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राष्ट्रपति और राज्यपाल हमेशा के लिए टाल सकते हैं बिल? सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्यों से मांगा जवाब

मंगलवार को भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए केंद्र सरकार और सभी राज्यों को नोटिस जारी किया.

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Edited By: Garima Singh
Supreme court
Courtesy: X

Supreme court: मंगलवार को भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए केंद्र सरकार और सभी राज्यों को नोटिस जारी किया. यह नोटिस राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के उस संदर्भ के जवाब में है, जिसमें उन्होंने पूछा है कि क्या न्यायालय राज्यपालों या राष्ट्रपति के लिए राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी देने की समयसीमा निर्धारित कर सकता है. इस मामले की गंभीरता को देखते हुए, अदालत ने इस मुद्दे पर विस्तृत सुनवाई की घोषणा की है.

मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने इस मामले को राष्ट्रीय महत्व का बताते हुए सुनवाई की रूपरेखा तैयार की. इस पीठ में न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा और न्यायमूर्ति ए.एस. चंदुरकर शामिल हैं. पीठ ने कहा, “इस मुद्दे के राष्ट्रीय निहितार्थ हैं, और इसकी गहन जांच आवश्यक है.” सुनवाई का कार्यक्रम 29 जुलाई को निर्धारित किया जाएगा, जबकि विस्तृत सुनवाई अगस्त के मध्य में शुरू होगी.

राष्ट्रपति का संदर्भ और सवाल

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संविधान के अनुच्छेद 143(1) के तहत सर्वोच्च न्यायालय से परामर्श मांगा है. इस संदर्भ में उन्होंने 14 महत्वपूर्ण प्रश्न उठाए हैं, जिसमें 8 अप्रैल के एक फैसले पर स्पष्टता मांगी गई है. उक्त फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने राज्यपालों द्वारा राष्ट्रपति को भेजे गए विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए तीन महीने की समयसीमा निर्धारित की थी. यह फैसला तमिलनाडु सरकार और राज्यपाल के बीच उत्पन्न विवाद के संदर्भ में आया था. यह पहली बार था जब संविधान के अनुच्छेद 200 और 201 के तहत, जो विधायी प्रक्रिया में राज्यपालों और राष्ट्रपति की भूमिका को नियंत्रित करते हैं, ऐसी समयसीमा तय की गई.

संवैधानिक प्रश्न की गंभीरता

राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 143(1) का उपयोग इस मुद्दे की संवैधानिक गंभीरता को रेखांकित करता है. यह अनुच्छेद राष्ट्रपति को सार्वजनिक महत्व के मामलों में सर्वोच्च न्यायालय से सलाह लेने का अधिकार देता है. हालांकि, न्यायालय की अंतिम राय बाध्यकारी नहीं होगी, लेकिन इसका प्रभावशाली अधिकार होगा. अदालत ने सभी हितधारकों से अगले मंगलवार तक जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है.

आगे की राह

यह मामला न केवल विधायी प्रक्रिया में पारदर्शिता और जवाबदेही को प्रभावित करेगा, बल्कि केंद्र और राज्यों के बीच संवैधानिक संबंधों को भी परिभाषित कर सकता है. सर्वोच्च न्यायालय का अंतिम निर्णय इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा.