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खुदकुशी के लिए उकसाने की धारा यांत्रिक ढंग से न लगाएं, पुलिस को संवेदनशील बनाया जाए: शीर्ष अदालत

17 जनवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि किसी व्यक्ति के खिलाफ भारतीय दंड संहिता के तहत आत्महत्या के लिए उकसाने की धारा केवल मृतक के व्यथित परिवार के सदस्यों की भावनाओं को शांत करने के लिए यांत्रिक ढंग से नहीं लगाया जाना चाहिए.

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Edited By: Princy Sharma
Supreme Court
Courtesy: Pinterest

नयी दिल्ली: 17 जनवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि किसी व्यक्ति के खिलाफ भारतीय दंड संहिता के तहत आत्महत्या के लिए उकसाने की धारा केवल मृतक के व्यथित परिवार के सदस्यों की भावनाओं को शांत करने के लिए यांत्रिक ढंग से नहीं लगाया जाना चाहिए.

न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि जांच एजेंसियों को संवेदनशील बनाया जाना चाहिए ताकि लोगों को एक ऐसी प्रक्रिया के दुरुपयोग का शिकार न होना पड़े करना पड़े जिसे साबित नहीं किया जा सके.

पीठ ने कहा, ‘ऐसा लगता है कि पुलिस भादंसं की धारा 306 का लापरवाही से और बहुत आसानी से इस्तेमाल करती है. वैसे जहां मूल आधार हो, उन वास्तविक मामलों में शामिल व्यक्तियों को बख्शा नहीं जाना चाहिए लेकिन इस प्रावधान का इस्तेमाल केवल मृतक के व्यथित परिवार की तात्कालिक भावनाओं को शांत करने के लिए नहीं किया जाना चाहिए.’

पीठ ने कहा,‘प्रस्तावित आरोपी और मृतक के आचरण, संबंधित व्यक्ति की दुर्भाग्यपूर्ण मृत्यु से पहले उनकी बातचीत और वार्तालाप को व्यावहारिक दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए और उसे जीवन की दिन-प्रतिदिन की वास्तविकताओं से अलग नहीं किया जाना चाहिए. संवाद में प्रयुक्त अत्युक्ति को बिना किसी अतिरिक्त कारण के आत्महत्या के लिए उकसाने के रूप में महिमामंडित नहीं किया जाना चाहिए.’

शीर्ष अदालत ने कहा कि अधीनस्थ अदालत को भी ‘बहुत सावधानी और सतर्कता’ बरतनी चाहिए तथा भले ही किसी मामले में जांच एजेंसियां धारा 306 के तत्वों के प्रति पूरी तरह से उपेक्षा दिखा रही हों, अधीनस्थ अदालत को यांत्रिक रूप से आरोप तय करके ‘सुरक्षित खेल खेलने की प्रवृत्ति’ नहीं अपनानी चाहिए.

महेंद्र अवासे नामक एक व्यक्ति की अपील पर शीर्ष अदालत का यह फैसला आया है. अवासे ने मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी. मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने भादंसं की धारा 306 के तहत दंडनीय अपराधों से बरी करने की अवासे की अर्जी अस्वीकार कर दी थी.

रिकार्ड के अनुसार एक व्यक्ति ने खुदकशी कर ली थी और मरने से पहले उसने एक नोट लिखा था जिसमें उसने कहा था कि अवासे उसका उत्पीड़न कर रहा है.

शीर्ष अदालत ने कहा कि किसी मामले को भादंसं की धारा 306 के दायरे में लाने के लिए आत्महत्या का मामला होना चाहिए और यह भी तथ्य होना चाहिए कि उक्त अपराध के लिए कथित तौर पर उकसाने वाले व्यक्ति ने आत्महत्या के लिए उकसाने या आत्महत्या के लिए मजबूर करने के लिए कोई निश्चित कार्य करके सक्रिय भूमिका निभाई होगी.

पीठ ने कहा कि वह इस बात से आश्वस्त है कि अपीलकर्ता के खिलाफ भादंसं की धारा 306 के तहत आरोप तय करने का कोई आधार नहीं है.

(इस खबर को इंडिया डेली लाइव की टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की हुई है)