J&K Rajya Sabha Elections 2025: जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ने जा रहा है. केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद पहली बार राज्यसभा चुनाव होने जा रहे हैं. यह चुनाव केवल संसद की चार सीटों को भरने की औपचारिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि प्रदेश की बदलती राजनीतिक दिशा का संकेतक भी बन गया है. शुक्रवार को होने वाले इस चुनाव में सियासी पारा चरम पर है एक ओर नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) आत्मविश्वास से भरी हुई है, वहीं भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) अपनी रणनीतिक चालों से चौथी सीट पर कब्जा जमाने की कोशिश में जुटी है.
चुनाव की रूपरेखा और उम्मीदवारों की जंग
राज्यसभा की कुल चार सीटों के लिए यह चुनाव तीन अलग-अलग अधिसूचनाओं के तहत आयोजित हो रहा है.
पहली सीट पर एनसी के वरिष्ठ नेता चौधरी मोहम्मद रमज़ान का मुकाबला बीजेपी के अली मोहम्मद मीर से है.
दूसरी सीट के लिए एनसी ने सज्जाद किचलू को मैदान में उतारा है, जिनका सामना बीजेपी के राकेश महाजन से होगा.
तीसरी अधिसूचना के तहत दो सीटों पर मतदान होना है, जिन पर एनसी ने जी.एस. ओबेरॉय (शम्मी ओबेरॉय) और इमरान नबी डार को उम्मीदवार बनाया है, जबकि बीजेपी ने अपने प्रदेश अध्यक्ष सत शर्मा को उतारा है. इन नामों के ऐलान के बाद प्रदेश की राजनीतिक हलचल तेज हो गई है. हर दल अपनी-अपनी रणनीति के साथ चौथी सीट पर जीत सुनिश्चित करने में जुट गया है.
संख्यात्मक समीकरण नेशनल कॉन्फ्रेंस के पक्ष में
जम्मू-कश्मीर विधानसभा में कुल 88 सीटें हैं. इनमें से नेशनल कॉन्फ्रेंस के पास 41 विधायक हैं. इसके अलावा कांग्रेस के 6 विधायक, माकपा का 1 विधायक और 6 निर्दलीय सदस्य एनसी का समर्थन कर रहे हैं. यानी कुल मिलाकर एनसी के पास 54 विधायकों का समर्थन है, जो उसे तीन सीटों पर सीधी बढ़त देता है. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि एनसी की तीन सीटें लगभग तय हैं, लेकिन चौथी सीट को लेकर मुकाबला बेहद कांटे का रहने वाला है. बीजेपी अपने 28 विधायकों के साथ मजबूत रणनीति के तहत चुनावी मैदान में उतरी है और वह शेष वोटों के अधिकतम उपयोग पर ध्यान केंद्रित कर रही है.
बीजेपी की रणनीति: सत शर्मा पर दांव
बीजेपी ने इस बार अपनी रणनीति में अप्रत्याशित कदम उठाते हुए प्रदेश अध्यक्ष सत शर्मा को उम्मीदवार बनाया है. पार्टी सूत्रों के अनुसार, यह कदम भाजपा की “केंद्र में सशक्त उपस्थिति” को बनाए रखने और जम्मू-कश्मीर की राजनीति में प्रभाव दिखाने की दिशा में उठाया गया है.
बीजेपी के पास विधानसभा में 28 विधायक हैं. पार्टी ने गणितीय रूप से रणनीति तैयार की है ताकि विभाजित वोटों का लाभ उठाया जा सके.
जम्मू-कश्मीर पीपुल्स कॉन्फ्रेंस (JKPC) के प्रमुख सज्जाद गनी लोन ने मतदान से दूर रहने की घोषणा की है, जिससे बीजेपी को अप्रत्यक्ष रूप से लाभ मिलने की संभावना है. विधानसभा में विपक्ष के नेता सुनील शर्मा ने कहा, “बीजेपी अपनी रणनीति पर पूरी तरह अमल कर रही है और हमें भरोसा है कि परिणाम हमारे पक्ष में आएंगे.”
एनसी का भरोसा और कांग्रेस की भूमिका
हालांकि कांग्रेस की भूमिका अब भी पूरी तरह स्पष्ट नहीं है. बुधवार को कांग्रेस विधायकों ने एनसी द्वारा बुलाई गई सहयोगी बैठक में हिस्सा नहीं लिया. इससे राजनीतिक हलचल तेज हो गई. इस पर उमर अब्दुल्ला ने कहा, “हर पार्टी की अपनी प्रक्रिया होती है. कांग्रेस को अपने हाईकमान से निर्देशों का इंतजार करना पड़ता है. इसमें कोई मतभेद नहीं है.”
उन्होंने भरोसा जताया कि कांग्रेस “बीजेपी को समर्थन नहीं देगी” और “गठबंधन की भावना बनाए रखेगी.” साथ ही माकपा नेता एम.वाई. तारिगामी और निर्दलीय विधायकों को सहयोग के लिए धन्यवाद दिया.
पीडीपी का एनसी को समर्थन
इस चुनाव में विपक्षी एकजुटता को मजबूती मिली जब पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने घोषणा की कि उनकी पार्टी के तीनों विधायक एनसी के उम्मीदवारों के पक्ष में मतदान करेंगे. महबूबा ने कहा कि “बीजेपी को सत्ता समीकरण से दूर रखने के लिए विपक्ष का एकजुट रहना आवश्यक है.” इस समर्थन के बाद एनसी का संख्या बल 57 तक पहुंच गया, जिससे उसकी स्थिति और भी मजबूत हो गई है.
अब सारा खेल उन तीन विधायकों पर निर्भर करता है जिनकी स्थिति अभी अस्पष्ट है. जहां सज्जाद गनी लोन ने मतदान से दूर रहने की बात कही है, वहीं आम आदमी पार्टी के विधायक मेराज मलिक, जो वर्तमान में जेल में हैं, उन्होंने वॉलेट पोस्ट के जरिए वोट डालने की अनुमति मांगी है.
चार साल बाद फिर से राजनीतिक परीक्षा
फरवरी 2021 में जम्मू-कश्मीर की चारों राज्यसभा सीटें खाली हुई थीं, जब गुलाम नबी आजाद, नजीर अहमद लावे, फैयाज अहमद मीर और शमशेर सिंह मनहास का कार्यकाल समाप्त हुआ था. चार साल बाद हो रहा यह चुनाव केवल सीटों की पूर्ति नहीं, बल्कि प्रदेश की नई राजनीतिक दिशा का निर्धारण भी करेगा.
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, यह चुनाव नेशनल कॉन्फ्रेंस के लिए पुनरुत्थान का अवसर है, जबकि बीजेपी के लिए अपनी उपस्थिति और जनाधार साबित करने की परीक्षा. अगर एनसी चौथी सीट भी जीत लेती है, तो यह उमर अब्दुल्ला की नेतृत्व क्षमता के लिए एक बड़ा राजनीतिक संदेश होगा. वहीं बीजेपी के लिए हार उसकी रणनीतिक कमजोरी के रूप में देखी जाएगी.
जम्मू-कश्मीर की सियासत फिलहाल एक निर्णायक मोड़ पर है, और यह राज्यसभा चुनाव आगामी विधानसभा चुनावों की दिशा तय करने में अहम भूमिका निभा सकता है. जम्मू-कश्मीर में होने वाला यह राज्यसभा चुनाव सिर्फ संसद की चार सीटों की लड़ाई नहीं, बल्कि दो विचारधाराओं क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व और राष्ट्रीय प्रभाव के बीच सीधा संघर्ष है. अब देखना यह है कि एनसी का संख्या बल और विपक्षी एकजुटता भारी पड़ती है या बीजेपी की रणनीतिक चालें चौथी सीट पर चमत्कार कर पाती हैं.