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BJP की प्रॉक्सी या चुनावों में बड़ा खेल करेगी गुलाम नबी आजाद की पार्टी DPAP? यहां जानें सच्चाई

Ghulam Nabi Azad: डीपीएपी को बचाए रखने के लिए संघर्ष कर रहे गुलाम नबी आजाद की सबसे बड़ी उम्मीद यह है कि इसके कुछ प्रमुख चेहरे जैसे डोडा सीट पर अब्दुल मजीद वानी जीतने में कामयाब हो जाएं ताकि सरकार गठन में उनकी हिस्सेदारी हो सके.हालांकि उनकी पार्टी के ऊपर बीजेपी की प्रॉक्सी होने का भी टैग लगा है.

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Ghulam Nabi Azad
Courtesy: Social Media

Ghulam Nabi Azad: रविवार सुबह 10:30 बजे के आसपास जम्मू क्षेत्र के डोडा जिले से 30 किलोमीटर दूर थाथरी बाजार में लोकतांत्रिक प्रगतिशील आजाद पार्टी (DPAP) के कुछ समर्थक पार्टी प्रमुख गुलाम नबी आजाद का इंतजार कर रहे हैं. आजाद के आगमन को लेकर तो समर्थक उत्साहित हैं लेकिन पार्टी के प्रचार के प्रति उनकी सुस्त प्रतिक्रिया से वे नाखुश भी हैं.

यह क्षेत्र जो डोडा विधानसभा सीट में आता है में DPAP का उम्मीदवार पूर्व मंत्री अब्दुल मजीद वानी हैं, जो 2002 और 2008 में कांग्रेस के टिकट पर जीत चुके थे. आजाद पहली बार वानी के लिए प्रचार कर रहे हैं और वह भी मतदान की तारीख के एक दिन पहले. 18 सितंबर को यहां पहले चरण का प्रचार समाप्त हो जाएगा. 

पार्टी का धीमा चुनाव प्रचार 

सितंबर 2022 में कांग्रेस छोड़ने के बाद गुलाम नबी आजाद ने DPAP का गठन किया था लेकिन पार्टी लगातार नेताओं के छोड़ने का सामना कर रही है. कांग्रेस के कई प्रमुख नेता जिन्होंने पहले आजाद की पार्टी जॉइन की थी, अब एक-एक करके पार्टी छोड़ चुके हैं.  डोडा से थाथरी तक का हाईवे खस्ता हाल है क्योंकि सड़क चौड़ीकरण का काम चल रहा है.  बीजेपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) के झंडे दुकानों और वाहनों पर दिखाई दे रहे हैं जबकि DPAP के पोस्टर और बैनर मुश्किल से नजर आ रहे हैं. 

आजाद की पार्टी को हाल ही में लोकसभा चुनावों में हार का सामना करना पड़ा जिस कारण दोनों उम्मीदवारों ने अपनी जमानत भी खो दी. इसके बाद आजाद ने अचानक यह घोषणा की कि वह बीमार हैं और अपने उम्मीदवारों के लिए प्रचार नहीं कर पाएंगे. इससे पार्टी में हलचल मच गई और चार उम्मीदवारों ने नामांकन पत्र वापस ले लिए.

आजाद की उम्मीदों का क्या होगा?

आजाद का घर भद्रवाह भी अब बिना उम्मीदवार के है जबकि वह खुद वहां के विधायक रह चुके हैं और जम्मू के चेनाब घाटी को अपनी गढ़ मानते हैं.  पार्टी की स्थिति को देखते हुए आजाद का सबसे बड़ी उम्मीद यही है कि उनके कुछ प्रमुख उम्मीदवार जीत जाएं ताकि उन्हें चुनाव के बाद की सरकार गठन प्रक्रिया में कुछ भूमिका मिल सके.  आजाद ने अपने प्रचार के दौरान विकास कार्यों और जन कल्याण की योजनाओं का हवाला दिया और गरीबों के लिए मुफ्त राशन और बिजली का वादा किया है. हालांकि उनकी पार्टी 90 सीटों में से सिर्फ 19 सीटों पर ही चुनावी मैदान में है। 

क्या बीजेपी की एजेंट है पार्टी?

हालांकि आजाद और उनकी पार्टी को भाजपा के एजेंट के तौर पर देखा जा रहा है लेकिन पार्टी के कार्यकर्ता अभी भी उनके साथ खड़े हैं और उम्मीद करते हैं कि वे जीत सकते हैं.  आजाद की राजनीतिक भविष्यवाणियां एक असमंजसपूर्ण विधानसभा का इशारा करती हैं जहां कोई भी पार्टी या गठबंधन स्पष्ट बहुमत नहीं पाएगा. आजाद ने अपने दौरे के दौरान थाथरी बाजार और काहरा में सभाएँ की और पार्टी कार्यकर्ताओं को एकजुट रहने का संदेश दिया.  क्या DPAP अपने राजनीतिक संकट से उबर पाएगी? यह सवाल चुनाव के नतीजे पर निर्भर करेगा.