसी के पास 335.29 किलोमीटर, DSIISC के पास 98.12 किलोमीटर, डीडीए के पास 251 किलोमीटर, दिल्ली कैंटोनमेंट बोर्ड के पास 39.68 किलोमीटर और NTPC एंड ओल्ड आगरा कैनाल के पास 3.42 किलोमीटर नालों का नियंत्रण है.

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, PWD के अधिकारी कहते हैं कि विभागों में आपसी तालमेल न होने, खराब डिजाइन, लचर मूलभूत ढांचों और बढ़ती जनसंख्या के नतीजे जलभराव के रूप में दिखते हैं.

क्यों आती है समस्या?

आपसी तालमेल न होने की वजह से कुछ नाले ऐसे भी हैं जिनकी कोई सफाई ही नहीं करता. घरों से निकलने वाली छोटी नालियों की सफाई नगर निगम करता है. ये नालियां बड़ी नालियों में गिरती हैं और बड़ी नालियां और बड़े नालों में गिरती हैं. इस तरह से कुछ पानी वाटर ट्रीटमेंट प्लांट या अन्य जगहों पर जाते हैं.

इन एजेंसियों का का काम है कि समय-समय पर हमेशा बहने वाली इन नालियों और नालों की सफाई कराएं. उनमें जमी गाद बाहर निकालें ताकि बारिश के समय ज्यादा पानी आने पर वे चोक न हों. सबसे बड़ी समस्या यहीं आती है. उदाहरण के लिए 29 जून को जब दिल्ली में जलभराव हुआ तो सामने आया कि दिल्ली नगर निगम के पास जिन 713 नाले हैं उनमें से सिर्फ 259 में ही डीसिल्टिंग कराई गई थी.

MCD ने डीसिल्टिंग कराने के लिए पहले 30 मई की डेडलाइन रखी थी. इसे दो बार बढ़ाया गया, एक बार 15 जून फिर 30 जून की डेडलाइन रखी गई लेकिन नाले साफ नहीं हो पाए. इसके बारे में एमसीडी के एक अधिकारी ने बताया कि 4 फीट से ज्यादा इन नालों की सफाई ठेके पर कराई जाती है. इसके अलावा, कई इलाकों में ढके हुए नाले होने की वजह से भी सफाई में समस्या आती है. आदेश के बावजूद अभी तक इन नालों के कवर हटाए नहीं गए हैं.

क्या है समाधान?

सबसे पहले तो यही जरूरी है कि दिल्ली के लिए एक बेहतर वाटर मास्टर प्लान लागू किया जाए. साथ ही, इस प्लान को लागू करने के लिए सभी एजेंसियों को एक प्लेटफॉर्म पर लाया जाए और आने वाले सालों के लिए मिलकर तैयारी की जाए. साथ ही, जलाशयों को पुनर्जीवित किया जाए ताकि बारिश का पानी सड़कों पर भरने के बजाय उनमें जा सके. 

मौजूदा समय में एक समस्या यह भी देखी गई है कि जलभराव की स्थिति में जब पंप लगाए जाते हैं तब निकाला जाने वाला पानी किसी न किसी नाले में ही डाला जाता है, ऐसे में अगर वह नाला ही चोक हो जाए तो आगे कुआं पीछे खाई वाली स्थिति हो जाती है.