कहीं जेन-Z आंदोलन से गिरी सरकार, तो कहीं आपदाओं का कहर, 2025 में हिले पड़ोसी देश; भारत के लिए क्या है सबक

साल 2025 में भारत के पड़ोसी देशों में राजनीतिक अस्थिरता, युवा आंदोलन और आपदाएं देखने को मिलीं. भविष्य के लिए भारत को इन सभी घटनाओं से सबक लेते हुए आगे बढ़ने की जरूरत है.

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Sagar Bhardwaj

वर्ष 2025 भारत के पड़ोस के लिए उथल-पुथल भरा रहा. नेपाल से बांग्लादेश, पाकिस्तान से अफगानिस्तान तक, हर जगह संकट के अलग-अलग रूप सामने आए. कहीं युवा सड़कों पर उतरे, कहीं अदालतों के फैसलों ने राजनीति को हिला दिया, तो कहीं प्राकृतिक आपदाओं ने शासन की सीमाएं उजागर कर दीं. इन घटनाओं ने भारत को यह सोचने पर मजबूर किया कि क्षेत्रीय स्थिरता अब केवल कूटनीति से नहीं, बल्कि मजबूत संस्थानों और जनविश्वास से तय होगी.

नेपाल में युवाओं का उभार

नेपाल में जेन जी के नेतृत्व में हुए प्रदर्शनों ने सत्ता की नींव हिला दी. सोशल मीडिया पर प्रतिबंध और बढ़ते भ्रष्टाचार के खिलाफ शुरू हुआ आंदोलन हिंसक हो गया. पुलिस कार्रवाई में कई लोगों की जान गई. हालात बिगड़ने पर पहले गृह मंत्री और फिर प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को इस्तीफा देना पड़ा. अंततः एक अंतरिम सरकार बनी, जिसने युवाओं की भागीदारी को नया महत्व दिया.

बांग्लादेश के लिए सबसे खराब हालात

बांग्लादेश में 2025 राजनीतिक अनिश्चितता का वर्ष रहा. शेख हसीना के सत्ता से हटने के बाद अंतरिम सरकार बनी, लेकिन शांति ज्यादा देर टिक नहीं सकी. पूर्व प्रधानमंत्री को उनकी अनुपस्थिति में मौत की सजा सुनाई गई. इसके बाद युवा नेता शरीफ उस्मान हादी की हत्या के बाद देशभर में हिंसक प्रदर्शन हुए जिसके बाद एक हिंदू अल्पसंख्यक की हत्या कर दी गई जिसने हालातों को संवेदनशील बना दिया.

पाकिस्तान में संसद से लेकर सड़क तक बवाल

पाकिस्तान में राजनीति अदालतों और जेल के इर्द-गिर्द घूमती रही. इमरान खान और उनकी पत्नी को लंबी सजा सुनाए जाने के बाद समर्थक सड़कों पर उतर आए. परिवार से मुलाकात पर रोक और विरोध प्रदर्शनों पर सख्ती से तनाव बढ़ा. सवाल यह था कि क्या संस्थान जनता का भरोसा संभाल पाएंगे.

अफगानिस्तान की आपदा

अफगानिस्तान में आए भीषण भूकंप ने हजारों जानें ले लीं. तालिबान सरकार ने राहत की कोशिशें कीं, लेकिन दुर्गम इलाकों और नीतिगत प्रतिबंधों के कारण मदद देर से पहुंची. महिला स्वास्थ्यकर्मियों पर रोक से घायल महिलाओं को इलाज में परेशानी हुई, जिससे संकट और गहरा गया.

श्रीलंका में दित्वाह का कहर

वहीं श्रीलंका में चक्रवात दित्वाह का कहर देखने को मिला. इस प्राकृतिक आपदा में आधिकारिक तौर पर 600 लोगों की मौत हो गई जबकि कई बेघर हो गए.

भारत के लिए सबक

इन सभी घटनाओं का एक साझा संदेश है. जब संस्थान समय के साथ खुद को नहीं ढालते, तो असंतोष फूट पड़ता है. भारत के लिए जरूरी है कि लोकतांत्रिक संस्थाएं मजबूत रहें, युवाओं की आवाज सुनी जाए और संकट प्रबंधन की क्षमता बढ़े. यही क्षेत्रीय स्थिरता की असली कुंजी है.