राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने 2008 के मुंबई आतंकी हमलों की जांच में एक बड़ा खुलासा करते हुए कहा है कि कनाडाई नागरिक तहव्वुर राणा ने पाकिस्तानी-अमेरिकी आतंकी डेविड हेडली की मदद करने के लिए मुंबई में एक फर्जी दफ्तर खोला था. हमलों से पहले टारगेट्स की जासूसी करने के लिए यह दफ्तर सिर्फ एक मकसद से चालू किया गया था.
एनआईए के अनुसार, तहव्वुर राणा ने 'इमिग्रेंट लॉ सेंटर' नाम से एक नकली ऑफिस मुंबई में खोला, जो बाहर से एक वैध बिज़नेस लगता था, लेकिन हकीकत में इसका कोई कारोबारी कामकाज नहीं था. यह दफ्तर दो साल से ज्यादा वक्त तक चालू रहा और इसका इस्तेमाल सिर्फ डेविड हेडली की जासूसी गतिविधियों में मदद करने के लिए किया गया. हेडली ने इसी दफ्तर की आड़ में मुंबई के बड़े होटल, रेलवे स्टेशन और सार्वजनिक स्थलों की निगरानी की थी, जो बाद में 26/11 हमलों में निशाना बनाए गए.
चार्जशीट में एनआईए ने दावा किया है कि यह साजिश सिर्फ 2008 तक सीमित नहीं थी, बल्कि इसकी शुरुआत 2005 में हुई थी. राणा इस बड़ी आतंकी साजिश का हिस्सा था, जिसमें पाकिस्तान में बैठे कई अन्य साजिशकर्ता भी शामिल थे. इनका मकसद था भारत की अखंडता और आंतरिक सुरक्षा को नुकसान पहुंचाना और देश के खिलाफ युद्ध छेड़ना. एनआईए ने राणा पर भारतीय दंड संहिता की धारा 120बी, 121, 302, 468 और 471 के तहत केस दर्ज किया है, साथ ही यूएपीए की धारा 16 और 18 के अंतर्गत आतंकवाद से जुड़ी धाराएं भी लगाई गई हैं.
लंबी कानूनी लड़ाई के बाद तहव्वुर राणा को अमेरिका से भारत लाया गया. जनवरी 2025 में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने उसकी याचिका खारिज कर दी थी, जिसके बाद अप्रैल में उसे एनआईए की हिरासत में ले लिया गया. पूछताछ के दौरान राणा ने कई अहम जानकारियां दी हैं, जिनसे जांच के लिए नए सुराग मिले हैं. अब एनआईए ने अमेरिका को ‘म्यूचुअल लीगल असिस्टेंस ट्रीटी’ (MLAT) के तहत अनुरोध भेजे हैं ताकि और साक्ष्य जुटाए जा सकें. एजेंसी का कहना है कि जांच अभी जारी है और आगे और भी नाम और सबूत सामने आ सकते हैं.