India-US Trade Deal: ट्रंप की H-1B वीजा नीति से डगमगाया ट्रेड डील, जानें कैसे भारत की लाखों नौकरियों पर पड़ेगा इसका असर

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के फैसले से एच-1बी वीजा पर सालाना 1 लाख डॉलर की फीस लगने के बाद भारतीय आईटी कंपनियों और पेशेवरों पर गहरा असर पड़ेगा और लाखों नौकरियों पर खतरा मंडरा सकता है. भारत और अमेरिका के बीच चल रही व्यापार वार्ता पर भी इसका नकारात्मक असर होगा.

@Donald J. Trump and @PM Narendra Modi
Km Jaya

India-US Trade Deal: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के एच-1बी वीजा पर सालाना एक लाख डॉलर (करीब 90 लाख रुपये) की भारी-भरकम फीस लगाने के फैसले की वजह से भारत और अमेरिका के बीच चल रही व्यापार वार्ता पर एक बार फिर संकट गहराता दिख रहा है. इस निर्णय से भारतीय आईटी कंपनियों और पेशेवरों को बड़ा झटका लगा है.

भारतीय आईटी सेक्टर की अमेरिका पर सबसे ज्यादा निर्भरता है. हर साल हजारों भारतीय विशेषज्ञ एच-1बी वीजा के जरिए अमेरिकी कंपनियों में काम करते हैं. अब नई शर्तें इस अवसर को सीमित कर देंगी. मौजूदा समय में एच-1बी वीजा धारकों की औसत सालाना कमाई लगभग 66 हजार डॉलर है, ऐसे में इतनी ऊंची फीस चुकाना उनके लिए लगभग असंभव होगा. नासकॉम ने चेतावनी दी है कि यह कदम अमेरिकी रोजगार बाजार और इनोवेशन सिस्टम पर भी नकारात्मक असर डालेगा.

सर्विस सेक्टर का योगदान 

भारतीय अर्थव्यवस्था में सर्विस सेक्टर का योगदान लगभग 55 प्रतिशत है और अमेरिका इसकी सबसे बड़ी मंजिल है. अगर अमेरिकी बाजार में भारतीय सेवाओं की पहुंच घटी तो लाखों नौकरियों पर संकट आ सकता है. विशेषज्ञों का कहना है कि भारत को अपने निर्यात बाजारों में विविधता लाने की रणनीति अपनानी होगी, ताकि किसी एक देश पर निर्भरता न रहे.

समझौते की संभावनाएं कमजोर 

सरकारी सूत्रों के अनुसार, भारत पहले से ही अमेरिका से सर्विस सेक्टर में अधिक पहुंच की मांग कर रहा था लेकिन यह फैसला वार्ता के संवेदनशील दौर में आया है, जिससे दोनों देशों के बीच समझौते की संभावनाएं कमजोर हो सकती हैं. अमेरिकी प्रशासन का तर्क है कि एच-1बी वीजा कार्यक्रम का दुरुपयोग हो रहा है. अमेरिकी वाणिज्य सचिव हावर्ड लटनिक ने कहा कि अमेरिका को अपने ग्रैजुएट्स को प्रशिक्षित कर उन्हें नौकरियों में प्राथमिकता देनी होगी. उनका दावा है कि विदेशी कर्मचारियों की अधिक मौजूदगी से अमेरिकी युवाओं का विज्ञान और तकनीक की पढ़ाई में रुझान घट रहा है.

भारत की चिंता बढ़ी

भारत की चिंता यह है कि अगर अमेरिका सेवा क्षेत्र में भी संरक्षणवाद यानी प्रोटेक्शनिज्म बढ़ाता है तो यह भारत की अर्थव्यवस्था के लिए दूसरा बड़ा झटका होगा. वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाइजेशन यानी WTO के मोड 4 के तहत भारत लंबे समय से पेशेवरों के लिए अधिक अवसर चाहता रहा है, लेकिन अमेरिका और ब्रिटेन की सख्ती ने इसे सीमित कर दिया है. वहीं, मोड 1 यानी क्रॉस बॉर्डर सप्लाई का क्षेत्र तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन इस पर भी अमेरिकी रुख कड़ा होता दिख रहा है.

अन्य व्यापार समझौतों में दबाव

आईसीआरआईईआर की प्रोफेसर अर्पिता मुखर्जी का कहना है कि अमेरिका इस नीति के जरिए भारत पर अन्य व्यापार समझौतों में दबाव बना सकता है. वहीं, सीडब्ल्यूटीओ स्टडीज के प्रमुख प्रीतम बनर्जी का मानना है कि भारत को सेवाओं के क्षेत्र में आने वाले संभावित प्रोटेक्शनिज्म का मुकाबला करने के लिए ठोस तैयारी करनी होगी.