8 सितंबर का दिन भारतीय संस्कृति और संगीत प्रेमियों के लिए विशेष महत्व रखता है, खासकर असम के लोगों के लिए, जिनके दिलों में यह दिन गहरी भावनाओं के साथ जुड़ा है. आज भारत रत्न डॉ. भूपेन हजारिका की जन्म जयंती है, जिन्हें भारतीय संगीत और कला जगत की सबसे भावपूर्ण और असाधारण आवाजों में से एक माना जाता है. इस साल उनकी जन्म शताब्दी का प्रारंभ हो रहा है, जो उनके अतुलनीय योगदानों को याद करने और उनकी विरासत को सम्मान देने का अवसर है.
दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत रत्न भूपेन हजारिका की जयंती पर एक भावपूर्ण लेख लिखा है. इस लेख में उन्होंने कहा कि “भूपेन दा ने हमें संगीत से कहीं अधिक दिया. उनकी आवाज में मानवता का स्पर्श था, जो सीमाओं और संस्कृतियों को पार करता था, जैसा कि उनके प्रशंसक अक्सर कहते हैं.
असम की संस्कृति को वैश्विक पहचान देने वाले भारत रत्न डॉ. भूपेन हजारिका को उनकी जयंती पर मेरा नमन।
— Narendra Modi (@narendramodi) September 8, 2025
भारतीय संस्कृति और संगीत जगत को उनका योगदान अविस्मरणीय रहेगा। उनके जन्म-शताब्दी वर्ष पर पढ़िए मेरा ये आलेख…https://t.co/3h8fM3juCM
असम की आत्मा, भारत की धरोहर
पीएम मोदी अपने लेख में लिखते हैं कि, डॉ. भूपेन हजारिका केवल एक गायक, संगीतकार या गीतकार नहीं थे. वे असम की सांस्कृतिक आत्मा और भारत की एकता के प्रतीक थे. उनके गीतों में करुणा, सामाजिक न्याय, एकता और गहरी आत्मीयता की गूंज थी. एक प्रशंसक ने उनके बारे में कहा उनके संगीत में ऐसी भावनाएं थीं जो धुन से भी आगे जाती थीं. वे लोगों की धड़कन थे. उनकी रचनाएं असम की समृद्ध लोक परंपराओं, आदिवासी पहचान और सामुदायिक कहानियों से प्रेरित थीं. उनकी आवाज, जो ब्रह्मपुत्र नदी की तरह कालजयी थी, आज भी लाखों दिलों में गूंजती है. भूपेन दा ने असम को न केवल भारत, बल्कि वैश्विक मंच पर पहचान दिलाई.
बचपन से ही प्रतिभा का परिचय
भूपेन हजारिका की प्रतिभा बचपन से ही उजागर होने लगी थी. महज 5 साल की उम्र में उन्होंने सार्वजनिक मंच पर गायन शुरू किया, जहां असमिया साहित्य के दिग्गज लक्ष्मीनाथ बेझबरुआ ने उनके कौशल को पहचाना. किशोरावस्था तक पहुंचते-पहुंचते उन्होंने अपना पहला गीत रिकॉर्ड कर लिया था. असम की लोकधुनों, मौखिक परंपराओं और सामुदायिक कहानियों ने उनकी कला को आकार दिया.
उनके समकालीन कलाकारों ने बताया कि असम की आदिवासी पहचान और लोगों के सरोकार हमेशा उनके संगीत में झलके. उनके समकालीन कलाकारों ने बताया. ज्योति प्रसाद अग्रवाल और विष्णु प्रसाद रभा जैसे सांस्कृतिक दिग्गजों ने उनकी जिज्ञासु प्रवृत्ति को और प्रेरित किया.
शैक्षिक और वैश्विक यात्रा
भूपेन दा की सीखने की ललक उन्हें कॉटन कॉलेज और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) तक ले गई. बीएचयू में राजनीति शास्त्र के छात्र होने के बावजूद, उनका अधिकांश समय संगीत साधना में बीता. काशी ने उनके जीवन को संगीत की ओर पूरी तरह मोड़ दिया. पीएम मोदी ने कहा कि “काशी का सांसद होने के नाते मैं उनकी जीवन यात्रा से एक विशेष जुड़ाव महसूस करता हूं.
मां भारती के थे सच्चे उपासक
पीएम मोदी ने अपने लेख में बताया कि भूपेन दा के पास अमेरिका में पर्मानेंट तरीके से रहने का मौका था, लेकिन उन्होंने भारत लौटकर अपनी संगीत साधना को चुना. रेडियो, रंगमंच, फिल्में और शैक्षिक वृत्तचित्रों तक, उन्होंने हर माध्यम में अपनी छाप छोड़ी. उनके सहयोगियों ने बताया कि जहां भी भूपेन दा गए, उन्होंने नई प्रतिभाओं को प्रोत्साहित किया. उनकी रचनाएं काव्यात्मक सौंदर्य और सामाजिक संदेशों का अनूठा संगम थीं. गरीबी, ग्रामीण विकास, और आम नागरिक की ताकत जैसे विषय उनके गीतों में बार-बार उभरे. नाविकों, चाय बागान के मजदूरों, महिलाओं और किसानों की आकांक्षाओं को उनकी आवाज ने शक्ति दी.
सामाजिक बदलाव की आवाज
भूपेन दा के गीत केवल मनोरंजन नहीं थे; वे सामाजिक बदलाव का आह्वान थे. उनके संगीत ने सामाजिक रूप से वंचित वर्गों को प्रेरणा और आशा दी. ‘दिल हूम हूम करे’ में उनकी आवाज की पीड़ा दिल को छू लेती है, जबकि ‘गंगा बहती है क्यों’ हर आत्मा से जवाब मांगता है. एक प्रशंसक ने भावुक होकर कहा,''उन्होंने पूरे भारत के सामने असम को सुनाया, दिखाया और महसूस कराया. उनकी रचनाओं ने असमिया, बांग्ला और हिंदी फिल्मों में भी अपनी जगह बनाई, जिसने भाषा और क्षेत्र की सीमाओं को तोड़ा.
राजनीति और जनसेवा
भूपेन दा ने राजनीति को करियर नहीं बनाया, लेकिन जनसेवा से हमेशा जुड़े रहे. साल 1967 में वे असम के नौबोइचा से निर्दलीय विधायक चुने गए, जो लोगों के उनके प्रति अटूट विश्वास को दर्शाता है. एक स्थानीय नेता ने कहा,भूपेन दा लोगों की धड़कन थे, उनकी सेवा का जज्बा राजनीति से परे था. उनकी रचनाओं में ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ की भावनाएं साफ थी, जो विविधता में एकता का संदेश देती थी.
जानें भूपेन दा को क्या मिला सम्मान और विरासत में?
भारत सरकार और जनता ने भूपेन दा के योगदानों को कई सम्मानों से नवाजा. उन्हें पद्मश्री, पद्मभूषण, पद्मविभूषण और दादासाहेब फाल्के पुरस्कार मिले. जिसके बाद साल 2019 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया, जो उनके सिद्धांतों और कला के प्रति समर्पण का सम्मान था. भूपेन दा ने कहा था,''सच्चाई से निकला संगीत किसी एक दायरे में सिमट नहीं सकता. एक गीत लोगों के सपनों को पंख दे सकता है और दुनिया भर के दिलों को छू सकता है.
भूपेन दा की अंतिम विदाई और स्मृति
2011 में भूपेन दा के निधन ने पूरे देश को शोक में डुबो दिया. एक प्रत्यक्षदर्शी ने बताया कि, “उनके अंतिम संस्कार में लाखों लोग पहुंचे, हर आंख नम थी. जीवन की तरह मौत में भी उन्होंने लोगों को एकजुट किया. उन्हें जलुकबाड़ी की पहाड़ी पर ब्रह्मपुत्र नदी के सामने अंतिम विदाई दी गई, जो उनकी सांस्कृतिक और भावनात्मक जीवनरेखा थी. असम सरकार द्वारा स्थापित भूपेन हजारिका कल्चरल ट्रस्ट उनकी विरासत को युवा पीढ़ी तक पहुंचाने में जुटा है.
भूपेन हजारिका सेतु: एकता का प्रतीक
2017 में असम और अरुणाचल प्रदेश को जोड़ने वाले देश के सबसे बड़े पुल का उद्घाटन हुआ, जिसे भूपेन हजारिका सेतु नाम दिया गया. उद्घाटन समारोह में एक वक्ता ने कहा, “यह सेतु केवल दो राज्यों को नहीं, बल्कि लोगों के दिलों को जोड़ता है, और भूपेन दा का नाम इसके लिए सबसे बेहतर है. यह सेतु उनकी एकता और सांस्कृतिक योगदान की भावना का प्रतीक है.