दिल्ली: क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (COPD) फेफड़ों की एक गंभीर बीमारी है, जो धीरे-धीरे फेफड़ों की कार्यक्षमता को प्रभावित करती है. भारत में यह 3.5 करोड़ से अधिक लोगों को प्रभावित कर रही है और मौत का तीसरा प्रमुख कारण बन चुकी है. सांस फूलना या लगातार खांसी जैसे शुरुआती लक्षण अक्सर उम्र बढ़ने, धूम्रपान या अन्य कारणों से जोड़कर नजरअंदाज कर दिए जाते हैं.
19 नवंबर को मनाया जाने वाला वर्ल्ड COPD डे इस साल ‘सांस फूल रही है? COPD के बारे में सोचें’ थीम पर आधारित है. यह जागरूकता पैदा करता है कि लक्षणों की अनदेखी करना खतरनाक हो सकता है. समय पर पहचान और सही उपचार से बीमारी को मैनेज करना संभव है, इसलिए लक्षणों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए.
COPD धीरे-धीरे विकसित होती है और फेफड़ों की क्षमता को कम करती है. शुरुआती लक्षण अक्सर सामान्य अस्थमा या उम्र बढ़ने की वजह से समझ लिए जाते हैं. सही समय पर पहचान न होने पर फेफड़ों की कार्यक्षमता और जीवन की गुणवत्ता दोनों प्रभावित होती हैं.
भारत में 30 साल के बाद COPD का खतरा बढ़ जाता है. मुख्य कारणों में धूम्रपान, घर में चूल्हे का धुआं, फैक्ट्री या कार्यस्थल का धूल-धुआं और शहरों का वायु प्रदूषण शामिल हैं. ये कारक लंबे समय तक फेफड़ों पर असर डालते हैं.
सांस फूलना, लगातार खांसी, बलगम बनना और थकान COPD के प्रमुख शुरुआती संकेत हैं. ये लक्षण अक्सर हल्के और अनदेखे होते हैं, जिससे बीमारी गंभीर हो जाती है. समय पर चिकित्सक से संपर्क करना जरूरी है.
COPD की पहचान का सबसे अच्छा तरीका स्पायरोमेट्री है. भारत में इसका उपयोग कम होता है. अक्सर महिलाएं और वृद्ध इसे अस्थमा समझ लेते हैं. सही निदान के लिए नियमित जांच और डॉक्यूमेंटेशन महत्वपूर्ण हैं.
धूम्रपान छोड़ना, प्रदूषण से बचाव, स्वस्थ खानपान और नियमित व्यायाम COPD को नियंत्रित करने में मदद करते हैं. समय पर मेडिकल सलाह और दवाओं का उपयोग फेफड़ों की कार्यक्षमता बनाए रखने में सहायक होता है.
Disclaimer: यहां दी गई सभी जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. theindiadaily.com इन मान्यताओं और जानकारियों की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह ले लें.