Mission Gaganyaan: चंद्रयान 3 की सफलता के बाद अंतरिक्ष की दुनिया में भारत एक महाशक्ति बनकर उभरा है. चांद के दक्षिणी ध्रुव पर इसरो ने 23 अगस्त को चंद्रयान -3 की सुरक्षित लैंडिंग कराकर इतिहास रचा था. इसके बाद 2 सितंबर को इसरो ने सूरज का अध्ययन करने के लिए सूर्य मिशन आदित्य एल 1 लॉन्च किया. अब एक और इतिहास रचने के लिए इसरो पूरी तरह तैयार है. ये मिशन है गगनयान.
इसरो को अंतरिक्ष के क्षेत्र में नाम कमाने में बरसों लग गए. आइए जानते हैं कि कैसे इसरो की स्थापना हुई थी, किस वैज्ञानिक ने इसकी नींव रखी, कब लॉन्च हुआ पहला मिशन?
61 साल पहले सन 1962 में भारत के महान वैज्ञानिक विक्रम साराभाई के कहने पर सरकार ने इंडियन नेशनल कमेटी फॉर स्पेस रिसर्च की स्थापना की थी. आगे चलकर 15 अगस्त 1969 को इसका नाम बदलकर ISRO यानी इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन कर दिया गया.
"हमारे पास चंद्रमा या ग्रहों की खोज या मानवयुक्त अंतरिक्ष-उड़ान के रूप में आर्थिक रूप से उन्नत देशों के साथ मुकाबला करने की कल्पना नहीं है. लेकिन हम आश्वस्त हैं कि अगर हमें राष्ट्रीय स्तर पर और राष्ट्रों के समुदाय में एक सार्थक भूमिका निभानी है, हमें मनुष्य और समाज की वास्तविक समस्याओं के लिए एडवांस टेक्नोलॉजी के अनुप्रयोग में किसी से पीछे नहीं रहना चाहिए, हम देश के आर्थिक विकास के लिए काम करेंगे न कि दिखाने के लिए."
इसरो की स्थापना का श्रेय विक्रम साराभाई को जाता है. उन्होंने इस संस्था की नींव रखी थी. उनके अलावा एसके मित्रा, सीवी रमन, मेघनाद साहा, सतीश धवन, होमी जहांगीर भाभा, डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम, एचजीएस मूर्ति, वामन दत्तात्रेय पटवर्धन जैसे महान भारतीय वैज्ञानिकों ने इसरो के अलग-अलग सेंटर, तकनीक, रॉकेट्स, इंजन आदि को विकसित करके इसरो की आधारशिला को मजबूत करने का काम किया.
इसरो ने सोवियत स्पेस एजेंसी इंटरकॉसमॉस की मदद से साल 1975 में अपना पहला सैटेलाइट आर्यभट्ट लॉन्च किया था. इसके अगले पांच साल में ही इसरो ने खुद का पहला सैटेलाइट RS-1 को निर्मित करके लॉन्च किया था.
आज इसरो दुनिया की टॉप 6 अंतरिक्ष एजेंसियों में शामिल है. आज हमारे पास खुद के रॉकेट्स, क्रायोजेनिक इंजन, टेक्नोलॉजी समेत हर वो चीज मौजूद है जो एक स्पेस एजेंसी के पास होनी चाहिए. इसलिए आज भारत एक से एक बड़े मिशन को अंजाम दे रहा है. गर्व है हमें इसरो की इस उपलब्धि पर.
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