Maharashtra Assembly Elections 2024: मराठवाड़ा क्षेत्र में 46 विधानसभा सीटें हैं, जहां सत्तारूढ़ महायुति और विपक्षी महा विकास अघाड़ी (एमवीए) की जातिगत एकजुटता और ध्रुवीकरण की चाल सबसे अधिक दिखाई देगी. दरअसल, मराठवाड़ा क्षेत्र मराठा आरक्षण आंदोलन का केन्द्र है, जो 20 नवम्बर को होने वाले महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में इसके महत्व को दिखाता है.
2023 में मराठा आरक्षण आंदोलन की शुरुआत के बाद से, सत्तारूढ़ शिवसेना प्रमुख और मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे (जो स्वयं मराठा हैं) मराठों को ओबीसी श्रेणी में शामिल करने की मांग पर सावधानी से आगे बढ़ रहे हैं. सितंबर 2023 में, शिंदे ने कार्यकर्ता मनोज जरांगे-पाटिल से मिलने के लिए मराठवाड़ा के जालना जिले के अंतरवाली-सारती गांव की यात्रा की (जो कुनबी (ओबीसी) श्रेणी के तहत मराठा आरक्षण की मांग को लेकर आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं) उनसे अपना अनशन समाप्त करने का आग्रह किया.
राज्य पिछड़ा आयोग के अनुसार, राज्य की जनसंख्या में मराठों की हिस्सेदारी 28% है. मराठा आरक्षण आंदोलन के बाद, महाराष्ट्र विधानसभा ने फरवरी में समुदाय को 10% अलग आरक्षण देने के लिए एक नया कानून पारित किया. महायुति गठबंधन (शिवसेना, भाजपा और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी) को उम्मीद थी कि ये पहुंच उन्हें 2024 के लोकसभा चुनावों में बढ़त दिलाएगी.
हालांकि, ये उस तरह से नहीं हुआ, क्योंकि पाटिल और प्रदर्शनकारियों ने ओबीसी श्रेणी के तहत मराठा कोटा की मांग जारी रखी. महायुति गठबंधन ने इस क्षेत्र की आठ लोकसभा सीटों में से सात खो दीं. कांग्रेस ने तीन सीटें (लातूर, जालना और नांदेड़) जीतीं, जबकि उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना (यूबीटी) ने भी तीन सीटें (धाराशिव, परभणी और हिंगोली) जीतीं. शरद पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी (एसपी) ने बीड में जीत हासिल की, जबकि शिंदे ने सेना को सिर्फ छत्रपति संभाजी नगर सीट मिल रही है.
मराठवाड़ा क्षेत्र में आठ जिले शामिल हैं, जिनमें छत्रपति संभाजी नगर (पहले औरंगाबाद), बीड, हिंगोली, जालना, लातूर, नांदेड़, परभणी और धाराशिव (पहले उस्मानाबाद) शामिल हैं. महाराष्ट्र के चार मुख्यमंत्री (कांग्रेस के शिवाजीराव पाटिल-निलंगेकर, शंकरराव चव्हाण, विलासराव देशमुख और अशोक चव्हाण) इसी क्षेत्र से हैं. ये कांग्रेस का गढ़ था, लेकिन 70 के दशक तक पार्टी का प्रभाव कम होने लगा.
1970 के दशक में तत्कालीन सीएम शरद पवार ने मराठवाड़ा यूनिवर्सिटी का नाम बदलकर डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर यूनिवर्सिटी करने का प्रस्ताव रखा था, जिसके बाद विरोध और दंगे हुए थे. उस समय अपने संस्थापक दिवंगत बाल ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना मराठवाड़ा में अपना आधार बनाने में कामयाब रही और कुछ मराठा नेताओं को अपने पाले में ले आई.
1990 के दशक में जब राम मंदिर की मांग जोर पकड़ रही थी, तब भाजपा ने इस क्षेत्र में अपनी पैठ बनाई. हिंदुत्व की राह पर चलने वाली शिवसेना ने अपना आधार मजबूत किया. 2000 के दशक के आखिर में, हैदराबाद स्थित पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल-मुसिलमीन (एआईएमआईएम) ने भी मराठवाड़ा में पैठ बनानी शुरू कर दी थी. ये क्षेत्र, जिसके बारे में कहा जाता है कि इसमें लगभग 15% मुस्लिम आबादी है, हैदराबाद के तत्कालीन निज़ाम राज्य का हिस्सा था और हैदराबाद के साथ सांस्कृतिक समानता शेयर करता है. मुस्लिम बहुल क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने के साथ, एआईएमआईएम ने छत्रपति संभाजी नगर और नांदेड़ जिलों में कांग्रेस के आधार को और कम कर दिया.
कांग्रेस ने धीरे-धीरे इस क्षेत्र में अपना राजनीतिक प्रभुत्व खो दिया, इसका प्रभाव विलासराव देशमुख के गृह जिले लातूर और अशोक चव्हाण के गृह जिले नांदेड़ तक सीमित रह गया.
2019 के विधानसभा चुनावों में, भाजपा और अविभाजित शिवसेना ने मिलकर 28 सीटें जीतीं, जबकि कांग्रेस और एनसीपी ने 8-8 सीटें जीतीं. दो सीटें अन्य के खाते में गईं. 2019 में, AIMIM ने महाराष्ट्र में अपना पहला लोकसभा चुनाव जीता जब उसके उम्मीदवार इम्तियाज जलील ने औरंगाबाद सीट से जीत हासिल की, जिससे वहां शिवसेना के सांसद का लगातार तीन कार्यकाल समाप्त हो गया.
महाराष्ट्र की राजनीति में 2019 से ही उथल-पुथल देखने को मिल रही है, जिसमें शिवसेना और एनसीपी में विभाजन भी शामिल है. मराठा आरक्षण आंदोलन ने भी इस क्षेत्र में हलचल मचा दी है. आने वाले चुनावों में ये कारक इस क्षेत्र में अहम भूमिका निभाएंगे. मराठा वोटों का महत्व स्पष्ट है: मराठवाड़ा से आठ में से सात सांसद मराठा समुदाय से हैं. दूसरी सीट लातूर अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट है.
लोकसभा चुनाव इस बात का भी संकेत है कि मराठा आंदोलन के मद्देनजर विधानसभा चुनावों में जातिगत राजनीति किस तरह भूमिका निभाएगी. उदाहरण के लिए, बीड और परभणी में मराठा, मुस्लिम और दलित वोटों के ध्रुवीकरण और विभाजन के कारण महायुति के ओबीसी उम्मीदवार पंकजा मुंडे और महादेव जानकर की हार हुई. इसी तरह, शिंदे सेना के मराठा उम्मीदवार संदीपन भुमारे ने छत्रपति संभाजी नगर से उद्धव सेना के ओबीसी चेहरे चंद्रकांत खैरे के खिलाफ जीत हासिल की.
जरांगे-पाटिल ने पहले ही मराठों से अपील की है कि वे इस चुनाव में 100% वोट दें और ओबीसी दर्जे की हमारी मांग का विरोध करने वालों को हराएं. इसके साथ ही, शिवसेना और एनसीपी के विभाजन के बाद पुनर्गठन भी बड़ी भूमिका निभाएगा. लोकसभा चुनावों में हार के बावजूद, भाजपा की प्रमुख वंजारी चेहरा पंकजा मुंडे और उनके चचेरे भाई, राकांपा के धनंजय मुंडे, विधानसभा चुनावों में, विशेषकर बीड जिले में, प्रमुख चेहरों में शामिल होने की संभावना है.
अशोक चव्हाण के कांग्रेस से भाजपा में आने के बाद, लातूर से अमित देशमुख मराठवाड़ा में कांग्रेस का चेहरा बनकर उभरे हैं. कांग्रेस की ओर से तीन लोकसभा सीटें जीतने के बाद, उन्हें इस क्षेत्र में पार्टी को बड़ी जीत दिलाने का काम सौंपा गया है.
शिवसेना में फूट के बावजूद, उद्धव ठाकरे ने चार में से तीन लोकसभा सीटें जीतकर अपनी बढ़त बनाए रखने में कामयाबी हासिल की है. उनका अभियान भाजपा के खिलाफ मतदाताओं से भावनात्मक अपील पर आधारित है, जिस पर उन्होंने शिवसेना को विभाजित करने का आरोप लगाया है.
इस क्षेत्र में विकास संबंधी चुनौतियां भी हैं. सूखाग्रस्त क्षेत्र, मराठवाड़ा हैदराबाद निज़ाम के शासन के अधीन था और 17 सितंबर, 1948 को स्वतंत्रता के 13 महीने बाद भारत में शामिल कर लिया गया था. आज भी, इस क्षेत्र में सिंचाई और बुनियादी ढांचे की सुविधाओं का अभाव है. यहां की लगभग 65% आबादी खेती-बाड़ी पर निर्भर है. 2023 में, महाराष्ट्र में 2,851 से अधिक किसान आत्महत्या कर चुके हैं, जिनमें से 1,088 मराठवाड़ा के थे.