रूस पर बढ़ती पश्चिम की पाबंदियों और अमेरिका की नई डेडलाइन के बीच भारत ने नवंबर में रूसी तेल आयात में अप्रत्याशित बढ़ोतरी दर्ज की है. दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक भारत, रूस से डिस्काउंटेड कच्चे तेल का सबसे बड़ा खरीदार बन चुका है. क्लेप्लर के आंकड़े बताते हैं कि नवंबर में आयात पांच महीने के उच्च स्तर पर होगा. हालांकि दिसंबर से तस्वीर बदलने वाली है, क्योंकि कड़े प्रतिबंधों और बैंकों की सतर्कता के चलते आयात में बड़ी गिरावट की आशंका है.
नवंबर में भारत की रूसी तेल खरीद 1.855 मिलियन बैरल प्रतिदिन पहुंचने की संभावना है, जो अक्टूबर के मुकाबले तेज बढ़ोतरी है. कई रिफाइनरियों ने अमेरिकी डेडलाइन से पहले स्टॉक भरने की रणनीति अपनाई. ट्रेड सोर्सेज के मुताबिक, EU के 2026 नियमों के कारण भी नवंबर में खरीद बढ़ी. लेकिन दिसंबर आते-आते आयात तीन साल के न्यूनतम स्तर पर पहुंच सकता है, क्योंकि रिफाइनरियां किसी भी तरह पश्चिमी पाबंदियों का उल्लंघन नहीं करना चाहतीं.
अमेरिका की नई पाबंदियों के बाद बैंकिंग जांच बढ़ गई है, जिससे सरकारी रिफाइनरियां बेहद सतर्क हो गई हैं. अनुमान है कि दिसंबर में भारत केवल 6 से 6.5 लाख बैरल प्रतिदिन रूसी तेल आयात कर पाएगा. इनमें इंडियन ऑयल, नायरा एनर्जी और रिलायंस के कुछ नवंबर-लोडेड कार्गो शामिल रह सकते हैं. EU ने भी 21 जनवरी की नई सीमा तय की है, जिसके बाद ऐसी रिफाइनरियों का ईंधन नहीं लिया जाएगा जिन्होंने 60 दिन पहले रूसी तेल प्रोसेस किया हो.
देश की कई प्रमुख रिफाइनरियां—MRPL, HPCL और HMEL—ने रूसी तेल की खरीद पूरी तरह रोक दी है. बढ़ती पाबंदियों, बैंकिंग बाधाओं और भविष्य की अनिश्चितताओं को देखते हुए इन कंपनियों ने जोखिम कम करने का फैसला लिया है. इससे भारत की कुल रूसी तेल निर्भरता पर सीधा असर पड़ेगा. हालांकि निजी क्षेत्र की कुछ कंपनियां पहले से तय कार्गो को प्रोसेस करने की तैयारी में हैं.
रिलायंस इंडस्ट्रीज ने साफ किया है कि उसने 22 अक्टूबर से पहले 'प्रीकमीटेड' रूसी कार्गो ही लोड किए हैं. 20 नवंबर के बाद आने वाले किसी भी कार्गो को कंपनी केवल घरेलू बाजार के लिए ईंधन बनाने वाली रिफाइनरी में प्रोसेस करेगी. इससे कंपनी पाबंदियों के दायरे से बाहर रहते हुए सीमित रूप में रूसी तेल का उपयोग कर सकेगी. उद्योग विशेषज्ञों का मानना है कि निजी कंपनियों की यह रणनीति आने वाले महीनों में और कड़ी हो सकती है.
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की अगले महीने भारत यात्रा की संभावना के बीच यह बढ़ा आयात अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चर्चा में है. 2022 के संघर्ष के बाद रूस पर पश्चिमी देशों की सख्ती जारी है. ऐसे में भारत की ऊर्जा रणनीति को वैश्विक बाजार बारीकी से देख रहा है. विशेषज्ञों का कहना है कि आने वाले दो महीने भारत की तेल नीति के लिए निर्णायक साबित होंगे.