तारीख 5 मई की थी. सुबह–सुबह लाखों बच्चे महीनों और सालों की मेहनत के बाद एक परीक्षा देने निकले थे. परीक्षा देने के बाद बच्चे उस कश्मकश में डूब गए जो नतीजों से पहले हर किसी को होती है. इनकी कश्मकश जारी थी, दूसरी तरफ बिहार की राजधानी पटना की पुलिस कुछ लोगों से पूछताछ करने में जुट गई थी. पेपर देकर निकलते ही कुछ स्टूडेंट्स को पुलिस ने धर लिया. पुलिस को शक था कि इन बच्चों को पेपर पहले से ही मिल गया था. पेपर पहले से मिल गया था का मतलब हुआ कि जो पेपर देकर लाखों बच्चे डॉक्टर बनने का सपना पाल रहे थे वह ‘लीक’ हो गया था.
पटना पुलिस ने इस कथित लीक के मास्टरमाइंड सिकंदर यादवेंदु को गिरफ्तार कर लिया था. उसकी निशानदेही के आधार पर कुछ स्टूडेंट्स को उनके एग्जाम सेंटर से ही पकड़ लिया गया. पुलिस ने इन सभी से पूछताछ शुरू की तो परतें खुलने लगीं.
पुलिस ने सिकंदर यादवेंदु, कुछ अभ्यर्थियों और उनके परिजन समेत कुल 13 लोगों को 5 जून को ही गिरफ्तार कर लिया था. इन सभी लोगों से बारी-बारी से पूछताछ की गई. अगले दिन यानी 6 जून को इन सभी को जेल भेज दिया गया.
शुरुआती जांच और पूछताछ में पुलिस को शक हुआ तो उसने 11 अभ्यर्थियों की ओरिजिनल कॉपी और उनकी अन्य जानकारी के लिए नेशनल टेस्टिंग एजेंसी यानी NEET परीक्षा कराने वाली एजेंसी को एक चिट्ठी लिखी.
इस पूरे मामले को देखें तो फौरी तौर पर इतना समझ आता है कि जूनियर इंजीनियर सिकंदर यादवेंदु ने पेपर लीक गिरोह की मदद से अपने भतीजे अनुराग यादव और अन्य को पेपर दिलाए. EOU के मुताबिक, इन लोगों को पेपर एक दिन पहले से मिल गया था. अनुराग यादव ने अपने बयान में माना है कि उसे रात में पेपर मिल गया था और रात भर उसे पेपर रटवाया गया था. हालांकि, पेपर देने के तुरंत बाद ही पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया.
अभी तक EOU और सीबीआई ने जिन आरोपियों को गिरफ्तार किया है, उनके तार कहीं न कहीं एक-दूसरे से जुड़ते रहे हैं. ऐसे में हम इन किरदारों का जिक्र करते हुए पूरी कहानी बयां करते हैं, ताकि आप को समझ आ सके कि अभी तक की जांच में क्या सामने आया है और कैसे इस पूरे गिरोह ने मिलकर बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया.
साल 2012 तक छोटे-मोटे ठेके लेने वाले सिकंदर यादवेंदु को इस पूरे मामले का मुख्य आरोपी बताया जा रहा है. 56 साल का सिंकदर यादवेंदु दानापुर की म्युनिसिपल कमेटी में जूनियर इंजीनियर था. साल 2016 में उसका नाम LED घोटाले में सामने आया था. इसी मामले में गिरफ्तार किए गए अनुराग यादव ने अपने कबूलनामे में बताया है कि उसके फूफा यानी सिकंदर यादवेंदु ने पेपर दिलाने का वादा करके उसे कोटा से बुलाया था और पेपर दिलाया भी.
पहली बार में जिन पांच लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार किया उनमें सिकंदर यादवेंदु, अनुराग यादव, अमित आनंद और नीतीश कुमार थे. इसमें से अनुराग यादव खुद 5 जून को NEET का पेपर देने गया था और पेपर देने के बाद ही उसे गिरफ्तार कर लिया गया.
आरोप है कि 4 जून को कुल 9 अभ्यर्थियों को पटना के एक सेफ हाउस में ले जाया गया. इन लोगों को यहीं पर उन्हें पेपर और उनके आंसर दिए गए ताकि ये स्टूडेंट्स जवाबों को याद कर सकें. गिरफ्तार किए गए कुछ अभ्यर्थियों ने माना है कि उनके घरवालों ने इस पेपर के बदले 30 लाख रुपये तक दिए थे. EOU ने कुछ पोस्ट डेटेड चेक भी बरामद किए जिन पर इस रैकेट से जुड़े लोगों के नाम थे.
जब पुलिस पटना के रामकृष्ण नगर के इस घर में पहुंची तो उसे कुछ सिम कार्ड, मोबाइल फोन, एडमिट कार्ड, चेक और अन्य दस्तावेज मिले. यहीं पर मिले एडमिट कार्ड के जरिए पुलिस और सीबीआई की जांच झारखंड के उस स्कूल तक जाती है जिसे बाद में गिरफ्तार किया गया.
एक अन्य अभ्यर्थी आयुष राज ने अपने कबूलनामे में बताया है, 'मुझे रात में ही पेपरर मिल गया था. मेरे जैसे 25 अन्य अभ्यर्थियों को लर्न ब्वॉयज हॉस्टल और लर्न प्ले स्कूल में सवालों के जवाब याद कराए गए थे.'
सिकंदर यादवेंदु के बाद नाम आता है, बिहार के डिप्टी सीएम रहे तेजस्वी यादव के सेक्रेटरी प्रीतम कुमार का. आरोप है कि प्रीतम कुमार ने फोन करके NHAI के गेस्ट हाउस में सिकंदर यादवेंदु के लिए एक कमरा बुक कराया था. बिहार के डिप्टी सीएम विजय कुमार सिन्हा ने आरोप लगाए कि 1 मई को प्रीतम कुमार ने गेस्ट हाउस में काम करने वाले प्रदीप कुमार को फोन किया और कमरा बुक करने को कहा. सिन्हा के मुताबिक, प्रीतम कुमार ने ‘मंत्री जी’ का नाम लिया. उन्होंने आरोप लगा किए प्रीतम इस तरह से तेजस्वी के बारे में बात कर रहे थे. उनके आरोपों के मुताबिक, 4 जून को प्रीतम ने फिर से प्रदीप को फोन किया था.
इस केस में हुई पूछताछ के मुताबिक, पेपर बेचने का जिम्मा अमित आनंद को मिला था. अमित आनंद ने ही अभ्यर्थियों से डील फाइनल की और उनसे 30 से 32 लाख रुपये वसूले. सूत्रों के मुताबिक, अनुराग समेत अन्य अभ्यर्थियों को जहां पेपर रटवाया गया, वहां खुद अमित आनंद और नीतीश कुमार मौजूद थे. नीतीश कुमार भी इस मामले में बिचौलिया है और उसने भी पेपर बेचने और पैसे जुटाने का काम किया.
अमित आनंद ने अपने कबूलनामे में कहा है, 'मैं सिकंदर यादवेंदु से मिला और उनसे कहा कि मैं कोई भी पेपर लीक करवा सकता हूं. सिकंदर ने कहा कि उसके पास 4-5 लोग हैं जो नीट की कैयारी कर रहे हैं. मैंने कहा कि 30 से 32 लाख रुपये लगेंगे. इस पर वह राी हो गई. मैंने सिकंदर से कहा था कि इन लोगों को 4 मई को मेरे पास ले आए. मैंने यहीं पर इन बच्चों को पेपर और सवालों के जवाब रटवाए.' अमित आनंद ने यह भी स्वीकार किया है कि वह पहले भी कई पेपर लीक करवा चुका है.
EOU को एक फ्लैट से पेपर के कुछ जले हुए टुकड़े, बुकलेट के टुकड़े, एडमिट कार्ड और अन्य कागज मिले थे. जलने से बचे टुकड़ों को जोड़ा गया था उसमें 74 सवाल मिले जो NEET के पेपर में आए थे. जो बुकलेट वॉट्सऐप पर आया था, वह सीरीज झारखंड के हजारीबाग में स्थित ओएसिस स्कूल को मिली थी. बाद में जांच हजारीबाग के इस स्कूल तक पहुंची तो सामने आया कि जिस बक्से में बुकलेट लाई गई थी उससे भी छेड़छाड़ हुई थी.
इस मामले में दूसरा प्रमुख आरोपी संजीव मुखिया बताया जा रहा है. आरोप है कि संजीव मुखिया लगभग दो दशकों से पेपर लीक और भर्ती घोटालों में संलिप्त रहा है. बिहार के नालंदा के रहने वाली संजीव की पत्नी के मुखिया चुने जाने के बाद से वह ‘संजीव मुखिया’ बन गया. बताया जाता है कि कई पार्टियों के नेताओं के साथ भी उसके करीबी संबंध रहे हैं.
संजीव मुखिया का बेटा डॉ. शिव कुमार बिहार शिक्षक भर्ती पेपर लीक केस में इन दिनों जेल में बंद है. उससे भी पुलिस ने जेल में ही पूछताछ की है. 2016 में BPSC पेपर लीक केस में भी संजीव मुखिया का नाम सामने आया था.
आरोप है कि संजीव मुखिया ने ही सबसे पहले पेपर हासिल किया और इसे बाकी लोगों को भेजा है. इस मामले में एक अज्ञात प्रोफेसर का नाम भी सामने आ रहा है. कहा जा रहा है कि संजीव मुखिया ने वॉट्सऐप पर पेपर हासिल किया था.
बिहार पुलिस के हाथ में जितना था उसने उतना बिहार में किया. 22 जून को जब सीबीआई को इसकी जांच सौंपी गई तो उसने 23 जून एफआईआर दर्ज की. 27 जून को सीबीआई ने आशुतोष कुमार और मनीष प्रकाश को गिरफ्तार किया.
आरोप है कि आयुष राज नाम के अभ्यर्थी ने जिस लर्न एंड प्ले स्कूल में पेपर रटाए जाने की बात की थी, उसे मनीष प्रकाश ने ही बुक कराया था. रिपोर्ट के मुताबिक, मनीष प्रकाश ने अपने दोस्त आशुतोष के जरिए यह बुकिंग कराई. इसी स्कूल से जले हुए पेपर के टुकड़े मिले थे. सीबीआई ने इन दोनों से भी पूछताछ की है और इनकी भूमिका खंगालने की कोशिश की जा रही है.
जले हुए पेपर के टुकड़े, बुकलेट और एडमिट कार्ड इस पेपर लीक के तार झारखंड से जोड़ रहे थे. बुकलेट पर पड़े नंबरों की सीरीज झारखंड के हजारीबाग में स्थित ओएसिस पब्लिक स्कूल को अलॉट हुई थी. ऐसे में सीबीआई ने स्कूल के प्रिंसिपल एहसान उल हक और वाइस प्रिंसिपल इम्तियाज आलम को 28 जून को गिरफ्तार कर लिया. एहसान उल हक का नाम इस पेपर लीक में आने से पहले वह नीट परीक्षा के लिए हजारीबाग जिले के डिस्ट्रिक्ट कोऑर्डिनेटर थे.
कोऑर्डिनेटर के रूप में एहसान उल हक का काम बैंक से पेपर का बक्सा रिसीव करने और उसे कंट्रोल रूम में रखना है. उन्होंने एक मीडिया चैनल से बातचीत में कहा था, 'इस कंट्रोल रूम में NTA के सीसीटीवी कैमरे लगे होते हैं. हमारा काम सभी सेंटर पर राउंड लगाना होता है ताकि कोई गड़बड़ी न हो. हमारी आखिरी जिम्मेदारी यह होती है कि बक्से एनटीए को सौंप दिए जाएं.'
एहसान-उल-हक और पत्रकार सलाउद्दीन की बातचीत के आधार पर सीबीआई ने सलाउद्दीन को भी गिरफ्तार कर लिया. आरोप है कि सलाउद्दीन के अलावा एक और पत्रकार इस पेपर लीक में शामिल हो सकता है.
पेपर लीक जैसे अपराधों में संलिप्त रवि अत्री इन दिनों जेल में बंद है. उसका संबंध भी संजीव मुखिया गैंग से बताया जाता है. यूपी पुलिस पेपर लीक केस के आरोपी रवि अत्री समेत अन्य आरोपियों ने पूछताछ के दौरान संजीव मुखिया का नाम लिया था. ऐसे में शक जताया जजा रहा है कि यूपी पुलिस भर्ती पेपर लीक के अलाव नीट पेपर लीक के तार भी आपस में जुड़े हुए हैं. रवि अत्री ने पूछताछ में बताया कि सॉल्वर जुटाने, पेपर के बक्सों को तोड़ने और ब्लूटूथ के जरिए नकल कराने में संजीव मुखिया का गैंग माहिर है. यहां तक कि नीट पेपर लीक केस में भी कहा गया हजारीबाग में इसी गैंग के लोगों ने पेपर का बक्सा तोड़ा था.
अभी तक इस मामले में गिरफ्तार किए गए आरोपियों की रिमांड बढ़ा दी गई है. हालांकि, कोर्ट ने पेपर रद्द करने से इनकार कर दिया है. सरकार भी गड़बड़ियां स्वीकार कर रही है लेकिन उसने भी पेपर रद्द करने से इनकार कर दिया है. इस बीच दोबारा परीक्षा देने वाले स्टूडेंट्स के रिजल्ट भी आ चुके हैं और काउंसलिंग भी शुरू होने वाली है.
ऐसे में ढेरों सवाल ऐसे हैं जिनके जवाब किसी के पास नहीं हैं. सवाल है कि अगर पेपर लीक हुआ ही है तो क्या गारंटी है कि यह देशभर में नहीं फैल गया होगा. बीते कुछ समय में देखा गया है कि पेपर लीक होते ही वॉट्सऐप और टेलीग्राम जैसे ऐप के जरिए वह देशभर में फैल जाता है.
साथ ही, यह भी सवाल है कि अगर पेपर लीक हुआ है तो उन बच्चों के भविष्य का क्या होगा जो मेरिट में नहीं आ पाए. उन बच्चों को न्याय कौन दिलाएगा जिन्होंने असफल होने के बाद गलत कदम उठा लिए?