पर्यावरण मंत्रालय ने भारत के अधिकांश थर्मल पावर प्लांट्स को फ्लू गैस डीसल्फराइजेशन (FGD) प्रणालियों को स्थापित करने से छूट दे दी है, जो सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) उत्सर्जन को कम करने के लिए डिज़ाइन की गई हैं. फ्लू गैस, थर्मल पावर प्लांट्स से निकलने वाला अवशेष, SO2 उत्सर्जित करता है, जो वायुमंडल में मिलकर PM2.5 बनाता है, जो वायु प्रदूषण से जुड़ा है.
FGD प्रणाली से छूट
भारत में लगभग 180 थर्मल पावर प्लांट्स हैं, जिनमें कई इकाइयां शामिल हैं. अब केवल 11% यानी 600 थर्मल पावर प्लांट इकाइयों को, जिन्हें ‘श्रेणी A’ कहा जाता है, अनिवार्य रूप से FGD प्रणाली स्थापित करनी होगी. ये संयंत्र राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र या दस लाख से अधिक आबादी (2011 जनगणना) वाले शहरों के 10 किमी दायरे में हैं. इन संयंत्रों को मूल रूप से 2017 तक FGD स्थापित करना था, लेकिन अब 30 दिसंबर 2027 तक का समय दिया गया है.
श्रेणी B और C की स्थितिश्रेणी B (11%) में वे संयंत्र हैं जो गंभीर रूप से प्रदूषित क्षेत्रों (CPA) या गैर-प्राप्ति शहरों (NAC) के 10 किमी दायरे में हैं. इनके लिए FGD स्थापना विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति (EAC) के निर्णय पर निर्भर करेगी, जिसकी समय सीमा 30 दिसंबर 2028 है. शेष 78% संयंत्र, जिन्हें ‘श्रेणी C’ कहा गया है, अब FGD स्थापना से पूरी तरह मुक्त हैं.
विशेषज्ञों ने जताई चिंता
ऊर्जा और पर्यावरण विशेषज्ञ कार्तिक गणेशन ने कहा, “CPCB और MoEFCC को SOX नियंत्रण के लिए रेट्रोफिट का अधिक सावधानीपूर्वक लाभ-लागत मूल्यांकन करना चाहिए था. भारत में 15% PM2.5 प्रदूषण कोयले के दहन से होता है. यह अधिसूचना विज्ञान पर आधारित नहीं है.” क्लीन एयर पर शोध करने वाले मनोज कुमार ने निर्णय की आलोचना करते हुए कहा, “पावर प्लांट्स 200 किमी दूर तक प्रदूषण फैलाते हैं. लंबी चिमनियां प्रदूषण को नियंत्रित नहीं करतीं, बल्कि SO2 को ऊपरी वायुमंडल में फैलाती हैं, जो जहरीले कण बनाता है. यह निर्णय लाखों लोगों के फेफड़ों और हृदय रोगों के जोखिम को बढ़ाएगा.”
चुनौतियां और समिति की सिफारिश
प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार अजय सूद की समिति ने सुझाव दिया था कि भारत में SO2 का स्तर 10-20 माइक्रोग्राम/घन मीटर है, जो 80 की सीमा से कम है. भारतीय कोयले में सल्फर कम होने और FGD वाले संयंत्रों के आसपास SO2 स्तर में अंतर न होने के आधार पर यह छूट दी गई.