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Nimisha Priya case: क्या होता है 'क़िसास में ईश्वर का क़ानून'? जिसकी वजह निमिषा प्रिया की फांसी पर लगा ब्रेक

Nimisha Priya case: निमिषा प्रिया की फांसी को फिलहाल टाल दिया गया है, लेकिन यमन में पीड़िता के परिवार ने "किसास" यानी जान के बदले जान की मांग की है और दीया को ठुकरा दिया है. शरिया कानून के तहत अब प्रिया की किस्मत पीड़ित परिवार की माफी पर निर्भर है. भारत की ओर से कूटनीतिक और धार्मिक स्तर पर प्रयास जारी हैं, लेकिन सफलता के संकेत अभी नहीं हैं.

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Edited By: Km Jaya
Nimisha Priya
Courtesy: Social Media

Nimisha Priya case: शरिया कानून के तहत "किसास" एक इस्लामिक न्याय सिद्धांत है, जिसमें हत्या के मामलों में बराबरी का प्रतिशोध शामिल है यानी "जान के बदले जान". हालांकि इसी में "दीया" यानी रक्तधन का भी प्रावधान है, जिसके तहत अगर पीड़ित परिवार चाहे तो तय मुआवजे के बदले अपराधी को माफ कर सकता है.

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक भारतीय नागरिक निमिषा प्रिया के मामले में यमन में नया मोड़ आ गया है. 2017 में अपने यमनी बिजनेस पार्टनर तलाल अब्दो महदी की हत्या के आरोप में दोषी पाई गईं प्रिया को 2020 में मौत की सजा सुनाई गई थी. निमिषा प्रिया को 17 जुलाई 2024 को फांसी की सजा दी जानी थी, लेकिन ऐन मौके पर उनकी फांसी अनिश्चित काल के लिए टाल दी गई थी.

राजनयिक और धार्मिक स्तर पर प्रयास जारी 

भारत की ओर से इस सजा को रोकने के लिए राजनयिक और धार्मिक स्तर पर प्रयास जारी हैं. भारत के ग्रैंड मुफ्ती कंथापुरम एपी अबूबकर मुसलियार ने मंगलवार को पुष्टि की कि उन्होंने यमन के इस्लामिक विद्वानों से संपर्क किया है, जो पीड़ित परिवार के साथ बातचीत में शामिल हैं. इससे थोड़ी उम्मीद जगी थी कि महदी का परिवार निमिषा प्रिया को माफ कर देगा.

उम्मीदों पर पानी फिरा पानी

हालांकि, महदी के परिवार के ताजा बयान ने इन उम्मीदों पर पानी फेर दिया है. महदी के भाई अब्देलफत्ताह महदी ने बीबीसी अरबी से बात करते हुए स्पष्ट कहा, "हम सुलह के प्रयासों को खारिज करते हैं और किसास में ईश्वर के कानून की मांग करते हैं." उन्होंने कहा कि उनका परिवार हत्या के इस क्रूर और जघन्य अपराध के चलते लंबी कानूनी लड़ाई और मानसिक पीड़ा से गुजरा है, और अब केवल बदले की सजा यानी फांसी ही न्याय है.

मामला पूरी तरह "किसास" पर टिका

निमिषा प्रिया के परिजनों ने दीया की पेशकश की थी, लेकिन महदी का परिवार इसे ठुकरा चुका है. इससे अब मामला पूरी तरह "किसास" पर टिक गया है, जिसका अर्थ है कि यदि पीड़ित परिवार माफ नहीं करता, तो सजा फांसी ही रह सकती है.

भारत सरकार की कोशिशें 

फिलहाल फांसी पर स्थगन के चलते कुछ और समय मिला है, जिसमें भारत सरकार या धार्मिक नेताओं की कोशिशें महदी परिवार का रुख बदल सकती हैं लेकिन अभी तक ऐसे कोई संकेत नहीं मिले हैं. यह मामला अब पूरी तरह मानवीय संवेदना, धार्मिक कानून और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के त्रिकोण में उलझ गया है.