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इंदिरा की संपत्ति के लिए राजीव गांधी ने खत्म कर दिया था विरासत कानून? PM मोदी के दावे से उलझी कांग्रेस

कांग्रेस मुसलमान और विरासत को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी नेताओं के निशाने पर है. इस विवाद में सैम पित्रोदा ने आग में घी डालने का काम किया है. विरासत से जुड़े एक कानून में पीएम मोदी ने राजीव गांधी का जिक्र किया है. क्या है मामला पढ़ें.

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राजीव गांधी, इंदिरा गांधी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी.
Courtesy: Creative Image

मंगलसूत्र, मनमोहन, मुसलमान और विरासत, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस शब्दों को कांग्रेस के खिलाफ हथियार बना लिया है. लोकसभा चुनाव 2024 में इन्हीं मुद्दों के इर्दगिर्द सियासत घूम रही है.  इंडिया ओवरसीज कांग्रेस के अध्यक्ष सैम पित्रोदा ने अमेरिका में विरासत के नियमों को लेकर कुछ ऐसा कहा है, जिस पर हंगामा मचा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कह रहे हैं कि कांग्रेस की आपके विरासत पर भी नजर है, आपकी मेहनत से अर्जित संपत्ति कांग्रेस छीनना चाहती है. विरासत पर मचे सियासी बवाल के बीए पीएम ने एक ऐसे कानून का जिक्र किया है, जिसे राजीव गांधी ने बदल दिया था.

कांग्रेस परिवार पर हमला बोलते हुए मध्य प्रदेश के मुरैना जिले की एक जनसभा में कहा, 'मैं आज देश के सामने पहली बार एक दिलचस्प तथ्य रखना चाहता हूं. जब देश की एक प्रधानमंत्री इंदिरा जी नहीं रही, तो उनकी जो प्रॉपर्टी थी, वो उनकी संतानों को मिलनी थी. लेकिन पहले ऐसा कानून था कि वो उनको मिलने से पहले सरकार एक हिस्सा ले लेती थी. तब चर्चा थी कि जब इंदिरा जी नहीं रही और उनके बेटे राजीव गांधी जी को ये प्रॉपर्टी मिलनी थी. तब अपनी उस प्रॉपर्टी को बचाने के लिए, उस समय के प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी ने पहले जो इनहेरिटेंस (विरासत) कानून था, उसको समाप्त कर दिया था.'

क्या सच में राजीव गांधी ने खत्म किया था विरासत कानून?
भारत में इनहेरिटेंस टैक्स से जुड़ा कानून साल 1953 में लागू हुआ था. तब इस कानून को एस्टेट ड्यूटी एक्ट के अंतर्गत रखा गया था. साल 1953 में सरकार ने समाज की आर्थिक असमानता को देखते हुए यह कानून लागू किया था. यह कानून उन लोगों पर लागू होता था जो बेहद धनाढ्य थे और अपनी अगली पीढ़ी को भी अपनी जगह देखते थे. ऐसे में व्यक्ति के निधन पर उसकी संपत्ति पर जो व्यक्ति विरासत हासिल करता, उसे टैक्स देना होता. यह कानून भारत और भारत से बाहर की संपत्तियों पर भी लागू था. यह टैक्स ज्यादा प्रसिद्ध नहीं था. एस्टेट ड्यूटी उन्हीं संपत्तियों पर लागू होती थी, जिनकी संपत्ति 20 लाख से ज्यादा होती थी. कम से कम ऐसी संपत्तियों पर 1 लाख रुपये का टैक्स देना होता था.  व्यक्ति के निधन के वक्त, उस प्रॉपर्टी के बाजार के दर के हिसाब से टैक्स लगाया जाता था.

क्यों राजीव ने खत्म किया था ये कानून?
सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट विशाल अरुण मिश्र ने बताया कि इस कानून की वजह से मृतक की संपत्तियों का एक बड़ा हिस्सा, सरकार को मिल जाता था. यह कानून वैसे तो सरकार के रेवन्यू को बढ़ाने के लिए लाया गया था लेकिन इसे लेकर समय-समय पर बहस होती रहती थी. विपक्ष चाहता था ये कानून हट जाए. राजीव गांधी सरकार ने एस्टेट ड्यूटी को साल 1985 में संसद में कानून बनाकर हटा दिया था. 

कांग्रेस ने विरासत कानून पर क्या कहा है?
विरासत पर आफत में फंसी कांग्रेस ने अब इस पर सफाई दी है. कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा, 'कांग्रेस की विरासत पर अमेरिका जैसी योजना लाने की योजना नहीं है. सच्चाई यह है कि राजीव गांधी ने एस्टेट ड्यूटी को साल 1985 में ही खत्म कर दिया था.' 

किसने खत्म किया था ये कानून?
भारत में भी इनहेरिटेंस टैक्स या डेथ टैक्स साल 1985 से पहले लागू था.  वित्त मंत्री वीपी सिंह ने इसे खत्म करने की वकालत शुरू की थी. साल 1985 में उन्होंने इसका प्रस्ताव दिया था, जिसके बाद यह टैक्स खत्म कर दिया गया था.' इंडिया टुडे ने इकोनॉमिक टैक्स के हवाले से लिखा है कि इस्टेट ड्यूटी एक्ट साल 1984-85 के दौरान 20 करोड़ तक कलेक्ट किया गया था.  वीपी सिंह ने अपने बजट स्पीच में कहा था कि वे इस कानून को वापस ले रहे हैं.