नई दिल्ली: भारत बैटरी निर्माण क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने की दिशा में तेजी से कदम बढ़ा सकता है, यदि लिथियम पुनर्चक्रण और बैटरियों के पुनः उपयोग को बढ़ावा दिया जाए.
यह विचार बुधवार को चौथे ‘भारत बैटरी विनिर्माण एवं आपूर्ति श्रृंखला शिखर सम्मेलन’ में भारी उद्योग मंत्रालय के संयुक्त सचिव विजय मित्तल ने व्यक्त किए.
लिथियम संसाधनों की सीमितता और उसके समाधान
संयुक्त सचिव विजय मित्तल ने सम्मेलन को संबोधित करते हुए बताया कि देश में लिथियम संसाधनों की सीमित उपलब्धता बैटरी निर्माण उद्योग के लिए एक बड़ी चुनौती बन रही है. मित्तल ने कहा, “भारत के पास पर्याप्त लिथियम संसाधन नहीं हैं, जो बैटरी निर्माण में उपयोग किए जाते हैं. इसलिए, लिथियम पुनर्चक्रण और पुनः उपयोग इस क्षेत्र में आत्मनिर्भरता पाने के लिए बेहद महत्वपूर्ण साबित हो सकता है.”
पुनर्चक्रण और दोबारा उपयोग के महत्व पर बल
उन्होंने पुनर्चक्रण की प्रक्रिया को अनिवार्य बताते हुए आगे कहा कि लिथियम का दोबारा उपयोग भारत में इस क्षेत्र की वृद्धि के लिए एक प्रमुख कदम हो सकता है. उनका कहना था, “मेरे दौरे के दौरान यह जानकर आश्चर्य हुआ कि एक अग्रणी लिथियम निर्माता बैटरी निर्माण के मानकों के अनुरूप लिथियम का पुनर्निर्माण कर सकते हैं, जिससे हमारी आत्मनिर्भरता संभव हो सकती है.”
आईईएसए और बैटरी विनिर्माण के लिए नई सहायता योजनाएं
इस मौके पर भारतीय ऊर्जा भंडारण गठबंधन (आईईएसए) के अध्यक्ष देबी प्रसाद दास ने बताया कि उनका संगठन 60 से अधिक बैटरी और कलपुर्जा विनिर्माताओं के साथ मिलकर कार्य कर रहा है. दास ने यह भी उम्मीद जताई कि आगामी बजट में बैटरी विनिर्माण के पारिस्थितिकी तंत्र के लिए एक नई सहायता योजना की शुरुआत होगी, जो उद्योग की जरूरतों को पूरा करेगी.
सामूहिक प्रयास और सरकारी सहयोग की आवश्यकता
भारी उद्योग मंत्रालय ने यह स्पष्ट किया कि उद्योग के विकास के लिए उचित नीतियों का निर्माण करने के लिए वे उद्योग विशेषज्ञों के साथ निरंतर परामर्श कर रहे हैं. यह सामूहिक प्रयास और सरकारी सहयोग बैटरी विनिर्माण क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में निर्णायक साबित हो सकते हैं.
(इस खबर को इंडिया डेली लाइव की टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की हुई है)