Wayanad Landslide: केरल के वायनाड में हुए विनाशकारी भूस्खलन के कारणों में जलवायु परिवर्तन, अत्यधिक खनन और वनों की लगातार कटाई शामिल हो सकता है. ये दावा वैज्ञानिकों ने किया है. मंगलवार को केरल के वायनाड जिले में भारी बारिश के कारण भूस्खलन की घटनाएं सामने आईं, जिनमेें 120 से ज़्यादा लोगों की मौत हो गई और 128 लोग घायल हो गए. कई लोगों के अभी भी मलबे में दबे होने की आशंका है. मौसम विभाग ने कहा कि अगले दो दिनों में राज्य के कुछ स्थानों पर और भारी बारिश हो सकती है.
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केंद्र की ओर से 2023 में जारी भूस्खलन एटलस के अनुसार, भारत के 30 सर्वाधिक भूस्खलन वाले जिलों में से 10 केरल में स्थित हैं, जिसमें वायनाड 13वें स्थान पर है.वैज्ञानिकों ने भूस्खलन के लिए कई कारणों की पहचान की है. इनमें वनों की हानि, जलवायु परिवर्तन और अत्यधिक खनन शामिल है.
भारत में भूस्खलन वाले हॉटस्पॉट पर 2021 के एक स्टडी से पता चला है कि केरल में कुल भूस्खलन का 59 प्रतिशत वृक्षारोपण क्षेत्रों में हुआ है. साल 2022 में भी, वायनाड में घटते वन क्षेत्र पर एक स्टडी से पता चला है कि 1950 और 2018 के बीच जिले में 62 प्रतिशत वन गायब हो गए, जबकि वृक्षारोपण क्षेत्र में लगभग 1,800 प्रतिशत की वृद्धि हुई.
इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एनवायरनमेंटल रिसर्च एंड पब्लिक हेल्थ में पब्लिश स्टडी में कहा गया है कि 1950 के दशक तक वायनाड का लगभग 85 प्रतिशत क्षेत्र वन क्षेत्र के अंतर्गत था. वनों की हानि से जमीन की नाजुकता बढ़ जाती है, विशेष रूप से पश्चिमी घाट के भारी वर्षा वाले इलाकों में ऐसा होता है.
कोचीन साइंस एंड टेक्नोलॉजी यूनिवर्सिटी (सीयूएसएटी) के एडवांस एटमॉस्फेरिक रडार रिसर्च सेंटर के डायरेक्टर एस अभिलाष ने केरल में अधिक भारी और ज्यादा बारिश पैटर्न के कारणों में से एक के रूप में अरब सागर के गर्म होने की ओर इशारा किया.
उन्होंने न्यूज एजेंसी पीटीआई को बताया कि हमारे रिसर्च में पाया गया कि दक्षिण-पूर्व अरब सागर गर्म हो रहा है, जिसके कारण केरल समेत इस क्षेत्र के ऊपर का वायुमंडल ऊष्मागतिकीय रूप से अस्थिर हो रहा है. अभिलाष ने कहा कि वैज्ञानिकों ने अरब सागर के गर्म होने के कारण गहरे बादल तंत्र बनने की प्रवृत्ति देखी है, जिसके कारण कम समय में अत्यधिक भारी वर्षा होती है, जिससे भूस्खलन का खतरा बढ़ जाता है.
उन्होंने कहा कि 2019 के केरल बाढ़ के बाद से बारिश का यह पैटर्न देखा गया है. 2022 में क्लाइमेट एंड एटमॉस्फेरिक साइंस जर्नल में पब्लिश अभिलाष और अन्य वैज्ञानिकों के रिसर्च में पाया गया कि भारत के पश्चिमी तट पर वर्षा अधिक संवहनीय (Sustainable) होती जा रही है, यानी कम समय में तेज बारिश.
2011 से इकोलॉजिस्ट माधव गाडगिल के नेतृत्व में सरकार की ओर से गठित पश्चिमी घाट इकोलॉजी स्पेशल पैनल ने सिफारिश की है कि वायनाड पर्वत श्रृंखला को पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील घोषित किया जाना चाहिए. पैनल ने ये भी कहा कि क्षेत्र को उनकी पारिस्थितिकी संवेदनशीलता के आधार पर जोनों में विभाजित किया जाना चाहिए, जहां सबसे कमजोर वर्गों पर नजर रखी जानी चाहिए और उन्हें अनियंत्रित वाणिज्यिक गतिविधियों से बचाया जाना चाहिए.
उन्होंने पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र 1 में खनन, उत्खनन, नए ताप विद्युत संयंत्रों, जल विद्युत परियोजनाओं और बड़े पैमाने पर पवन ऊर्जा परियोजनाओं पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की. उन्होंने कहा कि राज्य सरकारों, उद्योगों और स्थानीय समुदायों के विरोध के कारण पैनल की ओर से दिए गए सुझावों को 14 वर्षों के बाद भी लागू नहीं किया जा सका है.