किश्तवाड़ में हुआ चमत्कार! 30 घंटे बाद मलबे से जिंदा निकला शख्स, माता मचैल के भक्तों के लिए लगाता था लंगर

उदयपुर के रहने वाले सुभाष चंद्रा हर साल लंगर लगाकर माता मचैल के हजारों तीर्थयात्रियों को भोजन कराते हैं.

Sagar Bhardwaj

Kishtwar Cloudburst: जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ के घने जंगलों में बसे चिशोती गांव में बादल फटने की त्रासदी के बीच एक चमत्कार ने सबका ध्यान खींचा. माता मचैल के भक्तों के लिए लंगर चलाने वाले सुभाष चंद्रा को 30 घंटे तक मलबे में दबे रहने के बाद जिंदा बचा लिया गया. स्थानीय डोगरी कहावत, "जिसे माता मचैल बचाए, उसे कोई नहीं मार सकता" इस घटना में साकार हो उठी.

हर साल लंगर लगाते हैं सुभाष

उदयपुर के रहने वाले सुभाष चंद्रा वर्षों से माता मचैल के तीर्थयात्रियों की सेवा में समर्पित हैं. हर साल वह अपने साथियों के साथ लंगर लगाकर हजारों यात्रियों को भोजन कराते हैं. 14 अगस्त को जब बादल फटने से आई बाढ़ ने लंगर को बहा दिया, तब सुभाष मलबे में दब गए. वहीं राहत व बचाव कार्य की निगरानी करने वाले विपक्ष के नेता सुनील शर्मा ने इस घटना को लेकर कहा, “जिसे भगवान बचाता है, उसे कोई नहीं मार सकता. सुभाष, जो वर्षों से निस्वार्थ सेवा करते आए हैं, उन्हें माता ने स्वयं बचाया.” 

पहली बार कोई जिंदा बचा

सेना, पुलिस, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ और स्थानीय स्वयंसेवकों की टीमें शुक्रवार को मलबे को हटा रही थीं, जब सुभाष को जीवित पाया गया. एक सेना अधिकारी ने कहा, “यह पहली बार है जब इस ऑपरेशन में कोई जिंदा बचा है. यह किसी आशीर्वाद से कम नहीं.”. सुभाष के आसपास चार शव भी बरामद किए गए. शनिवार को चार और लोगों को जिंदा निकाला गया, जिसने और जीवित बचे लोगों की उम्मीद जगाई.

60 लोगों की गई जान

14 अगस्त को दोपहर 12:25 बजे चिशोती में बादल फटने से भयंकर तबाही मची. इस आपदा में 60 लोगों की जान गई, 82 लोग लापता हैं, और 100 से अधिक घायल हुए. वहीं मलबे से जिंदा निकले सुभाष को किश्तवाड़ जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां से उनकी मामूली चोटों के इलाज के बाद छुट्टी दे दी गई. सुनील शर्मा ने कहा, “सुभाष फिर से लंगर लगाकर माता के भक्तों की सेवा करेंगे. माता ने उन्हें जीवन का सबसे बड़ा उपहार दिया है.” वहीं स्थानीय लोगों ने इसे दैवीय कृपा बताया.