तियांजिन (चीन) में आयोजित SCO शिखर सम्मेलन भारत के लिए न सिर्फ कूटनीतिक दृष्टि से बल्कि आर्थिक और रणनीतिक स्तर पर भी महत्वपूर्ण साबित हो रहा है. सात साल बाद चीन पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहले दिन चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात कर रिश्तों में 'प्रतिद्वंद्विता नहीं साझेदारी' का संदेश दिया. अब दूसरे दिन का एजेंडा और भी अहम है, जिसमें रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ बैठक, यूक्रेन संकट पर विमर्श और भारत-रूस संबंधों को नई दिशा देने की कोशिशें शामिल हैं.
दूसरे दिन प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति पुतिन की द्विपक्षीय मुलाकात सबसे महत्वपूर्ण मानी जा रही है. यह बैठक ऐसे समय हो रही है जब वैश्विक स्तर पर रूस-यूक्रेन युद्ध और पश्चिमी देशों के दबाव के बीच भारत और रूस के रिश्ते चर्चा का विषय बने हुए हैं. बैठक में ऊर्जा सहयोग, व्यापार संतुलन और रक्षा समझौतों पर खास फोकस रहने की उम्मीद है. भारत का लक्ष्य रूस के साथ कच्चे तेल और गैस आपूर्ति को और मजबूत करना है, जिससे घरेलू ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित हो सके.
मोदी और पुतिन की बैठक में द्विपक्षीय व्यापार बढ़ाने और अमेरिकी टैरिफ दबाव से निपटने की रणनीति पर भी चर्चा होगी. अमेरिका ने हाल ही में भारतीय वस्तुओं पर 50% तक शुल्क लगाने और रूस से आयात पर 25% अतिरिक्त ड्यूटी लागू करने का फैसला किया है. ऐसे में भारत-रूस साझेदारी को और व्यावहारिक व दीर्घकालिक रूप देने की जरूरत महसूस की जा रही है. दोनों नेता इस पर रणनीतिक विकल्प तलाश सकते हैं ताकि व्यापार पर किसी तीसरे देश का दबाव असर न डाल सके.
पुतिन अपनी बैठक के दौरान तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोआन और ईरान के राष्ट्रपति पेज़ेश्कियन से भी मुलाकात करेंगे. इन चर्चाओं में यूक्रेन युद्ध और परमाणु मुद्दों पर विमर्श होगा. भारत, एक संतुलित वैश्विक शक्ति के रूप में, इस संवाद में मध्यस्थ जैसी भूमिका निभाने का प्रयास कर सकता है. प्रधानमंत्री मोदी का जोर रहेगा कि विवाद टकराव में न बदलें और संवाद के जरिए समाधान निकाला जाए.
दूसरे दिन पीएम मोदी SCO शिखर सम्मेलन के plenary session में हिस्सा लेंगे. यहां वे बहुपक्षीय सहयोग, व्यापार विस्तार, कनेक्टिविटी और आतंकवाद जैसे विषयों पर भारत का दृष्टिकोण प्रस्तुत करेंगे. यह संबोधन भारत की ‘रणनीतिक स्वायत्तता’ (Strategic Autonomy) की नीति को दुनिया के सामने रखने का मौका होगा. मोदी यह संदेश देने की कोशिश करेंगे कि भारत किसी ब्लॉक की राजनीति का हिस्सा नहीं बल्कि साझेदारी और सहयोग का समर्थक है.
पहले दिन हुई मोदी-शी जिनपिंग बैठक के बाद दूसरे दिन का एजेंडा इस संबंध में भी अहम है कि भारत-चीन रिश्ते किस दिशा में आगे बढ़ते हैं. दोनों देशों ने साफ किया कि मतभेद विवाद में नहीं बदलने चाहिए. अब सवाल यह है कि व्यापार असंतुलन और सीमा से जुड़े मुद्दों पर कितनी प्रगति हो सकती है. मोदी के plenary address और पुतिन से मुलाकात से भारत की कूटनीतिक स्थिति और स्पष्ट होगी.