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कभी पहला सीएम ही बना था ब्राह्मण फिर क्यों कांग्रेस से हो गया मोहभंग, जानें मध्यप्रदेश में बीजेपी प्रेम के पीछे की कहानी

Madhya Pradesh Politics: लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस में भगदड़ की स्थिति देखने को देख रही है. कांग्रेस का साथ छोड़कर बीजेपी में शामिल होने वाले नेताओं में ज्यादातर लोग ब्राह्मण समाज से हैं. मध्य प्रदेश की राजनीति में कभी ब्राह्मणों का वर्चस्व हुआ करता था लेकिन समय के साथ उनके वर्चस्व और रसूख में कमी आती गई. आइए जानते हैं कांग्रेस से बीजेपी में आने वाले ब्राह्मण चेहरे और कांग्रेस की अंदरूनी हालात के बारे में. इसके साथ ही यह भी कि कांग्रेस में कैसे हाशिए पर पहुंचे ब्राह्मण नेता.

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Edited By: Jitendra Sharma
Congress and BJP Flag

Madhya Pradesh Politics: पिछले तीन महीने में कांग्रेस समेत दूसरे दलों के करीब 5 हजार नेता और कार्यकर्ता बीजेपी में शामिल हुए हैं. इनमें सामान्य, ओबीसी, एससी, एसटी सभी वर्ग के नेता शामिल हैं लेकिन जो बड़े चेहरे हैं वो ज्यादातर ब्राह्मण वर्ग से जुड़े हैं. इनमें पूर्व केंद्रीय मंत्री रह चुके सुरेश पचौरी, संजय शुक्ला, अरुणोदय चौबे, आलोक चंसोरिया जैसे नाम भी शामिल हैं.

ऐसे में अब यह सवाल उठ रहा है कि यह ब्राह्मणों का बीजेपी प्रेम है या फिर बीजेपी का ब्राह्मण प्रेम? इन सब के बीच खास बात यह भी देखने को मिली है कि मध्य प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष वीडी शर्मा पर गाहे बगाहे ब्राह्मणवाद के आरोप लगते रहे हैं और अब बीजेपी में लाने वाली टोली के मुखिया नरोत्तम मिश्रा हैं. नरोत्तम मिश्रा पर भी ब्राह्मणवादी होने का ठप्पा लगा हुआ है. यह मुद्दा प्रदेश की सियासत में चर्चा का एक विषय बना हुआ है.

मध्य प्रदेश की राजनीति में ब्राह्मणों का वर्चस्व

मध्य प्रदेश की राजनीति में कभी ब्राह्मणों का वर्चस्व हुआ करता था. प्रदेश के पहले सीएम भी पंडित रविशंकर शुक्ल थे लेकिन समय के साथ उनके वर्चस्व और रसूख में कमी आती गई. नवंबर 1956 में मध्य प्रदेश के गठन के बाद साल 1990 तक पांच ब्राह्मण मुख्यमंत्रियों ने करीब 20 सालों तक शासन किया. इसके बाद पिछले तीस सालों से कोई ब्राह्मण चेहरा प्रदेश की सियासत में नहीं भर सका. कांग्रेस हो या बीजेपी दोनों ही राजनीतिक दलों का जाति आधारित सियासत पर जोर रहा है. कांग्रेस में तो ब्राह्मण वर्ग से आने वाले नेता 80 के दशक के बाद हाशिए पर चले गए. बीजेपी ने 20 सालों में पहली बार राजेंद्र शुक्ल को डिप्टी सीएम बनाकर इस वर्ग को तवज्जो दी है.

कांग्रेस से बीजेपी में आने वाले ब्राह्मण चेहरे 

  • सुरेश पचौरी: पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी 50 सालों से कांग्रेस से जुड़े थे. अब बीजेपी में हैं.
  • संजय शुक्ला: इंदौर के पूर्व विधायक रहे हैं. इस बार विधानसभा चुनाव हार का सामना करना पड़ा है. इंदौर लोकसभा से प्रत्याशी की रेस में थे लेकिन अब बीजेपी में हैं.
  • अरुणोदय चौबे: खुरई विधानसभा सीट से 2008 में विधायक बने थे. सागर लोकसभा सीट से दावेदारी वापस लेते हुए कांग्रेस छोड़ दी. 
  • शशांक शेखर: कांग्रेस की कमलनाथ सरकार ने महाधिवक्ता बनाया था. इनकी गिनती विवेक तन्खा के करीबी लोगों में होती है. अब बीजेपी के साथ है
  • आलोक चंसौरिया: जबलपुर लोकसभा से कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं. कांग्रेस की वैचारिक रीढ़ माने जाते थे लेकिन अब कांग्रेस में नहीं हैं
  • रंजना मिश्रा: सीधी जिले से आने वाली रंजना मिश्रा कांग्रेस महिला मोर्चा की प्रदेश महामंत्री थी फिलहाल बीजेपी मे हैं.
  • सुरेश पांडे: सीधी जिले से आते हैं. कांग्रेस में को-ऑपरेटिव सेल के प्रदेश महामंत्री रहे हैं. अभी बीजेपी के साथ हैं.
  • रश्मि मिश्रा: रायसेन जिले से आने वाली रश्मि कांग्रेस महिला प्रदेश संगठन में मंत्री रह चुकी हैं जो अब बीजेपी के साथ हैं.
  • कैलाश मिश्रा: कैलाश मिश्रा की गिनती सुरेश पचौरी के करीबी नेताओं में  होती है. भोपाल कांग्रेस के जिलाध्यक्ष रह चुके हैं. सुरेश पचौरी के साथ ही बीजेपी का दामन थाम चुके हैं.

क्या है कांग्रेस की अंदरुनी हालात

पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी ने 9 मार्च को बीजेपी की सदस्यता ग्रहण की थी. बीजेपी में शामिल होने के बाद उन्होंने कहा था कि कांग्रेस में कभी एक नारा लगा था, 'न जात पर-न पात पर, इंदिरा जी की बात पर, मुहर लगेगी हाथ पर'. लेकिन कांग्रेस ने अब इस नारे को दरकिनार कर दिया है. पार्टी में आज जाति की बात हो रही है.

कांग्रेस में कैसे हाशिए पर पहुंचे ब्राह्मण नेता 

मध्य प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री ब्राह्मण नेता रविशंकर शुक्ल थे और आखिरी ब्राह्मण मुख्यमंत्री 1990 में श्यामाचरण शुक्ल थे. इस बीच कांग्रेस के कैलाश नाथ काटजू और द्वारका प्रसाद मिश्र मुख्यमंत्री रहे हैं. वहीं, 1977 में पहली बार गैर-कांग्रेसी सरकार का नेतृत्व किया उस समय के जनसंघ के नेता कैलाश जोशी ने 80 के दशक में तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने श्यामाचरण शुक्ल के कद को कम करने के लिए मोतीलाल वोरा और सुरेश पचौरी जैसे ब्राह्मण नेताओं को आगे बढ़ाने की कोशिश की.

इसके बाद साल 1985 में जब अर्जुन सिंह पंजाब के राज्यपाल बनाए गए तो पार्टी ने वोरा को सीएम बनाया. अर्जुन सिंह ने ब्राह्मणों के राजनीतिक वर्चस्व को कम करने के लिए एक तरफ तो नए ब्राह्मण नेताओं को बढ़ावा दिया दूसरी तरफ ठाकुरों और आदिवासी तथा पिछड़े वर्ग का राजनीतिक गठजोड़ बनाया.