नई दिल्ली: त्योहारी मौसम आमतौर पर खुशियों, आपसी मेलजोल और कमाई के अवसर लेकर आता है. क्रिसमस भी ऐसा ही त्योहार है, जब सड़क किनारे छोटे दुकानदार सजावटी सामान बेचकर अपनी आजीविका चलाते हैं. लेकिन ओडिशा में इस साल क्रिसमस से पहले एक घटना ने त्योहार की भावना को झकझोर दिया. सोशल मीडिया पर वायरल एक वीडियो में कुछ लोग सांता टोपी बेच रहे स्ट्रीट वेंडर्स को धमकाते नजर आए, जिससे देशभर में नाराजगी फैल गई.
सोशल मीडिया पर सामने आए वीडियो में कुछ पुरुष सड़क किनारे बैठे वेंडर्स के पास जाते हैं. इनमें से एक व्यक्ति पीले कुर्ता-पायजामा में कार से उतरकर वेंडर्स पर चिल्लाता दिखता है. वह सवाल करता है कि वे 'विदेशी त्योहार' से जुड़ी चीजें क्यों बेच रहे हैं. वीडियो में साफ सुना जा सकता है कि वह बार-बार खुद को 'हिंदू राष्ट्र' का हवाला देकर वेंडर्स को डराने की कोशिश करता है.
When you expect foreigners to celebrate Hindu festivals then why can't you allow your own people to celebrate their festivals? Whatever caste or religion that boy belongs to, he is not selling those things to show off his money like you, but to feed himself and his family. pic.twitter.com/1VUj9pUQIA
— Ashish (@error040290) December 21, 2025Also Read
वीडियो में मौजूद लोग वेंडर्स पर दबाव डालते हैं कि वे तुरंत अपनी दुकान बंद करें. एक वेंडर मदद के लिए फोन करने की कोशिश करता है, लेकिन मजबूर होकर अपना सामान समेटने लगता है. इसके बाद वही व्यक्ति दूसरे वेंडर के पास जाकर उसे भी धमकाता है. यह दृश्य साफ दिखाता है कि गरीब दुकानदारों को उनकी आजीविका से वंचित करने की कोशिश की जा रही थी, वह भी सार्वजनिक रूप से अपमानित करके.
वीडियो में एक व्यक्ति वेंडर से उसका धर्म पूछता है और फिर सवाल करता है कि “हिंदू होकर यह कैसे बेच सकते हो”. वह यह भी कहता है कि यह 'भगवान जगन्नाथ की भूमि' है और ऐसे सामान यहां नहीं चलेंगे. इसके बाद राहगीरों से भी वेंडर्स को वहां से हटाने की अपील की जाती है. यह घटना दिखाती है कि किस तरह धार्मिक पहचान को डर और दबाव का जरिया बनाया गया.
कई यूजर्स ने कहा कि वेंडर्स सिर्फ अपनी रोजी-रोटी कमा रहे थे, न कि किसी पर अपनी आस्था थोप रहे थे. एक यूजर ने लिखा कि बड़े मॉल और शोरूम में ऐसी हिम्मत कोई नहीं दिखाता, निशाना हमेशा गरीब ही बनते हैं. यह टिप्पणी व्यापक रूप से शेयर की गई.
कई लोगों ने इस घटना को भारत की विविधता और सहिष्णुता के खिलाफ बताया. यूजर्स ने कहा कि मेहनत से कमाई गई रोजी-रोटी का सम्मान होना चाहिए. एक पोस्ट में लिखा गया कि समाज तभी आगे बढ़ता है, जब हम लोगों को उनके काम के आधार पर आंकें, न कि उनके त्योहार या पहचान के आधार पर. यह घटना एक बार फिर धार्मिक सह-अस्तित्व और आजीविका की आजादी पर सवाल खड़े करती है.