menu-icon
India Daily

मैं अमरावती हूं...9 साल से मेरी जिंदगी वीरान थी, मुझे भुतहा कहा गया...मेरी कहानी सुनेंगे

2 जून 2014 को आंध्र प्रदेश का बंटवारा कर दिया गया था. तेलंगाना राज्य अस्तित्व में आया था. तेलंगाना को हैदराबाद के रूप में राजधानी मिल गई थी. आंध्र के लिए अमरावती को नई राजधानी बनाने के लिए 2015 में आधारशिला रखी गई थी.

auth-image
Edited By: India Daily Live
Andhra Pradesh Amaravati
Courtesy: Social Media

Andhra Pradesh Amaravati: वो साल दूसरा था, ये साल दूसरा है... तब 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मेरी पहचान की नींव रखी थी. मैं शायद पहली अभागी हूं, जिसकी नींव पीएम मोदी ने रखी और 9 साल बाद भी मैं 2015 की ही तरह हूं. कहने वाले तो अब मुझे भूतिया भी बताते हैं. लेकिन मेरे मन में था कि बदलाव तो आता है और हुआ भी ऐसा ही. 9 साल बाद आंध्र में जो राजनीतिक बदलाव आया है, उससे मुझे उम्मीद जगी है कि अब मेरे भूतिया वाले टैग को हटा दिया जाएगा और दूसरे अन्य शहरों की तरह मैं भी अपनी अलग पहचान बना सकूंगी. मुझे लगता है कि आपको मेरी कहानी सुननी चाहिए. इस कहानी के जरिए आप समझ पाएंगे कि आखिर कैसे दो पार्टियों, दो विचारधाराओं, दो नेताओं की प्रतिद्ंदिता किसी के लिए अभिशाप बन जाती है. आइए, आपको मैं अपनी कहानी सुनाती हूं.

बात 2 जून 2014 की है. देश को 29वें राज्य के रूप में तेलंगाना मिला. मैं तब भी थी, लेकिन लोगों को नजरों में मेरी कोई खास पहचान नहीं थी. तेलंगाना के अलग होते ही उसे तो वो सबकुछ मिल गया, लेकिन आंध्र प्रदेश के लिए नई राजधानी की तलाश होने लगी. तब नई राजधानी के लिए अचानक मेरा नाम सामने आया. तब के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने जनता के सामने मुझे संवारने, सजाने का वादा किया. उन्होंने इसके लिए भरसक कोशिश भी लेकिन जैसे ही आंध्र में जगन मोहन रेड्डी की सरकार बनी, मेरे साथ सौतेला व्यवहार किया जाने लगा. 

मुझे सजाने, संवारने के लिए जो वादा किया गया था, उसे आप सुनेंगे तो कहेंगे कि काश ऐसा हो जाता... तब कहा गया था कि मुझे यानी अमरावती को अगले 10 साल यानी 2024 तक 7500 वर्ग किलोमीटर के दायरे में बढ़ाया जाएगा, मुझे ऐसा रूप दिया जाएगा जो सिंगापुर से 10 गुना ज्यादा बड़ा और खूबसूरत होगा. आप समझिए कि मुझे क्या सपने दिखाए गए थे. इन सपनों में मेरे भरोसा करने का एक बड़ा कारण ये भी था कि जब चंद्रबाबू नायडू 1995 से 2004 तक अविभाजित आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने राजधानी हैदराबाद को देश का पहला हाईटेक सिटी बनाया था.

जब मेरा नाम आंध्र की नई राजनीति के लिए सामने लाया गया, तो मुझे पहले तो भरोसा नहीं हुआ, लेकिन चंद्रबाबू नायडू के आत्मविश्वास को देख मैंने भरोसा कर लिया कि एक दिन दुनिया में मेरी अलग पहचान होगी. हालांकि, ये उम्मीद टूटती नजर आई, मुझे जीता-जागता से भूतिया करार दे दिया गया. लेकिन अब जब चंद्रबाबू नायडू वापस आए हैं, तो मेरे सपनों ने एक बार आकार लेना शुरू कर दिया है, मेरे सपनों को एक बार पंख लगने लगे हैं. चंद्रबाबू नायडू के आते ही मेरी सूरत बदलने लगी है.

'मुझे तो बुलडोजरों का भार महसूस हो रहा है, आपको दिख रहा है न?'

मुझे अब बुलडोजरों का भार महसूस हो रहा है, आपको दिख रहा है कि किस तरह अब मेरे सपनों को संवारने का दौर शुरू हो गया है. ये मुझे जैसे भूतहा शहर के फिर से जिंदा होने का पक्का सबूत है. ये सब कुछ तेलुगु देशम पार्टी के चीफ एन चंद्रबाबू नायडू के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने से पहले ही शुरू हो गया है. भगवान उनका भला करे. मैंने तो सुना है कि जिन बुलडोजर का भार मैं महसूस कर पा रही हूं, उन्हें चलाने वाले और चलवाने वालों को नायडू की ओर से ही मुझे संवारने का निर्देश दिया गया है. 

एक ठेकेदार को मैंने बात करते हुए सुना था, वो बोल रहा था कि हम वीरान पड़ी बिल्डिंग्स में फिर से काम कर रहे हैं, जो भी काम लंबे समय से पेंडिंग में है, उन्हें जल्द से जल्द पूरा करना है. न सिर्फ बिल्डिंग्स बल्कि सड़कों का भी जाल बिछाया जाने लगा है. इसके अलावा, पिछले करीब 5 सालों से छह लेने वाली सीड कैपिटल रोड के किनारे जो बड़ी-बड़ी पाइपलाइन रखीं गई थीं, उन्हें भी उनकी सही जगह पकड़ाने का काम शुरू हो चुका है.

जब नायडू पिछली बार मुख्यमंत्री थे, तब ही विधायकों, अधिकारियों और सचिवालय कर्मचारियों के लिए फ्लैट बना लिए गए थे, लेकिन उनकी फिनिशिंग बाकी रह गई थी. उनके ही कार्यकाल में हाई कोर्ट की बिल्डिंग भी बनाई गई थी. आपको पता है कि मुझे संवारने के लिए एलएंडटी को ठेका दिया गया था, लेकिन काम रूकने की वजह से वे यहां से जाने की तैयारी कर रहे थे. उनके करीब 150 करोड़ के मशीन धूल फांक रहे थे, लेकिन अब मैंने सुना है कि वे कहीं नहीं जा रहे हैं.

रियल एस्टेट डीलरों और डेवलपर्स भी गांवों का रूख करने लगे हैं. जब मेरा नाम राजधानी के रूप में आया था, तब ये लोग गांवों की ओर जाते थे, लेकिन जगन के सत्ता में आते ही ये गधे की सिंग की तरह गायब ही हो गए थे. कुछ रियल एस्टेट एजेंट्स से तो मैंने सुना है कि वे इसलिए गायब हो गए थे, क्योंकि मुझे संवारने के लिए कोई हलचल ही नहीं हो रही थी. कोई मुझमें दिलचस्पी ही नहीं ले रहा था, कोई ये तक देखने नहीं आता था कि आखिर मैं किस हाल में हूं.