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कौन हैं D Voters? हर बार होते हैं वादे और वादे ही रह जाते हैं, समझिए पूरी कहानी

Assam D Voters: असम में कुछ ऐसे लोग भी हैं जो वहां के निवासी हैं लेकिन उन्हें वोट डालने का अधिकार नहीं है. ऐसे लोगों को असम में डी वोटर कहा जाता है.

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D Voters
Courtesy: East Mojo Social Media

भारत में वोट डालने की न्यूनतम उम्र सीमा 18 साल है. वरिष्ठ नागरिक भी वोट डाल सकते हैं और विदेश में रहने वाले भारतीय नागरिक भी. ये सभी मिलकर अपने जन प्रतिनिधियों का चुनाव करते है. मौजूदा समय में भारत में लोकसभा का चुनाव चल रहा है और दो चरण की वोटिंग भी हो चुकी है. भारत के 28 राज्यों और 8 केन्द्र शासित प्रदेशों में मनाए जा रहे लोकतंत्र के इस पर्व में लोग बढ़-चढ़कर भाग ले रहें हैं. असम में एक समुदाय ऐसा भी है, जो इस पर्व का हिस्सा नहीं बन सकता यानी ये लोग किसी भी चुनाव में वोट नहीं डाल सकते. सरकार ने इन्हें डी-वोटर्स का दर्जा दिया है. 

डी-वोटर्स का मतलब होता है डाउटफुल वोटर्स. सरकार के मुताबिक, ऐसे लोग जिनकी नागरिकता को लेकर संशय है. सरकार ने ऐसे लोगों की एक श्रेणी बनाई है, जिनके पास नागरिकता लेने के उचित दस्तावेज नहीं हैं. इन डी-वोटर्स का चयन विदेशी अधिनियम के तहत विशेष न्यायाधिकरणों द्वारा किया जाता है. असम सरकार के मुताबिक, फिलहाल इनकी संख्या करीब एक लाख है. असम में एनआरसी और सीएए से जुड़े आंदोलनों में भी डी-वोटर्स एक मुद्दा है. 

कहां से शुरू होती है समस्या?

दरअसल, असम राज्य की सीमा बांग्लादेश से लगती है. ऐसे में यह राज्य आजादी के समय से ही माइग्रेशन का सामना कर रहा है. बहुत सारे लोग युद्ध और उत्पीड़न से बचकर बांग्लादेश से असम में बिना कागजी कार्यवाही के आ जाते हैं. भारत सरकार ने इस समस्या से निपटने के लिए तय किया है कि जो लोग 24 मार्च 1971 यानी बांलादेश की आजादी के लिए हु्ए युद्ध से पहले आए, उन्हें भारत की नागरिकता दी जाएगी. इस तारीख के बाद आने वाले लोगों को नागरिकता नहीं दी जाएगी. साल 1979 में असम में कई संगठनों ने प्रदर्शन किया. इन संगठनों की मांग थी कि जिनके पास उचित दस्तावेज नहीं हैं उनकी पहचान की जाए और उन्हें यहां से बाहर निकाला जाए.
 
साल 1993 में भारतीय चुनाव आयोग ने दस्तावेज की पहचान के लिए घर-घर जाकर एक अभियान चलाया. इस अभियान में जिनकी नागरिकता संदिग्ध हैं, उनकी जांच के लिए विदेशी ट्राइब्यू्नल में भेज दिया गया. ये अपनी प्रकृति में अर्धन्यायिक (Quasi Judicial) होते हैं, इसका उद्देश्य यह तय करना कि कौन भारतीय नागरिक है. यहां ऐसे ही संदिग्ध वोटरों की जांच होती है, जिनकी नागरिकता तय नहीं हो पाती. ऐसे लोगों के नाम के आगे 'डी' लगा दिया जाता है और उन्हें वोट देने से रोक दिया जाता है. इसके अलावा, ये सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ नहीं ले पाते. कुछ कानूनी जानकारों के मुताबिक, कई मामलों मे डी-वोटर्स का निर्धारण मनमाने तरीके से किया गया है और कुछ ऐसे भी मामले भी सामने आए हैं जिन्हें भारतीय नागरिक तो मान लिया गया है लेकिन उन्हे 'डी' वोटर्स  की श्रेणी में रखा गया है.

दस्तावेज न होने से अटका मामला
 
बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, असम के सिलचर जिले की एडवोकेट तान्या लस्कर कहना है, 'हम एक ऐसे राज्य के बारे में बात कर रहे हैं जहां हर साल बाढ़ आती है. ऐसे लोगों के बारे में बात कर रहे हैं जो नदी के आसपास के क्षेत्रों में रहते हैं और हाशिए पर रहने वाले समाज का हिस्सा हैं. क्या आपको उम्मीद है कि वे अपना दस्तावेज़ सुरक्षित रख सकेंगे? कई लोग तो उत्पीड़न की वजह से पलायन करने को मजबूर हुए और ऐसे में दस्तावेज रखना उनकी प्राथमिकता नहीं थी.'
 
हर बार चुनाव से पहले हर पार्टी इस समस्या को सुलझाने का वादा करती है. असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा ने कहा है कि सत्ता में आने के बाद 6 महीने में डी-वोटर से जुड़ी दिक्कतों को सुलझा दिया जाएगा. हालांकि, उन्होंने अपने दावे में बस हिंदू डी-वोटर्स का ही जिक्र किया है. हाल ही में सरकार ने पूरे देश में सीएए लागू किया. इसके तहत पाकिस्तान, बाग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत हिंदू, सिक्ख, बौद्ध, जैन, ईसाई और पारसी धर्म के लोगों को अवैध अप्रवासी नहीं माना जाएगा.