First Past The Post System: पांच राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मिजोरम और तेलंगाना में विधानसभा चुनाव हो चुके हैं. जनता को अब परिणाम का इंतजार है. 3 दिसंबर को चुनावी नतीजे घोषित किए जाएंगे. चुनाव के नतीजे आने से पहले जनता चुनावी सिस्टम पर बात कर रही है. बात हो रही है कि आखिर भारत में किसी निर्वाचन क्षेत्र से एक उम्मीद्वार को किस तरह से विजयी घोषित किया जाता है. आज हम आपको बताएंगे कि हमारे देश में लोकसभा, विधानसभा और पंचायत के चुनाव में उम्मीदवार को किस प्रकार विजेता घोषित किया जाता है.
भारत में ‘फर्स्ट पास्ट द पोस्ट सिस्टम’ के तहत, उम्मीदवार को विजेता घोषित किया जाता है. इस सिस्टम के तहत उम्मीदवार को सीट जीतने के लिए केवल अन्य उम्मीदवारों से अधिक मत प्राप्त करने की जरूरत होती है. भारत के अलावा यह प्रणाली ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा, बांग्लादेश और भूटान जैसे देशों में भी अपनाई गई है. आइए इसे आसान भाषा में समझने की कोशिश करते हैं.
दरअसल भारत में लोकसभा, विधानसभा और पंचायत के चुनाव में सर्वाधिक वोट से जीत की प्रणाली को अपनाया गया है. इस व्यवस्था में जिस प्रत्याशी को अन्य सभी प्रत्याशियों से अधिक वोट मिल जाता है उसे ही निर्वाचित घोषित कर दिया जाता है. विजयी प्रत्याशी के लिए ये जरूरी नहीं कि उसे कुल मतों का बहुमत मिले. इस विधि को ‘जो सबसे आगे वही जीते’ प्रणाली या ‘फर्स्ट पास्ट द पोस्ट’ सिस्टम कहते हैं.
इस प्रणाली में पूरे देश को छोटी-छोटी भौगोलिक इकाइयों में बांट देते हैं जिसे निर्वाचन क्षेत्र कहते हैं. हर निर्वाचन क्षेत्र से केवल एक प्रतिनिधि चुना जाता है. पार्टियां निर्वाचन क्षेत्र से अपने प्रत्याशी घोषित करती हैं. मतदाता प्रत्याशी को वोट देता है. पार्टी को प्राप्त वोटों के अनुपात से अधिक या कम सीटें विधयिका में मिल सकती हैं. विजयी उम्मीदवार को जरूरी नहीं कि वोटों का बहुमत यानी 50 फीसदी से अधिक मत मिले. ये मत प्रणाली चुनाव की सबसे पुरानी प्रणाली है. सर्वाधिक मत पाने वाले की जीत की प्रणाली भारत के अलावा ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा, बांग्लादेश और भूटान जैसे कई देशों में भी अपनाई गई है.
भारत जैसे देशों में सर्वाधिक वोट से जीत की प्रणाली के कई फायदे हैं. उन सामान्य मतदाताओं के लिए जिन्हें राजनीति और चुनाव का विशेष ज्ञान नहीं है, इस पूरी चुनाव व्यवस्था को समझना अत्यंत सरल है. इसके अतिरिक्त चुनाव के समय मतदाताओं के पास स्पष्ट विकल्प होते हैं. मतदाताओं को वोट करते समय किसी प्रत्याशी या दल को केवल स्वीकृति प्रदान करना होता है.
ये प्रणाली मतदाताओं को केवल दलों में ही नहीं वरन उम्मीदवारों में भी चयन का स्पष्ट विकल्प देती है. अन्य चुनावी व्यवस्थाओं में खासतौर से समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली में मतदाताओं को किसी एक दल को चुनने का विकल्प दिया जाता है लेकिन प्रत्याशियों का चयन पार्टी द्वारा जारी की गई सूची के अनुसार होता है.
सर्वाधिक मत से जीत वाली प्रणाली में अमूमन बड़े दलों या गठबंधनों को बोनस के रूप में कुछ अतिरिक्त सीटें मिल जाती हैं. ये सीटें उन्हें प्राप्त मतों के अनुपात से अधिक होती हैं. अतः ये प्रणाली एक स्थायी सरकार बनाने का मार्ग प्रशस्त कर संसदीय सरकार को सुचारू और प्रभावी ढंग से काम करने का अवसर देती है.
सर्वाधिक मत से जीत वाली प्रणाली में एक निर्वाचन क्षेत्र में विभिन्न सामाजिक वर्ग एकजुट होकर चुनाव जीतने में प्रत्याशी की मदद करते हैं.
वहीं, इस प्रणाली की आलोचना भी की जाती है. सबसे पहले इस प्रणाली में सर्वाधिक मत प्राप्त करने वाला उम्मीदवार निर्वाचित हो जाता है, भले ही निर्वाचक मंडल के काफी बड़े समुदाय ने उसके विरुद्ध मत दिए हों.
दूसरी बात ये है कि इस प्रणाली में हमेशा अल्पसंख्यक समुदायों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व ही नहीं मिल पाता. इसके अलावा ये प्रणाली ऐसी पार्टियों को जिन्हें थोड़ा ही अधिक बहुमत प्राप्त होता है, सदन में बहुत बढ़ा चढ़ाकर दिखाने में सहायक बन जाती है.
इस कारण कई बार जब चुनाव सुधारों की बात होती है तो हमारी चुनाव व्यवस्था को सर्वाधिक मत से जीत वाली प्रणाली के स्थान पर समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली लागू करने की बात होती है. इससे राजनीतिक दलों को उसी अनुपात में सीटें मिलेंगी जिस अनुपात में उन्हें वोट मिलेंगे.
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