आज से लगभग 10 साल पहले जब जम्मू-कश्मीर में विधानसभा के चुनाव हुए थे तो यह एक पूर्ण राज्य हुआ करता था. पूर्ण राज्य होने के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा प्राप्त था. संविधान के अनुच्छेद 370 के बलबूते जम्मू-कश्मीर अलग संविधान के तहत चलता था, उसका झंडा भी अलग हुआ करता था और बहुत कुछ ऐसा था जिसे बदलने की जरूरत भारत के दक्षिणपंथियों को महसूस होती थी. ऐसे में जब 2019 में नरेंद्र मोदी की सरकार दोबारा बनी तो सबसे पहले संविधान के अनुच्छेद 370 को खत्म कर दिया गया. जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा खत्म हुआ. जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया गया. जम्मू-कश्मीर विधानसभा वाला केंद्र शासित प्रदेश बना तो लद्दाख बिना विधानसभा वाला. अब 10 साल के बाद जम्मू-कश्मीर में दोबारा विधानसभा चुनाव की सुगबुगाहट है लेकिन इस बार यह चुनाव काफी हद तक बदला हुआ दिखने वाला है.
2014 में हुए चुनाव में किसी भी पार्टी या पहले से तय गठबंधन को बहुमत नहीं मिला था. तब कुल 87 विधासभा सीटों पर चुनाव हुए जिनमें 4 सीटें लद्दाख की थीं. बहुमत के लिए 44 सीटें चाहिए थीं लेकिन सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी को सिर्फ 28 और बीजेपी को सिर्फ 25 सीटें ही मिलीं. नेशनल कॉन्फेंस को सिर्फ 15 तो कांग्रेस को सिर्फ 12 सीटों पर जीत मिली थी. आखिर में पीडीपी और बीजेपी ने मिलकर सरकार बनाई. उस समय पीडीपी के मुखिया रहे मुफ्ती मोहम्मद सईद ने 1 मार्च 2015 को सीएम पद की शपथ ली. जनवरी 2016 में उनका निधन हो गया और अप्रैल 2016 में उनकी बेटी महबूबा मुफ्ती पार्टी की मुखिया और सीएम बन गईं. आपसी मतभेदों के चलते यह सरकार सिर्फ 4 साल का ही सफर तय कर पाई. 2018 में बीजेपी ने महबूबा मुफ्ती की सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया और उन्हें सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा.
जम्मू-कश्मीर के तीन हिस्से हुआ करते थे. एक जम्मू-कश्मीर, दूसरा लद्दाख और तीसरा पाक अधिकृत कश्मीर (PoK). इसमें से 4 विधानसभा सीटें लद्दाख की, 83 जम्मू-कश्मीर की और 24 सीटें PoK की हुआ करती थीं. कुल मिलाकर सीटें 111 थीं लेकिन चुनाव 87 पर ही होते थे क्योंकि PoK पर पाकिस्तान का कब्जा है. तब जम्मू क्षेत्र में 37 विधानसभा सीटें थीं और कश्मीर क्षेत्र में 46 सीटें थें. 4 सीटें लद्दाख की थीं. दो सदस्यों को नामांकित किया जाता था.
साल 2020 में हुए परिसीमन के बाद जम्मू क्षेत्र की सीटें 37 से बढ़ाकर 43 कर दी गईं. कश्मीर में जो 46 सीटें थीं वे बढ़कर 47 हो गईं और लद्दाख की सीटें खत्म हो गईं. POK की सीटें अभी भी 24 ही हैं. इस तरह कुल 114 सीटें हो गई हैं. हालांकि, अब जम्मू-कश्मीर में 90 सीटों पर चुनाव होंगे. एक बदलाव और हुआ है कि इस बार आरक्षण भी लागू होगा. कुल 9 विधानसभा सीटें अनुसूचित जनजाति (ST) के लोगों के लिए आरक्षित होंगी.
2024 में जम्मू-कश्मीर में हुए लोकसभा चुनावों ने एक सकारात्मक दिशा दिखाई है. जम्मू के साथ-साथ कश्मीर में भी बंपर वोटिंग हुई थी. इसी के बाद जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव की सुगबुगाहट शुरू हो गई. लोकसभा चुनाव में दो सीटों पर नेशनल कॉन्फ्रेंस, दो पर बीजेपी और एक पर जेल में बंद निर्दलीय उम्मीदवार इंजीनियर रशीद ने जीत हासिल की. एक तरफ नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस साथ चुनाव लड़ने के मूड में हैं तो महबूबा मुफ्ती की पीडीपी अभी भी ऊहापोह में है.
वहीं, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) जम्मू के साथ-साथ कश्मीर में भी अपने दम पर चुनाव में उतर सकती है. हालांकि, यह भी कहा जा रहा है कि लोकसभा चुनाव की तरह ही वह कश्मीर के कुछ क्षेत्रों में कुछ निर्दलीय या अन्य पार्टियों के उम्मीदवारों का समर्थन कर सकती है ताकि सरकार बनाने की स्थिति में वह उनकी मदद ले सके.