Afzal Guru and Maqbool Bhatt: दिल्ली उच्च न्यायालय ने संसद हमले के दोषी मोहम्मद अफजल गुरु और जेकेएलएफ के संस्थापक मोहम्मद मकबूल भट की कब्रों को तिहाड़ जेल परिसर से हटाने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी है. दोनों को मौत की सज़ा सुनाई गई थी और जेल के अंदर ही फांसी दी गई थी. न्यायालय ने कहा कि ऐसे मामलों में सरकार द्वारा फांसी के समय लिए गए संवेदनशील निर्णय शामिल होते हैं, तथा एक दशक से अधिक समय के बाद उन्हें खोलना उचित नहीं है.
इसने कहा कि केवल सक्षम प्राधिकारी ही ऐसे मुद्दों पर निर्णय ले सकता है, तथा जेल परिसर के अंदर दफनाने या दाह संस्कार पर रोक लगाने वाले किसी विशिष्ट कानून के अभाव में न्यायिक हस्तक्षेप अनुचित है. कोर्ट ने कहा कि
लेकिन पिछले 12 सालों से मौजूद एक कब्र को हटाना. सरकार ने फांसी के समय यह फैसला किया था, यह देखते हुए कि शव परिवार को सौंप दिया जाएगा या जेल के बाहर दफ़नाया जाएगा. ये बहुत संवेदनशील मुद्दे हैं, जिनमें कई पहलुओं पर विचार किया जाता है. क्या अब हम 12 साल बाद उस फैसले को चुनौती दे सकते हैं?
फांसी दिए जाने के बाद दफनाया गया
अफजल गुरु और मकबूल भट की कब्रें तिहाड़ के अंदर ही हैं, जहां उन्हें 2013 और 1984 में फांसी दिए जाने के बाद दफनाया गया था. जनहित याचिका में अधिकारियों को निर्देश देने की मांग की गई थी कि यदि आवश्यक हो तो अफजल गुरु और मकबूल भट के पार्थिव शरीर को किसी गुप्त स्थान पर स्थानांतरित किया जाए, ताकि “आतंकवाद के महिमामंडन” और तिहाड़ जेल परिसर के दुरुपयोग को रोका जा सके.
विश्व वैदिक सनातन संघ और जितेंद्र सिंह द्वारा दायर याचिका में तर्क दिया गया कि राज्य द्वारा संचालित जेल के अंदर कब्रों का निर्माण और उनकी निरंतर उपस्थिति अवैध, असंवैधानिक और सार्वजनिक हित के खिलाफ है. याचिका में दावा किया गया है कि कब्रों ने तिहाड़ को "कट्टरपंथी तीर्थस्थल" में बदल दिया है, जो दोषी ठहराए गए आतंकवादियों की पूजा करने के लिए चरमपंथी तत्वों को आकर्षित कर रहा है.
इसमें आगे तर्क दिया गया कि ये कब्रें दिल्ली कारागार नियम, 2018 का उल्लंघन करती हैं, जिसके अनुसार मृत्युदंड प्राप्त कैदियों के शवों का निपटान इस प्रकार किया जाना चाहिए कि उनका महिमामंडन न हो, जेल अनुशासन बना रहे और सार्वजनिक व्यवस्था बनी रहे.