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India Daily

अतुल सुभाष आत्महत्या के बीच सुप्रीम कोर्ट की बड़ी टिप्पणी, कहा- 'महिलाएं कानून का कर रहीं दुरुपयोग'

सर्वोच्च न्यायालय की यह टिप्पणी तेलंगाना उच्च न्यायालय के उस आदेश को खारिज करते हुए आई, जिसमें एक व्यक्ति और उसके रिश्तेदारों के खिलाफ दहेज उत्पीड़न के मामले को खारिज करने से इनकार कर दिया गया था.

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Edited By: Kamal Kumar Mishra
Supreme Court big comment amid Atul Subhash suicide said- women are misusing the law
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Supreme Court: ससुराल वालों की क्रूरता से महिलाओं को बचाने वाले कानूनों के "दुरुपयोग की बढ़ती प्रवृत्ति" को चिन्हित करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि अदालतों को दहेज उत्पीड़न के मामलों में निर्णय करते समय सावधानी बरतनी चाहिए. कोर्ट ने कहा कि यह इसलिए होना जरूरी है, क्योंकि निर्दोष लोगों को अनावश्यक रूप से परेशान होने से बचाया जा सके.

बेंगलुरु में 34 वर्षीय व्यक्ति की आत्महत्या के बाद दहेज निषेध कानून के दुरुपयोग पर देशभर में चल रही बहस के बीच यह टिप्पणी महत्वपूर्ण है. आत्महत्या से पहले अतुल सुभाष ने 80 मिनट का एक वीडियो रिकॉर्ड किया था, जिसमें उन्होंने अपनी अलग रह रही पत्नी निकिता सिंघानिया और उसके परिवार पर पैसे ऐंठने के लिए उन पर कई मामले दर्ज करने का आरोप लगाया था. अतुल सुभाष ने अपने 24 पन्नों के सुसाइड नोट में न्याय व्यवस्था की भी आलोचना की थी.

कोर्ट ने कहा-बेवजह पुरुषों को घसीटा जा रहा
सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी तेलंगाना हाई कोर्ट के उस आदेश को खारिज करते हुए आई जिसमें एक व्यक्ति, उसके माता-पिता और परिवार के अन्य सदस्यों के खिलाफ दहेज उत्पीड़न के मामले को खारिज करने से इनकार कर दिया गया था. कोर्ट ने कहा कि एफआईआर की जांच से पता चलता है कि पत्नी के आरोप "अस्पष्ट और सर्वव्यापी" थे. इसने यह भी कहा कि कुछ आरोपियों का इस मामले से कोई संबंध नहीं है और "बिना किसी कारण या तर्क के उन्हें अपराध के जाल में घसीटा गया है."


न्यायालय ने कहा, "वैवाहिक विवाद से उत्पन्न आपराधिक मामले में परिवार के सदस्यों के नाम का उल्लेख मात्र, बिना किसी विशेष आरोप के, उनकी सक्रिय भागीदारी को इंगित करने वाले आरोपों को शुरू में ही रोक दिया जाना चाहिए." न्यायालय ने कहा, "यह एक सर्वविदित तथ्य है, जो न्यायिक अनुभव से प्रमाणित है कि वैवाहिक कलह से उत्पन्न घरेलू विवादों में अक्सर पति के परिवार के सभी सदस्यों को फंसाने की प्रवृत्ति होती है."

कोर्ट से सावधानी बरतने की अपील 
न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने अपने आदेश में कहा कि ठोस सबूतों के अभाव में इस तरह के व्यापक आरोप अभियोजन का आधार नहीं बन सकते. पीठ ने कहा, "अदालतों को कानूनी प्रावधानों और कानूनी प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने और निर्दोष परिवार के सदस्यों को अनावश्यक रूप से परेशान करने से बचने के लिए ऐसे मामलों में सावधानी बरतनी चाहिए."

क्या है धारा धारा 498ए
अदालत ने कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए, जो पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा महिला के साथ क्रूरता को दंडित करती है, को राज्य द्वारा त्वरित हस्तक्षेप सुनिश्चित करने के लिए कानून में शामिल किया गया था. भारतीय दंड संहिता की जगह भारतीय न्याय संहिता ने ले ली है. धारा 80 अब दहेज हत्या से संबंधित है और धारा 85 पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा महिला के साथ क्रूरता से संबंधित है.

वैवाहिक विवाद की बढ़ी संख्या
न्यायालय ने कहा कि हाल के वर्षों में देश भर में वैवाहिक विवादों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, साथ ही विवाह संस्था के भीतर मतभेद और तनाव भी बढ़ रहा है." परिणामस्वरूप, पति और उसके परिवार के खिलाफ पत्नी द्वारा व्यक्तिगत प्रतिशोध को बढ़ावा देने के लिए आईपीसी की धारा 498 ए जैसे प्रावधानों का दुरुपयोग करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है.