बॉम्बे हाईकोर्ट ने शुक्रवार (25 जुलाई) को सीपीआई(एम) की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें मुंबई पुलिस द्वारा गाजा में कथित नरसंहार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन की अनुमति न देने के फैसले को चुनौती दी गई थी. कोर्ट ने याचिकाकर्ता को "संकीर्ण दृष्टिकोण" छोड़कर भारत के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने की सलाह दी.
कोर्ट की टिप्पणी: देश के मुद्दों पर करें ध्यान
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, दो जजों की पीठ की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस रवींद्र वी. घुगे ने मौखिक टिप्पणी में कहा, "अपने देश की ओर देखें. देशभक्त बनें. यह देशभक्ति नहीं है. अपने देश के मुद्दों के लिए आवाज उठाएं." कोर्ट ने कहा कि सीपीआई(एम) का इस मामले में कोई कानूनी आधार नहीं है, क्योंकि वे प्रदर्शन की अनुमति मांगने वाले आवेदक नहीं थे.
पुलिस ने क्यों ठुकराई अनुमति?
17 जून को, मुंबई पुलिस ने ऑल इंडिया पीस एंड सॉलिडैरिटी फाउंडेशन (एआईपीएसएफ) के दक्षिण मुंबई के आजाद मैदान में गाजा मुद्दे पर प्रदर्शन की अनुमति के आवेदन को अस्वीकार कर दिया था. आजाद मैदान को विरोध प्रदर्शन और रैलियों के लिए नामित स्थान माना जाता है.
जस्टिस घुगे ने कहा कि सीपीआई(एम) भारत में पंजीकृत है और उसे प्रदूषण, कचरा निपटान, बाढ़, अवैध पार्किंग और जल निकासी जैसे मुद्दों को उठाना चाहिए. उन्होंने सवाल किया, "आप इन मुद्दों पर प्रदर्शन नहीं कर रहे, बल्कि हजारों मील दूर हो रही घटनाओं पर ध्यान दे रहे हैं. ऐसे मुद्दों पर प्रदर्शन क्यों नहीं?
"याचिकाकर्ता का तर्क
सीपीआई(एम) का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता मिहिर देसाई ने जस्टिस गौतम अंखड के साथ वाली पीठ के समक्ष तर्क दिया कि पुलिस ने इस आधार पर अनुमति अस्वीकार की कि प्रदर्शन देश की विदेश नीति के खिलाफ है और इससे कानून-व्यवस्था की स्थिति बिगड़ सकती है.
उन्होंने कहा कि नागरिकों को विरोध प्रदर्शन के लिए निर्धारित स्थान पर अपनी बात रखने का अधिकार है, भले ही यह विदेश नीति के खिलाफ हो. हालांकि, राज्य सरकार के वकील ने बताया कि प्रस्तावित प्रदर्शन के खिलाफ आपत्तियां प्राप्त हुई थीं, और कानून-व्यवस्था की स्थिति को ध्यान में रखते हुए पुलिस ने अनुमति देने से इनकार किया.
कोर्ट का अंतिम फैसला
जस्टिस घुगे ने कहा कि याचिकाकर्ता का रुख देश की विदेश नीति से अलग है, और यह मामला विदेश मंत्रालय पर छोड़ देना चाहिए. इसके बाद, पीठ ने याचिकाकर्ता के कानूनी आधार की कमी के कारण याचिका को "अस्थिर" बताकर खारिज कर दिया.
सीपीआई(एम) की प्रतिक्रिया
उसी दिन, सीपीआई(एम) पोलित ब्यूरो ने एक बयान में कोर्ट की टिप्पणियों की "निंदा" की. बयान में कहा गया, "ऐसा करते हुए, कोर्ट ने पार्टी की देशभक्ति पर सवाल उठाने की हद तक चला गया. विडंबना यह है कि पीठ को न तो संविधान के प्रावधानों की जानकारी है, जो एक राजनीतिक दल के अधिकारों को सुनिश्चित करते हैं, और न ही हमारे देश के इतिहास और फलस्तीनियों के साथ हमारे लोगों की एकजुटता की. ये टिप्पणियां केंद्र सरकार के रुख के साथ स्पष्ट राजनीतिक पक्षपात को दर्शाती हैं."