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वो घर जिसके पीछे बंगाल में छिड़ी BJP-TMC के बीच जंग, आखिर क्या है लोकसभा कनेक्शन

Matua Matriarch House: पश्चिम बंगाल में मतुआ समुदाय की दिवंगत कुलमाता बीनापाणि देवी की घहर को लेकर बीजेपी और टीएमसी दोनों आमने सामने है. दरअसल, बीजेपी के केंद्रीय मंत्री शांतनु ने उस घर का ताला तोड़ने का कोशिश किया है जहां उनकी बहू और टीएमसी राज्यसभा सांसद ममता बाला वर्तमान में रहती हैं.

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India Daily Live
West Bengal

Matua Matriarch House: पश्चिम बंगाल में बीजेपी और टीएमसी के बीच घर को लेकर इन दिनों लड़ाई चल रही है. इस घर की मालकिन मतुआ समुदाय की दिवंगत कुलमाता बीनापाणि देवी हैं  उन्हें 'बोरो मां (बड़ी मां)' के नाम से जाना जाता है. रविवार की टीएमसी की ओर से इस घर से जुड़ा एक वीडियो शेयर किया गया.

इस वीडियो में देखा जा सकता है कि मतुआ महासंघ के प्रमुख और केंद्रीय मंत्री शांतनु ठाकुर अपने समर्थकों के साथ घर का ताला तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं. इस घटना के बाद यहां वालीं बीनापानी देवी की बहू और टीएमसी सांसद ममता बाला ठाकुर ने शांतनु को आड़े हाथ लिया है.

बीजेपी की गुंडागर्दी चरम पर है- TMC

इस घटना से संबंधित एक वीडियो को सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म एक्स पर शेयर करते हुए टीएमसी ने लिखा, 'बीजेपी की गुंडागर्दी चरम पर है. बंगाण से चौंकाने वाले दृश्य आ रहे हैं जहां भाजपा उम्मीदवार और नेता (शांतनु ठाकुर) अपने गुंडों के साथ धारदार वस्तुएं और हथियार लेकर हमारी राज्यसभा सांसद ममता ठाकुर के आवास पर हिंसक हमले की योजना बना रहे हैं.

ममता बाला को यहां रहने का अधिकार क्यों?- BJP

टीएमसी के आरोपों पर बंगाल बीजेपी अध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने कहा कि शांतनु को इस घर में नहीं लेकिन ममता बाला को यहां रहने का अधिकार क्यों है. परिवार की दो शाखाएं हैं और पारिवारिक कलह हो सकती है. ममता बाला ठाकुर जबरन अपना अधिकार जमाने की कोशिश कर रही है. शांतनु ठाकुर को भी घर में रहने का पूरा अधिकार है. 

एक दशक तक चली खींचतान

बीनापाणि देवी के पति प्रमथ रंजन ठाकुर मतुआ संप्रदाय के संस्थापक हरिचंद ठाकुर के परपोते थे. 2019 में उनकी मृत्यु के बाद ठाकुर परिवार में वर्षों पहले शुरू हुआ सत्ता का संघर्ष और तेज हो गया. यह देखते हुए कि मतुआ एक प्रभावशाली चुनावी समूह है. कुछ अनुमानों के मुताबित उनकी संख्या लगभग 1.75 करोड़ है और बंगाण, बारासात, रानाघाट, कृष्णानगर और कूच बिहार के लोकसभा क्षेत्रों में एक महत्वपूर्ण कारक हैं. टीएमसी और बीजेपी और उससे पहले वाम मोर्चा उनका समर्थन पाने के लिए सालों वर्षों तक उनके पास पहुंचता रहा. शांतनु ठाकुर के पिता मंजुल कृष्ण ठाकुर टीएमसी की पहली सरकार में मंत्री थे. इसी बीच, लोकसभा चुनाव 2014 में उनके बड़े भाई कपिल कृष्ण ठाकुर टीएमसी के टिकट पर बनगांव के सांसद बने.

ठाकुर परिवार में कब पड़ी फूट?

सांसद बनने के कुछ महीने बाद ही अक्टूबर में कपिल कृष्ण की मृत्यु के बाद उनकी पत्नी ममता बाला और मंजुल के बीच पारिवारिक झगड़ा शुरू हो गया क्योंकि वह चाहती थीं कि उनके सबसे छोटे बेटे सुब्रत को बोंगांव उपचुनाव के लिए टीएमसी टिकट मिले. हालाँकि, टीएमसी ने ममता बाला को चुना, जिससे मंजुल कृष्ण और सुब्रत के भाजपा में चले जाने से ठाकुर परिवार में फूट पड़ गई. उपचुनाव में ममता बाला ने जीत दर्ज. इस चुनाव में सुब्रत तीसरे स्थान पर रहे थे. इसके बाद मंजुल कृष्ण कुछ महीने बाद टीएमसी में लौट आए लेकिन वह पार्टी में आगे नहीं बढ़ सके.

टिकट कटने पर शांतनु ठाकुर ने थामा था BJP का दामन

विधानसभा चुनाव 2016 में टिकट के लिए नजरअंदाज किए जाने के बाद शांतनु ठाकुर ने बीजेपी का दामन थाम लिया और फिर 2019 में बीजेपी ने उन्हें बनगांव से उम्मीदवार बनाया. इस चुनाव में उन्होंने अपनी चाची ममता बाला को हराकर जीत हासिल की. इसके बाद उन्होंने मतुआ महासंघ पर भी कब्जा कर लिया. संगठन ने निर्णय लिया कि बीनापाणि देवी का कोई सच्चा वंशज ही संगठन का प्रमुख होगा. इससे शांतनु को सभाधिपति के पद पर पदोन्नत करने में मदद मिली, उन्होंने ममता बाला की जगह ली, जो न तो देवी से खून से जुड़ी थीं और न ही उनकी ओर से इस पद के लिए चुनाव लड़ने के लिए कोई उत्तराधिकारी था.

मतुआओं ने बीजेपी को किया था वोट

रिपोर्ट्स के अनुसार 2019 के चुनाव में मतुआओं ने बीजेपी को बड़े पैमाने पर वोट दिया था. इस दौरान पार्टी ने राज्य में रिकॉर्ड 18 लोकसभा सीट पर जीत दर्ज की थी. 2021 के विधानसभा चुनावों के मध्य में शांतनु पीएम मोदी की बांग्लादेश यात्रा के दौरान उनकी टीम का हिस्सा थे, जिसमें हरिचंद ठाकुर के जन्मस्थान ओरकांडी की यात्रा भी शामिल थी. हालांकि, बीजेपी उत्तर 24 परगना और नादिया जिलों में कई मतुआ-प्रभुत्व वाली विधानसभा सीटें हार गई.

मतुआओं के समर्थन वापस पाने की कोशिश में बीजेपी

मतुआओं के समर्थन वापस पाने के लिए, बीजेपी नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) को लागू करने के लिए केंद्र सरकार के कदम पर भरोसा कर रही है. मतुआ, जिनमें से अधिकांश के पास भारतीय नागरिकता नहीं है, सीएए के सबसे बड़े समर्थकों में से हैं और दिसंबर 2019 में संसद द्वारा कानून पारित किए जाने के बाद से उन्होंने इसके कार्यान्वयन पर जोर दिया है. हालांकि, टीएमसी की ओर से मतुआ को सीएए के तहत नागरिकता के लिए आवेदन नहीं करने के लिए कहा गया है. टीएमसी ने कहा था कि उन्होंने अगर ऐसा किया तो उन्हें घुसपैठिए करार दिया जाएगा.