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पाश जयंती विशेष, पेट्रोल पंप पर नौकरी से लेकर क्रांतिकारी कविताओं तक, सबसे खतरनाक होता है... से अमर हुए थे अवतार सिंह संधू

कवि होने के साथ-साथ पाश एक संपादक भी थे. उन्होंने 1972 में ‘सियाड़’ नाम की पत्रिका निकाली और बाद में ‘हेम ज्योति’ पत्रिका के संपादक बने. 1986 में अमेरिका में रहते हुए उन्होंने ‘एंटी 47 फ्रंट’ पत्रिका की शुरुआत की, जिसमें उन्होंने खालिस्तान आंदोलन और हिंसा का खुलकर विरोध किया.

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Edited By: Reepu Kumari
Pash Birthday Anniversary
Courtesy: Pinterest

Pash Birthday Anniversary:आज 9 सितंबर, भारत के महान क्रांतिकारी कवि अवतार सिंह संधू ‘पाश’ की जयंती है. पाश का जन्म 1950 में पंजाब के जालंधर जिले के तलवंडी सलेम गांव में हुआ था. साधारण किसान परिवार से निकलकर उन्होंने साहित्य और कविता के जरिए युवाओं के दिलों में क्रांति की आग जगाई. उनकी कविताओं में गरीब, मजदूर और किसान के संघर्ष की गूंज सुनाई देती है. पाश ने अपने शब्दों को हथियार बनाया और जीवनभर अन्याय के खिलाफ लड़ते रहे.

पंजाबी साहित्य का यह युवा कवि, जिसने छोटी सी उम्र में अमर कविताएं रचीं, आज भी अपने शब्दों से प्रेरणा देता है. 'सबसे खतरनाक होता है अपने सपनों का मर जाना' और 'हम लड़ेंगे साथी' जैसी पंक्तियां आज भी युवाओं के संघर्ष और सपनों को जीवित रखती हैं. अमेरिका से लौटने के बाद 1988 में जब उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई, तब भी उनकी कलम अमर हो चुकी थी. पाश ने अपने बारे में लिखा था – “मैं घास हूं हर चीज़ पर उग आऊंगा” – और सच में, वे आज भी विचारों की जमीन पर हर पीढ़ी में उगते रहते हैं.

क्रांति उनके खून में रची-बसी

पाश सिर्फ कवि नहीं, बल्कि एक क्रांतिकारी सोच के वाहक थे. उनकी कलम कभी भी डर या हिचक के आगे नहीं झुकी. उनकी कविताएं मजदूरों और किसानों की आवाज़ बनकर उभरीं. यही कारण है कि आज भी जब बदलाव की बात होती है, तो उनकी पंक्तियों से शुरुआत की जाती है.

पढ़ाई और शुरुआती जीवन

उन्होंने 1976 में दसवीं पास कर ‘ज्ञानी’ की डिग्री हासिल की, जो बीए के बराबर मानी जाती है. बाद में उन्होंने जेबीटी की परीक्षा पास की. पाश को 1985 में पंजाबी एकेडमी ऑफ लेटर्स से फैलोशिप भी मिली. इस दौरान वह इंग्लैंड और अमेरिका गए, जहां भी उन्होंने अपनी विचारधारा और कविताओं से भारतीय समुदाय को प्रेरित किया.

कविताएं जो बनीं आंदोलन की आवाज

पाश की कविताएं युवाओं के सपनों को जगाने वाली मशाल बनीं. “हम लड़ेंगे साथी” और “सबसे खतरनाक होता है अपने सपनों का मर जाना” सिर्फ कविताएं नहीं, बल्कि आंदोलनों की घोषणाएं बन गईं. यही वजह है कि वे नक्सल आंदोलन के कवि कहे गए, लेकिन वास्तव में उनकी कविताओं ने जीवन के हर रंग को छुआ.

पत्रकार और संपादक के रूप में योगदान

कवि होने के साथ-साथ पाश एक संपादक भी थे. उन्होंने 1972 में ‘सियाड़’ नाम की पत्रिका निकाली और बाद में ‘हेम ज्योति’ पत्रिका के संपादक बने. 1986 में अमेरिका में रहते हुए उन्होंने ‘एंटी 47 फ्रंट’ पत्रिका की शुरुआत की, जिसमें उन्होंने खालिस्तान आंदोलन और हिंसा का खुलकर विरोध किया.

अमर हो गई उनकी कविताएं

23 मार्च यानी भगत सिंह को जिस दिन फांसी दी गई थी, उसी दिन खालिस्तानी उग्रवादियों ने गोली मार कर उनकी हत्या कर दी थी. पाश की हत्या ने उनके शरीर को भले खत्म कर दिया, लेकिन उनकी कविताएं आज भी जीवित हैं. उनके शब्द समय से परे जाकर हर नई पीढ़ी के लिए उम्मीद और संघर्ष की ताकत बनते हैं.