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Sarzameen Review: कैसी है सैफ अली खान के लाडले इब्राहिम अली खान की फिल्म 'सरजमीन'? थिएटर जाने से पहले पढ़ लें ये रिव्यू

Sarzameen Review: करण जौहर के धर्मा प्रोडक्शंस की नई पेशकश, 'सरजमीन', एक ऐसी फिल्म है जो देशभक्ति, युद्ध और मानवीय भावनाओं के बीच की नाजुक रेखा को छूने का दावा करती है. लेकिन यह फिल्म न तो अपनी कहानी में गहराई ला पाती है और न ही दर्शकों के दिलों को छू पाती है.

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Edited By: Babli Rautela
Sarzameen Review
Courtesy: Social Media

Sarzameen Review: 'सरजमीन', करण जौहर के धर्मा प्रोडक्शंस की नई पेशकश, एक ऐसी फिल्म है जो देशभक्ति, युद्ध और मानवीय भावनाओं के बीच की नाजुक रेखा को छूने का दावा करती है. लेकिन यह फिल्म न तो अपनी कहानी में गहराई ला पाती है और न ही दर्शकों के दिलों को छू पाती है. एक सेना अधिकारी के बेटे के अपहरण और उसके आतंकवादी बनने की कहानी, जो ट्रेलर में रोमांचक लगती थी, स्क्रीन पर एक भ्रमित करने वाला और कथानक बनकर रह जाती है.

फिल्म की कहानी एक सेना अधिकारी के बेटे के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसका अपहरण हो जाता है और वह एक आतंकवादी संगठन का हिस्सा बन जाता है. ट्रेलर ने इस हुक को रोमांचक बनाया था, लेकिन फिल्म इसे एक उलझे हुए और अवास्तविक कथानक में बदल देती है. कहानी में भारतीय सेना और आतंकवादी संगठनों के कामकाज की समझ बेहद काल्पनिक और सतही लगती है. 

कैसे है फिल्म के कलाकारों का काम?

इब्राहिम अली खान, जो विद्रोही बेटे से आतंकवादी बने किरदार में हैं, अपनी भूमिका में विश्वसनीयता नहीं ला पाते. उनकी अभिनय क्षमता हाई-स्कूल नाटकों से आगे नहीं बढ़ पाती. दूसरी ओर, पृथ्वीराज सुकुमारन की स्वाभाविक तीव्रता भी कमजोर लेखन और डायरेक्शन के सामने फीकी पड़ जाती है. काजोल, एक सैन्य अधिकारी की पत्नी के रूप में, भावनात्मक रूढ़ियों में उलझकर रह जाती हैं. उनका किरदार चीखने-चिल्लाने तक सीमित है, जिसमें वह गरिमा गायब है जो वास्तविक जीवन की सैन्य पत्नियों में दिखती है. 

फिल्म का डायरेक्शन

कायोज ईरानी की डायरेक्टेड और सिनेमैटोग्राफी इस संवेदनशील विषय को वह गहराई नहीं दे पाती, जिसका यह हकदार था. एक्शन सीन बेजान और बिना तनाव के लगते हैं. हालांकि, कश्मीर के मनोरम सीन इस फिल्म का एकमात्र आकर्षण हैं. हरे-भरे मैदान और बर्फीले शिखरों का दृश्य दर्शकों को मंत्रमुग्ध करता है, लेकिन यह कहानी को बचाने के लिए काफी नहीं है.

'सरजमीन' युद्ध की मानवीय कीमत और कट्टरपंथ की जटिलताओं को दर्शाने की कोशिश करती है, लेकिन यह सुस्त लेखन, खोखले डायलॉग और बैकग्राउंड संगीत में उलझकर रह जाती है. यह फिल्म न तो भावनात्मक गहराई दे पाती है और न ही दर्शकों को किरदारों के साथ जोड़ पाती है. अगर आप देखना चाहते हैं कि एक अच्छा विचार खराब निष्पादन में कैसे बर्बाद हो सकता है, तो यह फिल्म आपके लिए है