हुगली जिले के हरिपाल ब्लॉक के मोहिस्टिकरी में अपने दो मंजिला क्लिनिक 'चंडीमाता मेडिकल हॉल और चंडीमाता डॉक्टर्स चैंबर्स' में 64 साल के नीरपद सामंत के पास एक के बाद एक मरीज देखने के लिए समय नहीं है. बगल के कमरे में डेंटिस्ट संजीव घोष मंडल एक मरीज को देख रहे हैं, जबकि तीन अन्य अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं.
'निरपदा डाक्टर' के नाम से फेमस सामंत बी. फार्मा हैं, जबकि क्लिनिक में डेंटिस्ट मोंडोल ने केवल 10वीं कक्षा तक पढ़ाई की है.बंगाल में आरजी कर मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में हुई ट्रेनी डॉक्टर की रेप और हत्या की वारदात के बाद डॉक्टरों का आंदोलन जारी है और पिछले 15 दिनों से सरकारी मेडिकल कॉलेजों में अनिश्चितता बनी हुई है. जहां OPD बंद हैं, ऐसे में अब बंगाल में मरीज झोलाछाप डॉक्टरों के पास जाने लगे हैं. दवाइयों के खर्च के अलावा 100-150 रुपये प्रति मरीज के हिसाब से झोलाछाप डॉक्टर इलाज और दवाइयां देते हैं और गंभीर मरीजों को नर्सिंग होम रेफर कर देते हैं.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले 40 सालों से मरीजों को देख रहे सामंत ने कहा कि मैंने एमबीबीएस डॉक्टरों की बारीकी से निगरानी करके चीजें सीखी हैं. पहले मैं अपने क्लिनिक में रोजाना 20-25 मरीज देखता था. अब हर रोज 40-45 मरीज आते हैं. यहां तक कि रोजाना घर पर आने वाले मरीजों की संख्या भी 2-3 से बढ़कर 4-5 हो गई है.
सामंत के क्लिनिक में एक छोटा सा वेटिंग रूम, एक बिस्तर और एक कुर्सी के साथ दो कंस्लटिंग रूम और एक ज्वाइंट फार्मेसी है. उन्होंने कहा कि हमारे पास सभी प्रकार के मरीज आते हैं और हम दवाइयों के लिए पैसे और 100 रुपये अतिरिक्त लेते हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में हम ही इलाज की पहली पंक्ति में हैं.
हुगली जिले के तारकेश्वर में एक डेंटिस्ट के असिस्टेंट रहे मोंडोल (68) अब शुक्रवार को चंडीमाता मेडिकल हॉल और डॉक्टर के चैंबर में मरीजों को देखते हैं, जबकि सप्ताह के बाकी दिनों में वे हुगली और पड़ोसी बर्धमान जिले में क्लीनिकों में व्यस्त रहते हैं. उन्होंने कहा कि मैं भले ही 10वीं पास हूं, लेकिन मेरे पास बहुत अनुभव है. हाल ही में मरीजों की आमद बढ़ी है और आप देख सकते हैं कि मेरे पास चार मरीज वेटिंग लिस्ट में हैं.
'निरापद डाक्टर' के एक और रेग्युलर कस्टमर 62 साल के अस्तु मलिक हैं, जो कहते हैं कि बाद वाले ने न केवल उनका इलाज किया, बल्कि ज़रूरत पड़ने पर घर-घर जाकर भी उनका हालचाल पूछा. आनंदपुर स्वास्थ्य केंद्र हमारे गांव के पास है, लेकिन वहां कोई डॉक्टर नहीं है. इसलिए, हम हमेशा निरापद डाक्टर पर निर्भर रहते हैं. कोविड के दौरान, जब लगभग सभी एमबीबीएस डॉक्टरों ने खुद को अपने घर के अंदर बंद कर लिया, तो उन्होंने हमारा इलाज किया. हमें उन पर भरोसा है. बुखार की दवा लेने आए खटीक मलिक (65) ने कहा कि चंडीमाता क्लिनिक में हमें न केवल डॉक्टर का इलाज मिलता है, बल्कि न्यूनतम दर पर दवा भी मिलती है.
करीब एक किलोमीटर दूर, सिंगुर ब्लॉक के बोइचिपोटा में, बिष्णुपद बेरा (54), अपने क्लिनिक में मरीजों को देखते हैं, जिसमें एक बिस्तर के साथ एक कंसल्टेंट रूम है. उन्होंने कहा कि मेरे पास 30 से अधिक वर्षों का अनुभव है. पास में एक प्राइमरी हेल्थ सेंटर है, लेकिन डिलीवरी के अलावा वहां कुछ खास नहीं होता. लोग हमारे पास आते हैं. बेरा बीएससी पास हैं, लेकिन दावा करते हैं कि उन्होंने एक डॉक्टर के साथ सहायक के रूप में काम किया और वहीं अपने कौशल को निखारा. उन्होंने कहा कि जिस जगह मैंने ट्रेनिंग ली, डॉक्टर ने मुझे अपने बेटे की तरह पढ़ाया. मैं प्रारंभिक उपचार के रूप में इंजेक्शन और सलाइन दे सकता हूं, ईसीजी, डायलिसिस आदि कर सकता हूं.
बिष्णुपद बेरा ने कहा कि हम कभी कोई जोखिम नहीं लेते. अगर हमें लगता है कि हम किसी मरीज का इलाज नहीं कर सकते, तो हम उन्हें नर्सिंग होम में रेफर कर देते हैं. हम उन्हें अस्पताल में भर्ती करने की व्यवस्था करते हैं. स्कीन की समस्या से जूझ रहे पड़ोसी सस्तिताला गांव के रॉबिन परमानिक (43) बेरा के क्लिनिक में आए. उन्होंने बताया कि यहां फीस बहुत कम है. इसके अलावा, सरकारी डॉक्टर हड़ताल पर हैं.
बोइचिपोटा से करीब एक किलोमीटर दूर दोशानी गांव में 52 साल के माणिक पाल का क्लीनिक है. माणिक पाल बताते हैं कि 1985 में ग्रेजुएशन पूरा करने के बाद, मैंने इस पेशे में प्रवेश किया. पहले, मैंने एक एमबीबीएस डॉक्टर के सहायक के रूप में एक अलग जगह पर काम किया और 10 साल बाद, मैंने अपना खुद का चैंबर शुरू किया. मैं लगभग 30 वर्षों से नुस्खे लिख रहा हूं.
उन्होंने कहा कि सुबह से ही मैं अपने घर पर अपना चैंबर शुरू कर देता हूं और कम से कम 30 मरीजों को देखता हूं. फिर सुबह 11 बजे के आसपास मैं यहां आता हूं और मरीजों को देखता हूं, जिनकी संख्या भी कम से कम 30 होती है. इसके अलावा, हर दिन 8-10 लोगों के घर जाकर उनका हालचाल पूछता हूं.
माणिक पाल आमतौर पर सर्दी-जुकाम, बुखार और दस्त की शिकायत वाले मरीजों का इलाज करते हैं. लेकिन, मैं डेंगू और अन्य गंभीर बीमारियों का भी इलाज करता हूं. कोविड के दौरान, मैंने बड़ी संख्या में कोविड रोगियों का भी इलाज किया. मानिक के क्लिनिक में उनका इंतज़ार कर रही निभा मन्ना (48) ने कहा कि मेरा दाहिना टखना टूट गया था. इलाज के बाद, मेरा पैर सूज गया है. मानिक 'डाक्टर' मुझे सूजन के इलाज के लिए दवा दे रहे हैं और अब मैं ठीक हूं.
रूरल मेडिसिन प्रैक्टिशनर एसोसिएशन (स्थानीय संघ) के सचिव बिस्वजीत ससमल ने कहा कि हम पूरे साल 24X7 सेवाएं देते थे. जब भी कोई संकट आता है, हम हमेशा उसकी भरपाई करने की कोशिश करते हैं. ये कोई नई बात नहीं है. हमने कोविड के दौरान भी मरीजों का इलाज किया. हमने 2019 में भी मरीजों को इलाज मुहैया कराया था, जब जूनियर डॉक्टर एक महीने की हड़ताल पर गए थे.
सासमल ने बताया कि पश्चिम बंगाल में करीब दो लाख ग्रामीण मेडिकल प्रैक्टिशनर हैं. जिनमें से 20,000 से ज़्यादा डॉक्टर हमारे संगठन के सदस्य हैं और हमने पहले ही एक सर्कुलर जारी कर दिया है कि संकट के समय में हम अपने पेशे में ज़्यादा समय लगा रहे हैं.