अयोध्या: उत्तर प्रदेश के अयोध्या में बाबरी मस्जिद विध्वंस के 32 वर्ष बाद शहर का स्वरूप पूरी तरह बदल चुका है, लेकिन इतिहास और पहचान को लेकर चलने वाली बहसें आज भी उतनी ही तीखी हैं. 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद के ढहने से शुरू हुई राजनीति, सामाजिक तनाव और लंबे कानूनी संघर्ष ने अयोध्या को दशकों तक उथल पुथल में रखा. यही संघर्ष अंततः 22 जनवरी 2024 को राम मंदिर के उद्घाटन तक पहुंचा, जिसने अयोध्या को नए रूप में दुनिया के सामने पेश किया.
राम मंदिर आंदोलन का बड़ा हिस्सा पुरातत्व, इतिहास और आस्था के सवालों से टकराता रहा. एएसआई की रिपोर्ट इस विवाद का अहम आधार थी. रिपोर्ट के अनुसार एएसआई ने कई पुरातात्विक स्तरों में धार्मिक ढांचों के अवशेष मिलने की बात कही. इसमें सातवीं से नौवीं शताब्दी का एक गोलाकार मंदिरनुमा ढांचा और उसके ऊपर बारहवीं सदी का एक दूसरा ढांचा शामिल था.
आज अयोध्या को एक भव्य मंदिर नगरी के रूप में विकसित किया गया है. चौड़ी सड़कें, चमकदार रोशनी, आकर्षक वास्तुकला और नए आध्यात्मिक केंद्र मिलकर इसे एक बड़े पर्यटन स्थल में बदल रहे हैं. लेकिन इन्हीं चमकदार दीवारों के पीछे एक और अयोध्या छिपी है. संकरी गलियां, भीड़, अव्यवस्था और बढ़ते वाणिज्यिक दबाव ने स्थानीय लोगों को परेशान किया है. कई लोग कहते हैं कि अयोध्या की पुरानी शांति अब भीड़ और लगातार आते पर्यटकों की आवाज में कहीं खो गई है.
रिपोर्टों में बताया गया कि अयोध्या का यह दोहरा चरित्र उसकी पहचान को बदल रहा है. एक तरफ भव्य मंदिर और विकास के वादे हैं, दूसरी तरफ स्थानीय जीवन की चुनौतियां बढ़ गई हैं.
बढ़ता व्यापार, बढ़ती कीमतें और बदली हुई सांस्कृतिक हवा ने लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या यह बदलाव उनकी पहचान को सुरक्षित रख पाएगा. राम मंदिर का उद्घाटन भारत की राजनीति में भी एक बड़ा मोड़ साबित हुआ. प्रधानमंत्री मोदी द्वारा की गई प्राण प्रतिष्ठा ने पूरे देश का ध्यान अयोध्या पर केंद्रित कर दिया. यह राम राज्य तो नहीं, लेकिन देश में राम के प्रति आकर्षण पहले से कहीं अधिक दिखाई दे रहा है.