मध्य प्रदेश में एक हैरान करने वाला मामला सामने आया है. यहां एक शख्स की 'फर्जी मुठभेड़ में मौत' हो जाती है, जबकि न्याय की तलाश में कोर्ट के फैसले का इंतजार करती शख्स की मां भी दम तोड़ देती है. हैरान करने वाली बात ये कि मामले के जांचकर्ता को 12 साल तक कोर्ट में पेश होने का समय ही नहीं मिल पाता है. अब मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने इसे लापरवाही और असंवेदनशीलता का मामला मानते हुए राज्य सरकार पर 1 लाख रुपये का जुर्माना लगाया है.
हाई कोर्ट ने कहा कि पुलिस ने रिट कोर्ट के समक्ष और साथ ही इस अदालत के समक्ष कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया कि याचिकाकर्ता की ओर से अपने बेटे के लापता होने के बारे में की गई शिकायत पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई? कथित फर्जी मुठभेड़ मामले में 2012 से एक जांच अधिकारी विशेष अदालत के समक्ष पेश नहीं हुआ है. कोर्ट ने कहा कि ये पुलिस विभाग की ओर से असंवेदनशीलता के अलावा और कुछ नहीं है. कोर्ट ने डीजीपी को मामले की जांच करने का भी निर्देश दिया है.
56 साल की विमला देवी ने आरोप लगाया था कि 22 अप्रैल 2005 को डबरा पुलिस स्टेशन के स्थानीय एसएचओ और इलाके के अन्य अधिकारी उसके तीन बेटों को थाने ले गए. 27 अप्रैल को उसके दो बेटों बालकिशन और कल्ली को छोड़ दिया गया, लेकिन उसने आरोप लगाया कि तीसरे बेटे खुशाली राम को पुलिस हिरासत में रखा गया.
विमला देवी ने दावा किया कि उन्हें अपने बेटे की मौत के बारे में एक अख़बार की कटिंग से पता चला, जिसमें उसे एक इनामी डकैत बताया गया था, जो पुलिस मुठभेड़ में एक अन्य डकैत के साथ मारा गया. विमला देवी ने ये भी दावा किया कि अख़बार ने तस्वीर में उनके बेटे की पहचान कालिया उर्फ़ बृजकिशोर के रूप में की थी.
2007 में मजिस्ट्रेट जांच का आदेश दिया गया और पुलिस रिपोर्ट के अवलोकन के बाद ये निष्कर्ष निकाला गया कि कालिया उर्फ बृजकिशोर जीवित है और झांसी जिला जेल में बंद है. विमला देवी ने दतिया के तत्कालीन एसपी एमके मुदगल और अन्य पुलिसकर्मियों पर अपने बेटे की फर्जी मुठभेड़ में हत्या करने का आरोप लगाया और जांच की मांग की.
मध्य प्रदेश की एक निचली अदालत ने इससे पहले राज्य सरकार को 2007 में उसके बेटे की मौत के मामले में कोई कार्रवाई न करने के लिए 20000 रुपए का भुगतान करने का निर्देश दिया था.
इस महीने की शुरुआत में जस्टिस विवेक रूसिया और राजेंद्र कुमार वाणी की पीठ ने कहा था कि अंतिम क्लोजर रिपोर्ट... की स्पेशल कोर्ट की ओर से जांच की जानी आवश्यक है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, डबल बेंच ने कहा कि ऑर्डर शीट से पता चलता है कि क्लोजर रिपोर्ट पर विचार करने में देरी हो रही है क्योंकि जांच अधिकारी वीरेंद्र कुमार मिश्रा 2012 से विशेष अदालत के समक्ष पेश नहीं हुए हैं. नवीनतम स्थिति रिपोर्ट के अनुसार, वह एसपी, दतिया के पद पर तैनात हैं. हैरानी की बात यह है कि 2012 से उन्हें अदालत के समक्ष पेश होने के लिए एक या दो दिन का समय नहीं मिल पाया. अधिकांश समय, वह प्रतिनियुक्ति पर रहे, लेकिन विशेष अदालत के समक्ष पेश होने की परवाह नहीं की, ताकि कोर्ट क्लोजर रिपोर्ट की जांच कर सके.
इसी बीच, याचिकाकर्ता ने कोर्ट से न्याय की प्रतीक्षा करते हुए दम तोड़ दिया. ऐसा कहा जाता है कि याचिकाकर्ता को आज तक 20,000 रुपये की लागत का भुगतान भी नहीं किया गया है.