Gaganyaan test flight: इसरो पहली बार भारतीय एस्ट्रोनॉट्स को अंतरिक्ष में ले जाने की तैयारी में है. गगनयान का पहला ट्रायल 21 अक्टूबर को होगा. इससे पहले इसरो सारी सावधानियां बरत रहा है. इस टेस्ट का मकसद है उड़ान के समय क्रू एस्केप सिस्टम (CES) का इन-फ्लाइट एबॉर्ट डिमॉन्सट्रेशन करना. इसे काफी जटिल प्रक्रिया माना जाता है.
एस्केप सिस्टम की जांच होने के बाद ही एस्ट्रोनॉट्स को कैप्सूल में बिठाकर अंतरिक्ष में भेजा जाएगा. इस महत्वपूर्ण सिस्टम को अमेरिकी मर्करी, अपोलो, रूसी सोयुज और चीन के शेनझोउ जैसे प्रतिष्ठित अंतरिक्ष यान में इस्तेमाल किया गया है. इससे इमरजेंसी में एस्ट्रोनॉट्स की जान बचाई जाती है. हालांकि अब ये सवाल उठता है कि इसकी जरुरत क्यों पड़ी? ये अस्तित्व में कैसे आई?
दरअसल जनवरी की एक मनहूस दोपहर में अपोलो मिशन के उद्घाटन से कुछ हफ्ते पहले अंतरिक्ष यात्री गस ग्रिसोम, एड व्हाइट और रोजर चैफ़ी ने एक मिशन के लिए तैयारी की. वे AS-204 कमांड/सर्विस मॉड्यूल के अंदर थे, जो उन्हें चंद्रमा पर ले जाता.
बंधन में बंधे, दबाव में, और जीवन समर्थन प्रणालियों से जुड़े हुए वे नियमित दौड़ से कुछ सेकंड दूर थे. फिर, एक पल में कैप्सूल आग की लपटों में बदल गया, जो मात्र 25.5 सेकंड में 1,000 डिग्री से अधिक तक पहुंच गई. नासा ने उन तीनों को खो दिया. इतिहास से प्रेरणा लेते हुए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन अपने स्वदेशी रूप से विकसित क्रू एस्केप सिस्टम (सीईएस) का परीक्षण करने के लिए तैयार है.
इस हृदय विदारक घटना ने नासा को अंतरिक्ष यान सुरक्षा की फिर से डेवलप करने के लिए मजबूर किया. 27 सितंबर, 1983 को, एक सोयुज टी-10 रॉकेट को रूसी अंतरिक्ष यात्री व्लादिमीर टिटोव और गेन्नेडी स्ट्रेकालोव को सैल्यूट अंतरिक्ष स्टेशन पर ले जाने के लिए निर्धारित किया गया था. उलटी गिनती के अंतिम सेकंड के दौरान, प्रक्षेपण यान में आग लग गई जिसके बाद पीएडी स्केप तंत्र की मदद से अंतरिक्ष यात्रियों की जान बचाई गई.
11 अक्टूबर, 2018 को, सोयुज MS-10 की चालक दल की उड़ान के दौरान दो अंतरिक्ष यात्रियों को अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन तक ले जाने का इरादा था. बूस्टर पृथक्करण में खराबी आ गई, जिससे चालक दल के लिए जहाज पर बने रहने के लिए असुरक्षित स्थिति पैदा हो गई. क्रू एस्केप सिस्टम (सीईएस) सक्रिय हो गया और अंतरिक्ष यात्रियों को सुरक्षित रूप से पृथ्वी पर वापस लाया गया.
इतिहास में हुई घटनाओं के प्रेरणा लेते हुए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) 'क्रू एस्केप टेस्ट' आयोजित करने के लिए तैयार है. यह प्रणाली रक्षा की अंतिम पंक्ति है, जो गगनयान मिशन के प्रारंभिक और महत्वपूर्ण चरणों के दौरान आपातकालीन स्थिति में अंतरिक्ष यात्रियों को बचाने के लिए तैयार है.
इस टेस्ट से इसरो उड़ान क्रू एस्केप सिस्टम को चेक करेगा. इस समय कैप्सूल की गति मैक 1.2 यानी 1431 KM प्रतिघंटा की रफ्तार से उड़ान भर रहा होगा. स्पीड में 11.7 किलोमीटर की ऊंचाई से कैप्सूल रॉकेट से 60 डिग्री पर अलग होगा. वहां से दूसरी दिशा में जाएगा. क्रू-मॉड्यूल और क्रू-एस्केप सिस्टम 596 km प्रतिघंटा की रफ्तार से 17 किलोमीटर ऊपर जाना शुरू करेगा. वहां पर दोनों हिस्से अलग होंगे. कुछ नीचे आते ही पैराशूट खुल जाएंगे.