'कांग्रेस आपकी संपत्ति का सर्वे करवाएगी और उस संपत्ति को उन लोगों में बांट देगी जिनके ज्यादा बच्चे हैं.' हाल ही में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक चुनावी रैली के दौरान यह बयान दिया तो हंगामा खड़ा हो गया. अकबरुद्दीन ओवैसी ने उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ के भाई-बहनों की संख्या को लेकर सवाल उठा दिए. बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने तो नेताओं और उनके परिवार की संख्या की पूरी लिस्ट ही जारी कर दी. पहले भी कई बार ऐसे विवाद हुए हैं जिनमें दावे किए जाते रहे हैं कि फलां धर्म के लोग ज्यादा बच्चे पैदा करते हैं. आखिर इस दावे का सच क्या है?
जनसंख्या के हिसाब से देखें तो भारत में ज्यादातर जनसंख्या हिंदुओं की है. हिंदुओं के बाद दूसरे नंबर मुस्लिम हैं जिनकी जनसंख्या लगभग 13 करोड़ के आसपास है. आरोप लगते हैं कि बीते कुछ सालों मुस्लिम लोग ज्यादा बच्चे पैदा कर रहे हैं और वे तेजी से अपनी जनसंख्या बढ़ा रहे हैं. ऐसे में धार्मिक आधार पर जनगना के जो आंकड़ें हैं वे 13 साल पुराने हैं क्योंकि आखिरी जनगणना साल 2011 में ही हुई थी. 2021 में जनगणना होनी थी लेकिन कोरोना महामारी समेत कई अन्य कारणों से चलते इसमें देरी हुई है.
साल 2011 की जनगणना के मुताबिक, भारत की कुल जनसंख्या 121.08 करोड़ थी. इसमें से मुस्लिमों की संख्या 17.22 करोड़ थी जो कि कुल जनसंख्या का 14.2 प्रतिशत है. 2011 से पहले 2001 में जनगणना हुई थी, तब मुस्लिमों की संख्या 13.81 करोड़ यानी 13.43 प्रतिशत थी. 2001 से 2011 के 10 सालों में मुस्लिमों की जनसंख्या में 24.69 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई. आंकड़ों के मुताबिक, मुस्लिमों की जनसंख्या में यह सबसे धीमी बढ़ोतरी थी. इससे पहले साल 1991 से 2001 के बीच मुस्लिम जनसंख्या में बढ़ोतरी की दर 29.49 प्रतिशत थी.
नेशनल सैंपल सर्वे का 68वां राउंड जुलाई 2011 से जून 2012 के बीच हुआ. इसमें धर्म के आधार पर परिवार के लोगों की संख्या का औसत निकाला गया. इसके मुताबिक, हिंदुओं के परिवार में लोगों की संख्या 4.3, मुस्लिमों के परिवार में 5, ईसाईयों के परिवार में 3.9, सिखों के परिवार में 4.7 और अन्य के परिवार में 4.1 थी. इस तरह एक परिवार में लोगों की औसत संख्या 4.3 निकली.
इस लिहाज देखें तो मुस्लिमों के परिवार में लोगों की संख्या देश के औसत की तुलना में 0.7 ज्यादा थी. वहीं, हिंदुओं के परिवार में लोगों की संख्या राष्ट्रीय औसत के जितनी ही थी. बाकी के धर्मों में यह संख्या राष्ट्रीय औसत से भी कम निकली.
साल 2019 के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आंकड़ों के मुताबिक, मुस्लिमों की प्रजनन दर सबसे ज्यादा थी. हालांकि, बीते दो दशकों की तुलना में इसमें कमी जरूर आई है. 1992 में मुस्लिमों की जन्म दर 4.4 थी जो 2019 में घटकर 2.4 रह गई. हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि इसके पीछे आर्थिक और सामाजिक कारण होते हैं और इसका धर्म से कोई संबंध नहीं होता है.
बाकी धर्मों में देखें तो हिंदुओं में जन्मदर 3.3 से घटकर 1.9, ईसाईयों में 2.9 से 1.9, बौद्धों में 2.9 से 1.4, जैन में 2.4 से 1.6 और सिक्खों में 2.4 से घटकर 1.6 हो चुकी है. ये सारे आंकड़े 2000 से 2010 के बीच के हैं.