सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात के जामनगर में रिलायंस फाउंडेशन द्वारा संचालित वंतारा (ग्रीन्स जूलॉजिकल रेस्क्यू एंड रिहैबिलिटेशन सेंटर) के कार्यों की जांच के लिए एक विशेष जांच दल (SIT) गठन का आदेश दिया है. यह आदेश जस्टिस पंकज मिठाल और जस्टिस प्रसन्ना बी वराले की खंडपीठ ने अधिवक्ता सीआर जया सुकिन द्वारा दायर जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई के दौरान दिया. SIT को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम और अन्य संबंधित कानूनों के अनुपालन, विशेष रूप से भारत और विदेशों से जानवरों, खासकर हाथियों की खरीद, की जांच करने का निर्देश दिया गया है.
पूर्व जस्टिस जे चेलमेश्वर करेंगे SIT की अध्यक्षता
SIT की अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस जे चेलमेश्वर करेंगे. अन्य सदस्यों में जस्टिस राघवेंद्र चौहान (उत्तराखंड और तेलंगाना हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश), हेमंत नगराले (पूर्व मुंबई पुलिस आयुक्त), और अनीश गुप्ता (अतिरिक्त आयुक्त, कस्टम्स) शामिल हैं. कोर्ट ने इन व्यक्तियों को उनकी निष्पक्षता और लंबी सार्वजनिक सेवा के लिए चुना.
Anant Ambani’s Vantara is a reminder that humanity’s greatness lies in kindness.#vantarapic.twitter.com/h7sJDuGA0F
— Shaurya (@Shaurya_Gupta1) August 11, 2025
किन बिंदुओं पर होगी जांच
SIT को निम्नलिखित बिंदुओं पर जांच कर 12 सितंबर, 2025 तक रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया गया है: भारत और विदेशों से जानवरों, विशेष रूप से हाथियों की खरीद.
वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 और चिड़ियाघर नियमों का अनुपालन.
CITES (लुप्तप्राय प्रजातियों के व्यापार पर अंतरराष्ट्रीय संधि) और आयात/निर्यात कानूनों का पालन.
पशुपालन, पशु चिकित्सा देखभाल और कल्याण मानकों का अनुपालन.
औद्योगिक क्षेत्र के पास स्थान और जलवायु परिस्थितियों से संबंधित शिकायतें.
निजी संग्रह, प्रजनन, संरक्षण कार्यक्रमों और जैव विविधता संसाधनों के उपयोग की शिकायतें.
जल और कार्बन क्रेडिट के दुरुपयोग की शिकायतें.
वन्यजीव तस्करी, मनी लॉन्ड्रिंग और अन्य कानूनी उल्लंघनों की शिकायतें.
वंतारा पर सवाल नहीं उठा रहे
खंडपीठ ने कहा, "याचिका में बिना सबूत के आरोप लगाए गए हैं, और सामान्य रूप से ऐसी याचिका स्वीकार नहीं की जानी चाहिए. हालांकि, वैधानिक प्राधिकरणों या न्यायालयों की कार्यक्षमता पर सवाल उठाने वाले आरोपों के मद्देनजर, स्वतंत्र तथ्यात्मक जांच आवश्यक है." कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह आदेश याचिकाओं की सत्यता पर कोई टिप्पणी नहीं करता और न ही वंतारा या वैधानिक प्राधिकरणों पर संदेह व्यक्त करता है. यह केवल तथ्य-खोजी प्रक्रिया है.